भावना ही भक्ति को सार्थक और प्रभावी बनाती है: संतश्री ज्ञानमुनि
पांच लक्षणों को हमें अपने जीवन में धारण करना चाहिए

हमें किसी भी तरह का प्रमाद नहीं करना चाहिए
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के सुमतिनाथ जैन संघ यलहंका में विराजित आचार्यश्री हस्तीमलजी के शिष्य श्री ज्ञानमुनिजी के सान्निध्य में शुक्रवार को लोकेश मुनि जी ने कहा कि हमें अपनी चेतना से पहले अपनी जिंदगी की भूमिका को जागना चाहिए।
हमें कुछ पाने के लिए चेष्टा, एकाग्रता, क्षणिक निद्रा, अल्प आहारी और एक विद्यार्थी की तरह किसी भी चीज को ग्रहण करने की क्षमता को विकसित करना होगा। इन पांच लक्षणों को हमें अपने जीवन में धारण करना चाहिए जिनसे हम कोई भी कार्य को पूर्ण कर सके या फिर किसी भी लक्ष्य को पा सके।संतश्री ज्ञान मुनि जी ने बताया कि उत्तराध्ययन सूत्र के चौथे अध्याय का यह सार है कि हमें किसी भी तरह का प्रमाद नहीं करना चाहिए। एक क्षण में ही संपूर्ण जीवन बदल सकता है। अन्न के बिना जीवन को व्यतीत कर सकते हैं परंतु जल के बिना नहीं।
भावना से बड़ी कोई भक्ति नहीं। भक्ति में हृदय से की गई भावना सबसे महत्वपूर्ण हैं। भावना ही भक्ति को सार्थक और प्रभावी बनाती है। वात्सल्य से हर मुश्किल से मुश्किल काम भी बन जाता हैं। प्रमाद में खोना ही खोना है और वात्सल्यता से सबका प्रिय बना जा सकता है।
संचालन करते हुए मनोहरलाल लुकड़ ने बताया कि रविवार को दोपहर में 2.30 बजे से गुरुदेव श्री सौभागमलजी की पुण्यतिथि एवं आचार्यश्री जीतमलजी की जयंती मनाई जाएगी। सभा में सभी का स्वागत संयोजक नेमीचंद लुकड़ ने किया।
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