यथार्थ से कोसों दूर

भारतवासियों में ‘शत्रुबोध’ का घोर अभाव है

यथार्थ से कोसों दूर

मेहमान चाहे पाकिस्तानी हो या ईरानी ... भारतवासी सबका खुले दिल से स्वागत करते हैं

वरिष्ठ कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर का पाकिस्तान जाकर एक कार्यक्रम में इस पड़ोसी देश के लोगों की ‘मेहमान-नवाज़ी’, ‘दोस्ती’ और ‘स्वागत’ के साथ ही भारत-पाक संबंधों के बारे में दिया गया बयान कोरी भावुकता है, जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है। अय्यर द्वारा कही गईं कुछ बातें उच्च आदर्श तो हो सकती हैं, लेकिन वे यथार्थ से कोसों दूर हैं। उनका यह कहना हास्यास्पद है कि ‘मेरे अनुभव से, पाकिस्तानी ऐसे लोग हैं, जो शायद दूसरे पक्ष पर अति प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। यदि हम मित्रतापूर्ण हैं, तो वे अत्यधिक मित्रतापूर्ण हैं और यदि हम शत्रुतापूर्ण हैं, तो वे अधिक शत्रुतापूर्ण हो जाते हैं।’ यह बयान देकर अय्यर ने कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों की नीयत पर सवालिया निशान लगा दिया। इतिहास गवाह है, महात्मा गांधी, पं. जवाहर लाल नेहरू जैसे कांग्रेस के तत्कालीन शीर्ष नेताओं ने पाकिस्तान से मधुर संबंध रखने की ही कोशिश की थी, लेकिन बदले में क्या मिला? जिन्ना के आदेश पर जम्मू-कश्मीर में कबायली लश्करों की घुसपैठ! लाल बहादुर शास्त्री भी चाहते थे कि भारत-पाक के संबंध मधुर रहें और दोनों देश तरक्की करें, लेकिन इस नेक नीयत के बदले क्या मिला? साल 1965 का युद्ध! अटलजी भी बस लेकर लाहौर गए थे। उन्होंने दोनों देशों के संबंधों को सुधारने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन उसके बाद क्या हुआ? कारगिल युद्ध! भारत की हर सरकार और उसके हर प्रधानमंत्री की मंशा यही रही कि भारत-पाक के रिश्तों में तनाव कम हो जाए, दोनों तरफ के लोगों की ज़िंदगी में आसानी आए, लेकिन कभी हमारे विमान का अपहरण हुआ, कभी संसद भवन पर आतंकियों ने हमला बोला, कभी 26/11 हुआ, तो कभी पठानकोट, उरी और पुलवामा में दहशत का खूनी खेल खेला गया। इन सबके पीछे कौन था? वही पाकिस्तान, जिसकी मेहमान-नवाज़ी का अय्यर बखान कर रहे हैं।

भारतवासियों में ‘शत्रुबोध’ का घोर अभाव है। बस, हमसे कोई हंसकर बोल ले, थोड़ी-सी तारीफ कर दे। उसके बाद संबंधित व्यक्ति की मंशा जानने की कोशिश नहीं करते। हमने दरियादिली दिखाते हुए विदेशी आक्रांताओं को माफ किया, लेकिन जब उनका दोबारा मौका लगा तो उन्होंने हमारा ही खून बहाया! पाकिस्तानी मीडिया में अय्यर का यह बयान वाहवाही बटोर रहा है कि ‘वे कभी किसी ऐसे देश में नहीं गए, जहां उनका इतनी खुली बांहों से स्वागत किया गया हो, जितना पाकिस्तान में हुआ। जब वे कराची में महावाणिज्य दूत के रूप में तैनात हुए तो हर कोई उनकी और उनकी पत्नी की देखभाल कर रहा था।’ भारत में भी जब कोई मेहमान, खासकर विदेशी मेहमान आता है तो उसका खूब स्वागत-सत्कार किया जाता है। सोशल मीडिया पर कई पाकिस्तानी यह स्वीकार करते मिल जाएंगे कि जब वे भारत आए थे तो लोगों ने उनकी खूब आवभगत की थी। उन्हें होटलों में मुफ्त ठहराया गया। अगर इलाज के लिए अस्पताल गए तो डाॅक्टरों ने फीस नहीं ली। किसी रेस्टोरेंट में गए तो वहां भी सबकुछ मुफ्त था। मेहमान चाहे पाकिस्तानी हो या ईरानी ... भारतवासी सबका खुले दिल से स्वागत करते हैं। हमें शिकायत पाकिस्तान की ओर से आने वाले उन ‘अनचाहे मेहमानों’ को लेकर है, जो अपने दिलो-दिमाग में दहशतगर्दी का ज़हर लेकर आते हैं और यहां हमले करते हैं। बेहतर होता कि अय्यर अपने संबोधन में यह मुद्दा भी उठाते, लेकिन वे तो पाकिस्तानी लोगों को भारत की सबसे बड़ी ‘संपत्ति’ बताकर आ गए। यह ‘संपत्ति’ भारतभर में अलगाववाद और आतंकवाद को परवान चढ़ाने के लिए आतंकी संगठनों को चंदा देती है, श्रीराम मंदिर के बारे में अभद्र शब्द बोलती है, अपने यहां मासूम हिंदू बच्चियों के अपहरण व जबरन धर्मांतरण पर खामोश रहती है, एक श्रीलंकाई नागरिक को ज़िंदा जलाकर उसकी ‘चिता’ के सामने अट्टहास करती हुई सेल्फी लेती है, जिसके असहिष्णु रवैए के कारण भारत में सीएए बनाने की जरूरत पड़ी, जो केदारनाथ धाम में प्राकृतिक आपदा पर खुशियां मनाती है, जो भारत के प्रथम सीडीएस जनरल बिपिन रावत की हेलीकाॅप्टर दुर्घटना को ‘ज़बर्दस्त ख़बर’ बताती है ...। इस ‘संपत्ति’ ने अपने मुल्क का बेड़ा गर्क करने के बाद यूरोप में हाहाकार मचा रखा है। अय्यर इन तमाम खूबियों से भरपूर ‘संपत्ति’ के स्वागत-सत्कार का आनंद उठाएं। भारत अब किसी झांसे में नहीं आने वाला।

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