सनातन धर्म और राष्ट्रीय सुरक्षा
जब ऋषि-महात्मा लोककल्याण के लिए यज्ञ करते थे तो उसमें विघ्न डालने के लिए राक्षसी शक्तियां मंडराने लगती थीं
अगर अपनी लेखनी से सत्य लिखकर किसी पीड़ित को न्याय दिलाया जाए, तो वह शक्ति का ही एक स्वरूप है
सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने वर्तमान सामरिक आवश्यकताओं के संबंध में प्राचीन ग्रंथों के ज्ञान को लेकर जो टिप्पणी की है, वह अत्यंत प्रासंगिक है। निस्संदेह ये ग्रंथ हमें अध्यात्म के साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा की भी शिक्षा देते हैं। शासक में कैसे गुण होने चाहिएं, उसे शासन कैसे चलाना चाहिए, जनता के हितों की रक्षा कैसे करनी चाहिए, राजनयिक संबंध कैसे होने चाहिएं, किनसे मित्रता करनी चाहिए, अगर कोई शासक शत्रुतापूर्ण व्यवहार करे तो सुरक्षा को लेकर क्या इंतजाम करने चाहिएं, अगर युद्ध करना पड़े तो कैसे करना चाहिए ... हमारे ग्रंथों में ऐसे असंख्य प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे। प्राचीन काल में जब ऋषि-महात्मा लोककल्याण के लिए यज्ञ करते थे तो उसमें विघ्न डालने के लिए राक्षसी शक्तियां मंडराने लगती थीं। प्रभु श्रीराम एवं उनके भ्राता लक्ष्मण ने ऐसी शक्तियों के खिलाफ धनुष उठाया और उनका संहार कर ऋषियों के यज्ञादि को सफल बनाया था। हम देखते हैं कि आज भी जब किसी शुभ कार्य का आयोजन होता है तो उसमें चीन-पाक जैसी शक्तियां विघ्न डालने की कोशिश करती हैं। वे तो करेंगी ही, चूंकि ऐसा करना उनकी प्रवृत्ति है! इस मामले में भारत को श्रीराम का अनुसरण करते हुए विध्वंसक तत्त्वों के खिलाफ अपना रुख कड़ा रखना होगा। हम यह तो जानते हैं कि हनुमानजी बल, बुद्धि एवं विद्या के दाता हैं, लेकिन कितने लोग जानते हैं कि वे उच्चतम कोटि के गुप्तचर (मास्टर स्पाइ) भी हैं? हनुमानजी ने माता सीता का पता लगाने के लिए लंका में प्रवेश के दौरान राक्षसों के सुरक्षा घेरे को किस तरह विफल किया, कैसे अपना परिचय दिया, किस तरह दृढ़ रहे, कैसे लंका-दहन किया और लौटने के बाद किस तरह रिपोर्ट दी ... यह सबकुछ अद्भुत है। ‘लंका-दहन’ तो ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की शानदार मिसाल है। भारत की खुफिया एजेंसियों और आतंकवाद-निरोधक दस्ते के अधिकारियों-कर्मचारियों को इसका ज़रूर अध्ययन करना चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएं अनंत हैं। कभी वे माखन खाते, मुरली बजाते, गाय चराते दिखाई देते हैं, तो कभी सुदर्शन चक्र से दुष्टों का संहार करते नज़र आते हैं। शिशुपाल के दुर्व्यवहार को क्षमा करते गए, लेकिन जब उसका दुस्साहस बढ़ता ही गया तो कठोर दंड देने से नहीं हिचके। वे पांडवों को उनका हक दिलाने के लिए आदर्श राजनयिक के तौर पर जाते हैं। जब उनका विनम्र प्रस्ताव दुर्योधन द्वारा ठुकरा दिया जाता है तो भी शांति स्थापना के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। वे गुरु के तौर पर अर्जुन को गीता का ज्ञान देते हैं। वहीं, सारथी बनकर उसका रथ भी हांकते हैं! वीर बर्बरीक अपनी दानशीलता, तपोबल, निर्भीकता, शुद्ध अंतःकरण और ‘हारे का सहारा’ बनने के संकल्प जैसे कई सद्गुणों के कारण श्रीकृष्ण से वरदान में उनका ‘श्याम’ नाम और दिव्य शक्तियां पाते हैं। हमें श्याम प्रभु के तीन बाण और धनुष बहुत गहरी सीख देते हैं- अगर पीड़ितों, शोषितों, वंचितों का सहारा बनना है तो उज्ज्वल चरित्र के साथ ही शक्ति-संपन्न होना ज़रूरी है। यहां शक्ति का अर्थ ‘केवल अस्त्र’ नहीं है। शक्तियां कई तरह की हो सकती हैं। अगर अपनी लेखनी से सत्य लिखकर किसी पीड़ित को न्याय दिलाया जाए, तो वह शक्ति का ही एक स्वरूप है। इसी तरह, मां दुर्गा के मुख से ममता झलकती है, लेकिन वे हाथों में अस्त्र-शस्त्र धारण कर सिंह पर सवार रहती हैं। वे क्रूर राक्षसों का वध करती हैं। स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस सरीखे महापुरुषों ने भारत को इसी ‘माता’ के रूप में देखा और पूजा है। जब माता इतनी दिव्य है तो संतानों को भी दिव्य होना चाहिए। आतंकवाद (जिसके पीछे विदेशी शक्तियों का बड़ा नेटवर्क है) के राक्षस का अंत करने के लिए अपने स्तर पर देश की एकता और अखंडता को मजबूत करने में योगदान देना चाहिए।