निर्णायक विजय बाकी
भारत माता ने अपने चार बहादुर बेटे खो दिए
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पर प्रबल प्रहार से आतंकवादियों के हौसले पस्त तो हुए हैं, लेकिन इन पर निर्णायक विजय मिलनी बाकी है
जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में आतंकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ में सेना के कैप्टन स्तर के दो अधिकारियों समेत चार जवानों का शहीद होना अत्यंत दु:खद है। भारत माता ने अपने चार बहादुर बेटे खो दिए। यह देश के लिए बहुत बड़ा नुकसान है। इस घटना के पीछे जो भी गुनहगार हैं, उन्हें किसी भी कीमत पर बख्शा न जाए। उन्हें कठोर दंड दिया जाए। हाल के वर्षों में नियंत्रण रेखा (एलओसी) और जम्मू-कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों ने जिस तरह आतंकवादियों का धड़ाधड़ खात्मा किया है, उससे शांति के दुश्मन बौखला गए हैं। घाटी में आतंकवादियों का नेटवर्क दम तोड़ रहा है। कल तक जो लोग इनके बुलावे पर पत्थरबाजी करने के लिए तैयार रहते थे, वे अब गायब हो गए हैं। जंगल, पहाड़, गांव, शहर ... आतंकवादी जहां भी पनाह ले रहे हैं, उनकी सूचना सुरक्षा बलों को मिल जाती है। यह कौन पहुंचाता है? निश्चित रूप से स्थानीय कश्मीरी ही सुरक्षा बलों को सूचित करते हैं, क्योंकि वे भलीभांति समझ चुके हैं कि पाक प्रायोजित आतंकवाद से सबसे ज्यादा नुकसान उन्हें ही हुआ है ... अलगाववादी और पत्थरबाज जिस 'आज़ादी' का नारा लगाते थे, वह असल में बर्बादी है। असल आज़ादी तो वह है, जो भारत का संविधान हर नागरिक को देता है। भारतीय सेना की ‘व्हाइट नाइट कोर’ ने विशिष्ट खुफिया जानकारी के आधार पर राजौरी के गुलाबगढ़ जंगल के कालाकोट इलाके में जो संयुक्त अभियान शुरू किया था, उसे स्थानीय लोगों की ओर से भी समर्थन मिला। लोगों ने स्वीकारा कि अभियान के कारण उनसे घर पर ही रहने और बाहर न निकलने का आग्रह किया गया था ... इसके मद्देनजर बच्चे भी घर पर रहे। पहले, जब भी गोलीबारी होती तो आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों का अपनी ढाल की तरह इस्तेमाल किया जाता। जज्बात से भरे उस माहौल में ख़ासकर बच्चे और नौजवान मुठभेड़ स्थल पर जाकर कार्रवाई को बाधित करने की कोशिश करते थे। उस दौरान उनमें से कोई घायल होता या उसकी जान चली जाती तो कई-कई दिनों तक अशांति का माहौल रहता। अब आतंकवादी अकेले ही अपने अंजाम को पहुंच रहे हैं। निश्चित रूप से यह भारतीय सुरक्षा बलों के अलावा स्थानीय लोगों की भी बड़ी जीत है।
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पर प्रबल प्रहार से आतंकवादियों के हौसले पस्त तो हुए हैं, लेकिन इन पर निर्णायक विजय मिलनी बाकी है। अभी हर महीने ऐसी ख़बरें पढ़ने को मिलती हैं, जिनसे पता चलता है कि सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में दो या इससे ज्यादा आतंकवादियों को ढेर कर दिया, लेकिन इस बीच हमारे जवानों पर भी घातक हमले हो रहे हैं। इस साल जम्मू के तीन जिलों में हुईं हिंसक घटनाओं में 15 जवान शहीद हुए। हालांकि 25 आतंकवादी मारे गए। देश के एक जवान का भी लहू बहता है तो यह चिंता की बात है। हमारे वैज्ञानिकों को चाहिए कि वे जवानों के लिए ऐसा कवच और सैन्य पहनावा ईजाद करें, जो अधिक मजबूत हो, जिससे उनके जीवन को और सुरक्षित बनाया जा सके। जम्मू-कश्मीर में पिछले एक दशक में आतंकवादियों पर जो 'वज्र प्रहार' किया गया है, उससे पाकिस्तान की साजिशें नाकाम हुई हैं। आज देशवासियों में इस बात को लेकर आम सहमति है कि भारतीय खुफिया एजेंसियां और सुरक्षा बल जिस तरह बेहतर समन्वय से काम कर रहे हैं, उससे आतंकवाद पर नकेल कसने में बहुत मदद मिली है। पहले देश में कहीं-न-कहीं बम धमाकों की खबरें पढ़ने-सुनने को मिलती थीं, आज आतंकवाद की कमर टूटती नजर आ रही है। इन सबसे बौखलाया पाकिस्तान मौके की ताक में रहता है। वह आतंकवादियों को प्रशिक्षित कर घुसपैठ करवाकर भारतीय सुरक्षा बलों को निशाना बनाने की पुरजोर नापाक कोशिशें कर रहा है। हालांकि ऐसे आतंकवादियों में से ज़्यादातर एलओसी पर मार गिराए जाते हैं, लेकिन बीच-बीच में ऐसी घटनाएं हो जाती हैं, जो देश को झकझोर देती हैं। इस साल अप्रैल और मई में पुंछ के मेंढर क्षेत्र और राजौरी के कंडी जंगल में आतंकवादियों ने घात लगाकर हमला किया था, जिसमें भारत के पांच कमांडो समेत 10 सैनिक शहीद हो गए थे। वहीं, इस साल जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद संबंधी घटनाओं में 81 आतंकवादी ढेर किए जा चुके हैं। यह काफी बड़ा आंकड़ा है। पाक प्रायोजित 'दहशत की दुकानें' जब तक पूरी तरह ध्वस्त नहीं हो जातीं, भारत की ओर से प्रहार में कोई नरमी नहीं आनी चाहिए।