इन बच्चियों की किसे फ़िक्र?

पाकिस्तान की सरकार, फौज, पुलिस, अदालतें, एजेंसियां मूकदर्शक बनी हुई हैं

इन बच्चियों की किसे फ़िक्र?

पाकिस्तान के ग्रामीण इलाकों, खासतौर से सिंध में तो हालात और भी खराब हैं

पाकिस्तान के कराची प्रेस क्लब के बाहर और सिंध विधानसभा भवन के प्रवेश द्वार पर विरोध प्रदर्शन करने वाले हिंदुओं की पुकार कहीं नहीं सुनी जा रही है। पाकिस्तान की सरकार से तो उम्मीद ही क्या रखें, वह तो खुद उनके दमन में शामिल है, अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी उनकी ओर कोई ध्यान नहीं देना चाहती हैं। इन लोगों का कसूर सिर्फ इतना है कि ये हिंदू हैं और पाकिस्तान में पैदा हो गए। 

जहां पाकिस्तान में विभिन्न संगठन अपने नेता के समर्थन या सत्ता में भागीदारी के लिए प्रदर्शन करते हैं, वहीं हिंदू समुदाय इस बात को लेकर प्रदर्शन कर रहा है कि उसे भी इन्सान समझा जाए, उसकी बहन-बेटियों का अपहरण न किया जाए, उनका जबरन धर्मांतरण न किया जाए। यह कितना दुःखद है कि जिस सदी में मानवाधिकारों का इतना बोलबाला है, वहीं एक समुदाय अपनी बेटियों की गरिमा की रक्षा के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर हो गया है! 

पाकिस्तान की सरकार, फौज, पुलिस, अदालतें, एजेंसियां मूकदर्शक बनी हुई हैं। बल्कि यह कहना चाहिए कि हिंदुओं के उत्पीड़न के पीछे ये ही हैं। इनकी मौन सहमति के बिना ऐसा होना संभव नहीं है। पाकिस्तान में हिंदू चाहे कितना ही शिक्षित और संपन्न क्यों न हो, अगर उसकी बहन-बेटियों का अपहरण और जबरन धर्मांतरण होता है तो मामले की कहीं सुनवाई नहीं होती। वह किसी भी थाने और अदालत में चला जाए, वहां बैठे लोग न उसकी तकलीफ को लेकर गंभीरता दिखाते हैं और न उसे इन्साफ़ दिलाने में कोई रुचि रखते हैं। वे तो उस पर हंसते हैं। यह निर्मम अट्टहास मानवाधिकारों के उन कथित ठेकेदारों को क्यों नहीं दिखाई/सुनाई देता, जो भारत में मामूली-सी घटना पर तूफान उठा लेते हैं? 

पाकिस्तान के ग्रामीण इलाकों, खासतौर से सिंध में तो हालात और भी खराब हैं। यहां आए दिन हिंदू बच्चियों के अपहरण होते रहते हैं। बारह-तेरह साल की मासूम बच्चियां, जिनकी उम्र खेलने, पढ़ने की होती है, उनका दिन-दिहाड़े अपहरण कर लिया जाता है। फिर उनसे दुष्कर्म होता है और जबरन धर्मांतरण कर निकाह करा दिया जाता है। कट्टरपंथी तत्त्व इसका बड़ा जश्न मनाते हैं। वे धर्मांतरण और निकाह का वीडियो बनाकर यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि इन सबके लिए लड़की ने सहमति जताई थी।

पाकिस्तानी अदालतें इन बच्चियों की चित्कार सुनकर भी धृतराष्ट्र बनी हुई हैं। उन्होंने कट्टरपंथी और आतंकवादी ‘दुर्योधन’ तथा ‘दुःशासन’ को मनमर्जी करने की खुली छूट दे रखी है। कभी-कभार संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार समूह इसके विरोध में टिप्पणी कर देते हैं, लेकिन बहुत ही हल्के स्वर में, जो इस्लामाबाद व रावलपिंडी पहुंचते-पहुंचते कहीं खो जाती है। उन टिप्पणियों को पाकिस्तान में गंभीरता से लिया भी नहीं जाता और न ही कट्टरपंथी तत्त्वों को किसी तरह का डर होता है। चूंकि वे जानते हैं कि समूचा सत्ता तंत्र उनके साथ है। जब ... भये कोतवाल तो काहे का डर! 

पाकिस्तान का मानवाधिकार आयोग दबी जुबान में यह स्वीकार कर चुका है कि हर साल लगभग 1,000 हिंदू बच्चियों का जबरन धर्मांतरण कराया जाता है। निस्संदेह वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा होगा, क्योंकि पाक में कई मामले तो अदालतों तक पहुंचे ही नहीं हैं। पाकिस्तान में हिंदुओं के अलावा सिक्ख और ईसाई समुदाय की बच्चियों का भी जबरन धर्मांतरण होता है। इनमें से ज्यादातर लोग आर्थिक रूप से कमजोर हैं। विधानसभा और संसद में इनकी नाम मात्र की उपस्थिति है, जिनकी शिकायतों को सरकारें गंभीरता से नहीं लेतीं। 

तो इनकी आवाज कौन उठाएगा? पाकिस्तान में अल्पसंख्यक होना किसी अभिशाप से कम नहीं है। यहां हिंदू, सिक्ख, ईसाई समुदाय के लोग बचपन से ही सामाजिक और सरकारी स्तर पर भेदभाव का सामना करने लगते हैं। उन्हें कदम-कदम पर यह अहसास कराया जाता है कि 'तुम पराए हो, अनचाहे हो, तुम्हारे कोई अधिकार नहीं हैं और कोई सुनवाई नहीं है।' 

यह भारतवासियों की जिम्मेदारी है कि वे जोर-शोर से इनकी आवाज उठाएं और पाक को बेनकाब करें। कश्मीरी पंडितों की तरह पाकिस्तानी अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न पर भी फिल्म, डॉक्यूमेंट्री आदि बनाएं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाएं। पाक के पाप का घड़ा भरने ही वाला है। उसे फोड़ने के लिए भारतवासियों को ही आगे आना होगा।

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