सूचना युद्ध
जम्मू-कश्मीर और पंजाब में छापेमारी के बाद जो खुलासे हुए, वे निश्चित रूप से चिंताजनक हैं
आतंकवादी समूहों के आका जम्मू-कश्मीर के युवाओं को कट्टर बनाने के लिए मौके की ताक में रहते हैं
विज्ञान के दो वरदानों - ड्रोन और इंटरनेट का सदुपयोग किया जाए तो ये मानवता की सेवा में बहुत सहायक सिद्ध हो सकते हैं। हाल के वर्षों में इनके दुरुपयोग के जो मामले सामने आए हैं, उससे सरकारों की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है। एनआईए ने करीब एक दर्जन ऐसे संदिग्धों की पहचान की है, जो पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी 'आकाओं' के संपर्क में रहे हैं।
इस सिलसिले में जम्मू-कश्मीर और पंजाब में छापेमारी के बाद जो खुलासे हुए, वे निश्चित रूप से चिंताजनक हैं। दरअसल एजेंसी ने जून 2022 में स्वत: संज्ञान लेकर प्रतिबंधित संगठनों के ओवर ग्राउंड वर्करों और काडर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी, जो पाकिस्तान में बैठे अपने कमांडरों या आकाओं के निर्देश पर काम कर रहे थे। वे इन गतिविधियों के लिए छद्म नामों का इस्तेमाल कर रहे थे।इंटरनेट के प्रसार ने आम जनता के लिए सुविधाओं के दरवाजे खोले हैं, लेकिन अपराधियों और आतंकवादियों को भी नया माध्यम दे दिया है। इसी तरह ड्रोन टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग कर भारत में हथियार, विस्फोटक और ड्रग्स भेजने के प्रयास किए जा रहे हैं। पंजाब से लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा पर आए दिन पाकिस्तानी ड्रोन मंडराते रहते हैं, जिन्हें बीएसएफ धराशायी कर देती है।
इसके मद्देनज़र भारत की सुरक्षा और जांच एजेंसियों को बहुत सतर्कता बरतनी होगी, क्योंकि जिस तरह इंटरनेट टेक्नोलॉजी सुलभ तथा बेहतर होती जा रही है, उससे देश के लिए चुनौतियां भी बढ़ेंगी। अब सोशल मीडिया पर ऐसे समूहों की भरमार है, जिनमें खुलकर भड़काऊ सामग्री पोस्ट की जा रही है।
पूर्व में पाकिस्तानी एजेंसियों को भारत के युवाओं को अपने जाल में फंसाने के लिए कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता था, चूंकि कोई सीधा और सरल जरिया नहीं था। अब एक सोशल मीडिया ग्रुप बनाने से काम हो जाता है।
इसका इस्तेमाल कर कराची, लाहौर, रावलपिंडी, इस्लामाबाद, पेशावर में बैठा कोई कट्टरपंथी, आतंकवादी या एजेंट भारत में लोगों को भड़का सकता है। एनआईए ने उक्त मामले में जो छापेमारी की, उसमें डिजिटल उपकरण और अपराध में संलिप्तता से जुड़ी सामग्री जब्त की गई थी, जिससे पता चलता है कि देशविरोधी तत्त्व अपनी जड़ें जमाने के लिए किस हद तक कोशिश कर रहे हैं।
आतंकवादी समूहों के आका जम्मू-कश्मीर के युवाओं को कट्टर बनाने के लिए मौके की ताक में रहते हैं। एक बार जो युवक उनके झांसे में आ जाता है, वे उसका ब्रेनवॉश कर आम लोगों, सुरक्षा कर्मियों, धार्मिक कार्यक्रमों और विभिन्न गतिविधियों को निशाना बनाने के लिए उकसाते हैं। पाकिस्तानी एजेंसियों का एक नाकाम प्रोजेक्ट 'खालिस्तान' भी है, जिसके पीछे उनकी मंशा यह है कि पंजाब में उग्रवाद को परवान चढ़ाकर जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग किया जाए।
जब पाक का सैन्य बल इस नापाक कृत्य में विफल हो गया तो आतंकवाद का दांव चला गया। वह भी विफल हो गया तो इंटरनेट को हथियार बनाकर युवाओं के मन में भारत के प्रति नफरत का जहर घोलने की साजिश रची गई। पाकिस्तानी फौज के भ्रष्ट जनरल, ब्रिगेडियर, कर्नल आदि अधिकारी सेवानिवृत्ति के बाद कनाडा बसने को प्राथमिकता दे रहे हैं। वहां उन्होंने अपनी कॉलोनियां बना रखी हैं, जिनका इस्तेमाल भारतविरोधी गतिविधियों के लिए किया जा रहा है। ये पाकिस्तानी अधिकारी औपचारिक रूप से फौज से सेवानिवृत्त हो जाते हैं, लेकिन भारत से नफरत इनकी रग-रग में बसी होती है, जिसके तहत ये काम करना बंद नहीं करते।
टेक्नोलॉजी के इस दौर में भारतीय एजेंसियों को आक्रामकता दिखानी होगी। इसके लिए सोशल मीडिया पर कड़ी नजर रखनी होगी। पाकिस्तान या अन्य किसी देश से भड़काऊ और भारतविरोधी सामग्री नजर आने पर उसके खिलाफ तुरंत कार्रवाई करनी होगी। जिन सोशल मीडिया समूहों में कट्टरपंथ से जुड़ी सामग्री पोस्ट की जाए, उसे प्रतिबंधित करने के साथ ही संबंधित व्यक्ति को कठघरे में लाया जाए। इस समय 'सूचना युद्ध' लड़ा जा रहा है, जिसमें भारत को अपने शत्रुओं को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए सबसे आगे रहना ही होगा।