अनुशासन और जनसेवा

भाजपा ने तीनों राज्यों में उपमुख्यमंत्री बनाकर सोशल इंजीनियरिंग का भी ध्यान रखा है

अनुशासन और जनसेवा

प्राय: चुनावी मौसम में राजनीतिक दलों में असंतोष के स्वर भी सुनाई देते हैं

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के केंद्रीय नेतृत्व ने छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के लिए जिन नामों पर मुहर लगाई, उसने राजनीति शास्त्र के धुरंधरों को भी हैरत में डाल दिया। समाचार चैनलों और सोशल मीडिया पर जिन चेहरों की सबसे ज्यादा चर्चा थी, जिनके बारे में राजनीति के 'विशेषज्ञ' पूर्ण आत्मविश्वास से यह घोषणा कर रहे थे कि इस बार तो इनका शपथग्रहण समारोह होने जा रहा है, उनके सारे समीकरण फेल हो गए। 

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भाजपा ने जिन्हें राज्य सरकारों की यह जिम्मेदारी सौंपने का फैसला किया, उन्हें भी अंदाजा नहीं रहा होगा कि वे मुख्यमंत्री / उपमुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं! चाहे विष्णुदेव साय हों या मोहन यादव या भजनलाल शर्मा, इन्होंने संगठन में वर्षों काम किया है, अपने राज्य की राजनीति को समझते हैं, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि जनता ने तो छप्पर फाड़ बहुमत दिया, लेकिन भाजपा ने 'पैराशूट सीएम' उतार दिए। 

इस पार्टी ने तीनों राज्यों में उपमुख्यमंत्री बनाकर सोशल इंजीनियरिंग का भी ध्यान रखा है। साथ ही जिन नेताओं को विधानसभा अध्यक्ष का जिम्मा सौंपा, उनका अनुभव सदन की कार्यवाही के संचालन और गरिमा को बनाए रखने में सहायक होगा। इन घोषणाओं से भाजपा ने यह संदेश दे दिया कि पार्टी की अगली मजबूत पीढ़ी तैयार की जाए, उसे बड़ी जिम्मेदारी दी जाए। वरिष्ठ नेता उसके साथ नेतृत्व की भूमिका में जरूर रहेंगे, सरकार चलाने में उसे अपनी योग्यता दिखाने का अवसर मिलेगा। 

बेशक चुनाव लड़ना और जीतना किसी इम्तिहान से कम नहीं होता। इन तीनों राज्यों में जिन नेताओं को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी गई है, उनका बड़ा इम्तिहान तो अब शुरू होने वाला है। उन्हें पद व गोपनीयता की शपथ लेने के बाद कार्यभार संभालना है। मंत्रियों को उनका कामकाज सौंपना है। अधिकारियों के साथ बैठकें करनी हैं। इस प्रक्रिया में जितना समय लगेगा, विकास कार्यों में उतना ही विलंब होगा।

नई सरकार के 'ठीक ढंग से' मैदान में आने के लिए एक-डेढ़ हफ्ता भी और मानकर चलें तो तब तक नया साल और नजदीक आ जाएगा। फिर लोकसभा चुनावों का माहौल बनना शुरू हो जाएगा। इन 'नए' मुख्यमंत्रियों को आगामी आम चुनाव की आचार संहिता लगने से पहले अपनी कार्यकुशलता सिद्ध करनी होगी, संगठन को और मजबूत करना होगा, आम जनता के कल्याण के लिए जो वादे किए थे, उन्हें पूरा करना होगा। 

प्राय: चुनावी मौसम में राजनीतिक दलों में असंतोष के स्वर भी सुनाई देते हैं। संगठन में फूट डालने के साथ ही सरकारों को अस्थिर करने की कोशिशें की जाती हैं। धड़ेबंदी जोर पकड़ती है। कई नेता शक्ति-प्रदर्शन करने के लिए नए-नए पैंतरे आजमाते हैं। जब उनके हाथ से मैदान निकलता दिखाई पड़ता है तो वे पूरा खेल बिगाड़ने को आमादा हो जाते हैं।

भाजपा को जनता ने झोली भरकर सीटें दी हैं। अब प्रदेश सरकार और संगठन के नेतृत्व को चौकन्ना रहकर इस विश्वास की रक्षा करनी होगी। छग, मप्र और राजस्थान में जिन नेताओं को मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री बनाया जा रहा है, वे इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि हालिया विधानसभा चुनावों में मिली जीत के पीछे प्रधानमंत्री मोदी का करिश्मा और संगठन की शक्ति है। जनता ने इन दोनों को देखकर उन्हें विजयश्री का आशीर्वाद दिया है। उन्हें चाहिए कि अब अपने काम से जनता का दिल जीतें। पिछली सरकारों से जो ग़लतियां हुईं, उनसे सबक लें और उन्हें दोहराने से बचें। 

सरकारी मशीनरी में स्फूर्ति लाएं। व्यवस्था में सुधार करें। सरकारी दफ्तरों में आम जनता के काम आसानी से हों। लोगों को न तो अनावश्यक चक्कर लगाने पड़ें और न किसी को रिश्वत देनी पड़े। प्राय: पद के साथ कुछ लोगों में अहंकार भी आ जाता है। इसके बाद उन्हें यह भ्रम हो जाता है कि वे हर चीज़ के विशेषज्ञ बन गए हैं। इस घातक प्रवृत्ति से दूर रहें। यह अतीत में कई नेताओं का राजनीतिक करियर ले डूबी, जो अपने बड़बोलेपन की वजह से रोज़ाना चर्चा में रहते थे। आज सोशल मीडिया के दौर में चीज़ें वायरल होते देर नहीं लगेगी। इसलिए अनुशासित रहें और जनसेवा के प्रति समर्पित रहें।

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