भ्रम के शिकार

यूएससीआईआरएफ के जिन अधिकारियों ने यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया है, वे भ्रम के शिकार या दुर्भावना से ग्रस्त हैं

भ्रम के शिकार

यूएससीआईआरएफ एक खास एजेंडे के तहत काम कर रहा है

अमेरिका के एक संघीय आयोग यूएससीआईआरएफ द्वारा भारत में सरकारी एजेंसियों और अधिकारियों को धार्मिक स्वतंत्रता के ‘गंभीर उल्लंघन’ के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए बाइडन प्रशासन से उनकी संपत्तियों से जुड़े लेनदेन पर रोक लगाकर उन पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया जाना अत्यंत आपत्तिजनक है। 

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यूएससीआईआरएफ के जिन अधिकारियों ने यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया है, वे भ्रम के शिकार या दुर्भावना से ग्रस्त हैं। यूएससीआईआरएफ ने धार्मिक स्वतंत्रता पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट में अमेरिकी विदेश विभाग से कई अन्य देशों के साथ-साथ भारत को धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति पर 'विशेष चिंता वाले देश' के रूप में निर्दिष्ट करने के लिए कहा है। 

क्या उसके अधिकारी नहीं जानते कि भारत में सभी धर्मों के अनुयायियों को अपनी आस्था के पालन की पूरी स्वतंत्रता है? यहां हर व्यक्ति अपने धर्म का प्रचार कर सकता है, किसी भी धर्म को ग्रहण कर सकता है। यहां सभी धर्मों के लोग मिल-जुलकर रहते हैं। अगर धार्मिक स्वतंत्रता न होती तो इतने बड़े देश को चलाना संभव नहीं होता। यूएससीआईआरएफ के अधिकारी वास्तविकता से पूर्णत: अनभिज्ञ हैं। 

ऐसा प्रतीत होता है कि वे भारत में लोगों से नहीं मिले और सोशल मीडिया पर वायरल होने वाली कुछ पोस्ट्स को ही भारत की असल तस्वीर समझ बैठे। निस्संदेह भारत में कभी-कभार ऐसी घटनाएं हो जाती हैं, जो सामुदायिक सद्भाव के लिए चिंता का विषय हैं, लेकिन इनमें शामिल होने वाले लोग कुल आबादी का एक प्रतिशत भी नहीं हैं। ऐसी घटनाओं को देशवासियों का कोई समर्थन प्राप्त नहीं होता है। हम भारतवासी राष्ट्रवाद की डोर से मजबूती से बंधे हैं और एक-दूसरे के धर्म का सम्मान करते हैं।

दुनिया में कौनसा देश है, जहां इतनी बड़ी आबादी हो और उसमें इतनी धार्मिक, भाषायी विविधता हो? यूएससीआईआरएफ को भारत आकर देखना चाहिए कि यहां कितने ही शहर/गांव ऐसे हैं, जहां मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे एक-दूसरे के पास स्थित हैं। यहां लोग दूसरों की आस्था का सम्मान करते हुए अपनी परंपराओं का पालन करते हैं। 

ऐसे विविधतापूर्ण तानेबाने से युक्त देश पर यह आरोप लगाना कि यहां धार्मिक स्वतंत्रता का ‘उल्लंघन’ हो रहा है, अत्यंत पक्षपातपूर्ण है। इससे साफ पता चलता है कि यूएससीआईआरएफ भारत को उसी चश्मे से देख रहा है, जिससे पश्चिम के कुछ मीडिया समूह देखते आए हैं। अमेरिका और यूरोप में आज भी कई लोगों को भ्रम है कि भारत की गली-गली में हाथी घूमते हैं और हर कोई आधुनिक शिक्षा से कोसों दूर है। 

जबकि हमारे वैज्ञानिकों के बनाए हुए उपग्रह अंतरिक्ष में चक्कर लगा रहे हैं। हमारी वैक्सीन ने कोरोना काल में दुनिया के करोड़ों लोगों की जान बचाई थी। यूएससीआईआरएफ को पहले अपने देश को देखना चाहिए, जहां आए दिन लोग स्कूलों, मॉल्स, बाजारों और सार्वजनिक स्थानों पर गोलीबारी कर आम नागरिकों की जान ले रहे हैं। जो अमेरिका दूसरों को अर्थव्यवस्था सुधारने की नसीहत देता है, उसके खुद के बैंक डूब रहे हैं! 

यूएससीआईआरएफ एक खास एजेंडे के तहत काम कर रहा है, जो इस मौके की ताक में रहता है कि कब कोई घटना हो और वह इससे भारत की छवि बिगाड़े। इसके जरिए वह इस दुष्प्रचार को हवा देता है कि 'भारत बहुत पिछड़ा देश है, यहां अव्यवस्था है, गरीबी है और लोगों में धार्मिक सहिष्णुता नहीं है, तो किसी को यहां निवेश नहीं करना चाहिए!' 

अगर भारतवासियों में सहिष्णुता नहीं होती तो यूक्रेन का रक्षा मंत्रालय मां काली की अपमानजनक तस्वीर ट्वीट करने का दुस्साहस नहीं कर सकता था। हालांकि बाद में उसने क्षमा मांग ली। क्या वे ऐसा चित्रण किसी और के लिए कर सकते हैं? निश्चित रूप से नहीं, क्योंकि भारत में जितनी सहिष्णुता और क्षमा भावना है, उतनी किसी में नहीं है। इसका ग़लत फायदा यूएससीआईआरएफ समेत कई संगठन उठा रहे हैं, जिसका उचित जवाब देना ही चाहिए।

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