महंगी पड़ी टिप्पणी
राहुल के राजनीतिक करियर का क्या होगा?
आगामी लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने कांग्रेस का चेहरा कौन होगा?
करीब चार साल पहले चुनावी माहौल में ‘मोदी’ उपनाम पर टिप्पणी करना राहुल गांधी को इतना महंगा पड़ जाएगा, इसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी। सूरत की अदालत में आपराधिक मानहानि के मामले में राहुल के लिए सजा के ऐलान और फिर उनके जमानत पा जाने के बाद कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर हमलों की बौछार कर दी थी। अगले ही दिन राहुल गांधी की संसद सदस्यता चले जाने से पार्टी नेता और कार्यकर्ता सन्न हैं। वे इसके लिए भी मोदी सरकार को जिम्मेदार बता रहे हैं, जबकि राहुल को सजा अदालत ने सुनाई है!
अब हर कहीं ये सवाल हैं- राहुल के राजनीतिक करियर का क्या होगा? क्या वे भविष्य में दोबारा संसद सदस्य बन पाएंगे? कांग्रेस का क्या होगा? चूंकि माना तो यह जा रहा था कि ‘उचित समय’ आने पर राहुल दोबारा कमान संभाल सकते हैं, लेकिन अदालत के फैसले के बाद इस पार्टी के लिए चौतरफा चुनौतियां आ गई हैं। स्वयं राहुल की भूमिका क्या होगी, अभी इसी पर संशय छाया हुआ है।आगामी लोकसभा चुनावों में करीब एक साल का समय बचा है। इस बीच कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा इनकी तैयारियों में जुटी हुई है, जबकि कांग्रेस के सामने बड़ा राजनीतिक संकट पैदा हो गया है। ऐसे में वह चुनावी तैयारियों पर ध्यान देगी या राहुल के अदालती मामले पर?
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट गंवा बैठे थे, लेकिन केरल की वायनाड सीट से जीतकर संसद पहुंचे। अब वह भी जाती रही। देखना यह है कि न्यायालय का क्या रुख होगा। अगर राहुल वहां से बड़ी राहत पा जाते हैं तो उनके लिए संसद लौटने की संभावनाएं रहेंगी, अन्यथा उन्हें सियासी नुकसान हो सकता है।
बड़ा सवाल यह भी है कि आगामी लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने कांग्रेस का चेहरा कौन होगा? ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी को बेहतर संभावनाओं के साथ प्रधानमंत्री पद का ‘उम्मीदवार’ मान चुके थे। आम लोगों के साथ राहुल का मेलजोल देखकर कांग्रेस नेता यह बयान देने लगे थे कि वे अपने बूते आगे बढ़ रहे हैं, न कि वंशवाद के नाम पर, जैसा कि भाजपा उनकी आलोचना करती है।
कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधानों को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि अगर इसके तहत दो या उससे ज्यादा साल की सजा मिलती है तो संसद या विधानसभा की सदस्यता तो रद्द होती ही है। वहीं, संबंधित व्यक्ति सजा पूरी होने के छह साल बाद तक कोई चुनाव नहीं लड़ सकता है। इस तरह यह कुल अवधि आठ साल बनती है। अगर राहुल को उल्लेखनीय राहत नहीं मिलती है तो आगामी लोकसभा चुनावों में बिखरे हुए विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशों को झटका लग सकता है। बदली हुईं परिस्थितियों में कांग्रेस नेतृत्व के लिए पार्टी की भूमिका को मजबूत रखना भी बड़ी चुनौती होगी।
देश में कई क्षेत्रीय दल हैं, जिनकी विभिन्न राज्यों में सरकारें भी हैं। अगर कांग्रेस कमजोर पड़ेगी तो गठबंधन की स्थिति में क्षेत्रीय दलों की मांगें बढ़ेंगी। वे चाहेंगे कि खुद अधिकाधिक सीटों पर चुनाव लड़ें और कांग्रेस उनकी शर्तें माने। यह भी संभव है कि तीसरे मोर्चे की कोशिशें तेज होने लगें। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हाल में प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात कर इसके संकेत दे चुके हैं।
इस समय कांग्रेस के सामने राहुल गांधी की संसद सदस्यता की बहाली के लिए अदालती लड़ाई बड़ी चुनौती है। वहीं, अपने नेताओं व कार्यकर्ताओं को एकजुट रखने की रणनीति पर भी खास ध्यान देना होगा। मौसम देखकर ‘पंछी’ तक बसेरा बदल लेते हैं। बात जब सियासी मौसम की हो तो वर्षों के साथी भी बदल जाते हैं।