रोज़मर्रा के हादसे

रोज़मर्रा के हादसे

क्या हम ऐसी राष्ट्रीय नीति बना सकते कि ऐसे जिन हादसों में लोग जान गंवा रहे हैं, उन्हें प्राथमिकता के आधार पर रोका जाए


मोरबी पुल हादसा अत्यंत दुखद है। पूरा देश इससे स्तब्ध रह गया। घटना की तस्वीरें हृदय-विदारक हैं। आखिर हम कब चेतेंगे और चीजों का दुरुस्त करेंगे? देश में आए दिन हादसे हो रहे हैं। ऐसा लगता है कि हादसों का होना रोज़मर्रा की बात हो गई है। सभी राज्य सरकारों को ऐसे पुलों, जर्जर इमारतों, पुराने कुओं आदि का तुरंत सर्वेक्षण करवाकर उचित कदम उठाने चाहिएं। ऐसा न हो कि इसके लिए एक और हादसे का इंतजार करें। 

आए दिन बोरवेल में बच्चे गिरते रहते हैं। फिर सेना और आपदा राहत से जुड़े अधिकारियों को बुलाया जाता है। कहीं प्रतिमा विसर्जन होता है तो लोग डूब जाते हैं। कहीं भगदड़ में जान चली जाती है। कहीं सड़कों के गड्ढे में पानी भरा हो तो राहगीर चोटिल हो जाते हैं। ऐसी जगह करंट लगने से मौतों की खबरें भी आती रहती हैं। अख़बार हादसों से भरे होते हैं। कुछ दिन शोर मचता है। मुआवजा दे दिया जाता है। फिर सबकुछ ठंडा पड़ जाता है। प्रशासन फिर किसी नए हादसे का इंतजार करता है। फिर यह चक्र दोहराया जाता है। 

क्या हम ऐसी राष्ट्रीय नीति बना सकते कि ऐसे जिन हादसों में लोग जान गंवा रहे हैं, उन्हें प्राथमिकता के आधार पर रोका जाए? ऐसा लगता है कि प्रशासन तो 'जैसा चलता है, चलने दो' सिद्धांत का अक्षरश: पालन कर रहा है। राज्य सरकारों को गंभीरता दिखानी होगी। क्या हर काम केंद्र की जिम्मेदारी है? क्या कोई हादसा उसी सूरत में गंभीर माना जाएगा, जब वह राष्ट्रीय मीडिया में जगह पाएगा? हर इन्सानी जान अनमोल है। कोई हादसा छोटा नहीं होता। सरकारों को ऐसे कदम उठाने होंगे, जिनसे हर नागरिक का जीवन सुरक्षित हो।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोरबी हादसे के बाद घायलों से मिलने अस्पताल गए, जो उचित ही है। निस्संदेह हर राजनेता में हमदर्दी का यह भाव होना चाहिए। उनके दौरे से पहले मोरबी के सरकारी अस्पताल को साफ-सुथरा कर अच्छी तरह 'चमका' दिया गया। करीब तीन सौ बिस्तरों वाले इस अस्पताल की सफाई और रंगाई-पुताई की गई है। उन रास्तों को भी साफ किया गया, जिनसे प्रधानमंत्री का काफिला गुजरा। अस्पताल प्रशासन की यह पहल भी उचित है, लेकिन ऐसी सतर्कता दैनिक जीवन का हिस्सा क्यों न हो? 

प्राय: जब शीर्ष राजनेता या उच्चाधिकारी का दौरा होता है तो सड़कें चमकने लगती हैं, नालियां भी साफ हो जाती हैं। ऐसी स्वच्छता का पालन हर दिन होना चाहिए। क्या आम जनता को स्वच्छ सड़कों, साफ नालियों और अच्छी हालत वाले सरकारी अस्पताल के लिए शीर्ष राजेनताओं के दौरे का इंतजार करना होगा? ऊबड़-खाबड़ सड़कें, गंदी नालियां, अव्यवस्थित अस्पताल ... देश की जनता इनसे निजात चाहती है। वह चाहती है कि गांव/शहर की सड़कें, नालियां, अस्पताल, सार्वजनिक स्थल हर दिन साफ और सुव्यवस्थित हों। देखने में आता है कि जब किसी राजनेता का दौरा होता है तो प्रशासन आनन-फानन में चीजों को ठीक करने में लग जाता है। उनके जाते ही फिर वही ढर्रा चल पड़ता है। 

यह तो वैसा ही है कि मेहमान आने से पहले घर को सुव्यवस्थित कर यह दिखा दिया कि हम बहुत अनुशासित हैं। उनके जाते ही चाहे घर में कचरा पसरे, नल खुला हो, अनावश्यक पंखे चल रहे हों और दरवाजे-खिड़कियां खुले हों ...! यह घोर लापरवाही है। दुखद है कि न तो सरकारें इसमें खास सुधार कर रही हैं और न जनता इसमें रुचि ले रही है। अगर हम अपने 'घर' को ठीक नहीं करेंगे तो कौन करेगा?

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