पीटीआई में भगदड़

अगर इमरान माफी मांग लेंगे तो इससे उनकी छवि को धक्का लगेगा

पीटीआई में भगदड़

अब तक इमरान यह संदेश देने में कामयाब रहे हैं कि वे फौज के सामने नहीं झुकेंगे

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की हाल में गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थकों ने जिस तरह हुड़दंग मचाया, अब फौज की सख्ती के बाद उनके होश फाख्ता हो रहे हैं। जो लोग कभी इमरान के साथ साए की तरह चलते थे, वे सार्वजनिक माफी मांगकर पीटीआई से इस्तीफा दे रहे हैं। वास्तव में इमरान को यह भ्रम हो गया था कि वे लोकप्रिय हैं तो पाकिस्तान में फौज को उनके सामने झुकना पड़ेगा। 

अब वहां जिस तरह लोगों की पकड़-धकड़ हो रही है और फौजी अदालत में मुकदमे दायर हो रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर पूर्व प्रधानमंत्री इमरान को अपनी ताकत दिखाने का पक्का इरादा कर चुके हैं। पाक में चर्चा है कि 9 मई को जैसा माहौल बना, उसके बाद फौज सख्त कार्रवाई कर एक नजीर पेश करना चाहती है, ताकि भविष्य में कोई उसके खिलाफ आवाज उठाने का दुस्साहस न कर सके। 

वहीं, तख्ता-पलट की आशंकाओं को भी बल मिल रहा है। हालांकि तख्ता-पलट की आशंकाएं कम जरूर हैं, लेकिन उन्हें पूरी तरह नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। प्राय: पाकिस्तान में फौज उसी सूरत में तख्ता-पलट करती है, जब खजाने में दौलत हो। इससे सेना प्रमुख और उच्च सैन्य अधिकारियों को लूट-मार का पूरा मौका मिलता है, लेकिन अभी खजाना खाली है। 

अगर फौज ने तख्ता-पलट कर दिया तो उसे लूट-मार के लिए कुछ खास नहीं मिलेगा। बल्कि खाद्यान्न संकट और विदेशी कर्ज के बोझ के कारण फौज की भारी किरकिरी हो सकती है। चूंकि उसके पास भी ऐसा कोई ठोस समाधान नहीं है, जिससे लोगों को राहत मिले, लेकिन बात जब फौज के स्वाभिमान पर आ जाएगी, तो कुछ भी संभव है। 

एक ओर फौज की ताबड़तोड़ कार्रवाई से इमरान के नेता और कार्यकर्ता उनका साथ छोड़ रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर इस घटनाक्रम से उन्हें सहानुभूति मिल रही है। पाक फौज इस बात को लेकर सतर्क है कि कहीं इमरान सियासी शहीद का दर्जा न पा जाएं।

इसके मद्देनजर पाक वित्त मंत्री इशाक डार ने संकेत दिया है कि मौजूदा सियासी गतिरोध दूर करने के लिए इमरान खान से बातचीत हो सकती है। बस वे ‘अपनी गलतियों को ठीक करने के लिए कदम उठाएं’ और 9 मई को हुई हिंसा के लिए देश से माफी मांगें। 

अगर इमरान माफी मांग लेंगे तो इससे उनकी छवि को धक्का लगेगा और पीटीआई नेताओं व समर्थकों को निराशा हाथ लगेगी। अब तक इमरान यह संदेश देने में कामयाब रहे हैं कि वे फौज के सामने नहीं झुकेंगे। उनका माफी मांगना उन्हें एक ऐसे नेता के तौर पर पेश करेगा, जो आखिरकार फौजी बूटों के सामने झुक गया। 

दरअसल पीटीआई अपने गठन के 27 साल बाद सबसे मुश्किल समय का सामना कर रही है। उसके लिए ऐसा समय तब भी नहीं आया था, जब जनरल परवेज मुशर्रफ ने तख्ता-पलट किया और बाद में न्यायपालिका पर कड़ा शिकंजा कस दिया था। पीटीआई समर्थकों को एक डर यह भी सता रहा है कि कहीं फौज उनकी पार्टी पर पूरी तरह प्रतिबंध ही न लगा दे! 

अगर ऐसा होता है तो इस बात की अधिक आशंका है कि इमरान को देश छोड़कर अन्यत्र शरण लेनी पड़े। वे वहां रहकर अपनी पार्टी को ज़िंदा रखने की कोशिश कर सकते हैं। वहीं, पाक में फौज और सरकार पीटीआई के ढांचे को पूरी तरह तबाह करने में जुट जाएंगी। 

यह भी दिलचस्प है कि आज इमरान खान जिस फौज से दो-दो हाथ करते नजर आ रहे हैं, उन्हें सियासत में वही लेकर आई थी। चाहे जुल्फिकार अली भुट्टो हों या नवाज शरीफ, ये भी फौज की अंगुली पकड़कर सियासत में आए थे। उन्होंने रावलपिंडी के जनरलों को सलाम करते हुए अपनी जड़ें जमाई थीं। 

जब उन्हें इस बात का भ्रम हो गया कि उनका कद इतना बड़ा हो गया है कि अब फौज को आंखें दिखा सकते हैं, तब उनकी कुर्सी चली गई। इमरान भी उसी भ्रम के शिकार हो गए, जिसका उन्हें अहसास हो गया होगा।

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