छूटेगा बंगला मोह?

छूटेगा बंगला मोह?

उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव ने अपने कार्यकाल में आज से करीब दो-ढाई वर्ष पहले सूबे के सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को ताउम्र सरकारी बंगलों में रहने को लेकर एक कानून बनाया था जिसमें व्यवस्था दी गई थी कि सभी पूर्व मुख्यमंत्री जिंदगी भर आवंटित बंगलों में रह सकेंगे। इसमें सभी पार्टियों के पूर्व मुख्यमंत्री शामिल थे। वर्तमान गृहमंत्री राजनाथ सिंह व राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह से लेकर बसपा प्रमुख मायावती भी इससे लाभान्वित हो रहे थे। अखिलेश सरकार के फैसले का उस वक्त किसी ने ज्यादा विरोध नहीं किया था। विरोध इसलिए भी नहीं किया था क्योंकि उसमें सभी का हित शामिल था। लेकिन अखिलेश यादव के बनाए उस कानून को जब एक एनजीओ की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई तो मामला पूरी तरह से पलट गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को अवैध घोषित कर दिया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि जिस तरह सरकारी कमर्चारी अपनी सेवा खत्म करने के बाद आवंटित सरकारी घर और सुविधाएं छो़ड देते हैं उसी तरह पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी स्वेच्छा से सरकारी संपत्तियों का त्याग कर देना चाहिए। लेकिन राजनेता अपनी ढीठता दिखाने से बाज नहीं आते। बंगलों पर कब्जा जमाए बैठे लोगों पर सुप्रीम कोर्ट ने कई तल्ख टिप्पणियां की। जिन सिद्धांतों और मान्यताओं को इस फैसले का आधार बनाया गया, वह व्यापक हैं और अन्य राज्यों तथा केंद्र पर भी लागू होते हैं। दरअसल सरकार का हिस्सा बन जाने के बाद हमारे राजनेता हर एक सरकारी संपत्ति को अपनी जागीर समझने लगते हैं। उनकी सत्ता-सुख की ऐसी आदत प़ड जाती है जिससे वह बाहर नहीं निकल पाते। सत्ता में रहें या न रहें, उनको वही ठाठ चाहिए। ब़डा बंगला हो, चारों तरह नौकर-चाकर हो। कुल मिलाकर तमाम सुख भोगने वाली सुविधाएं उनको ताउम्र मिलती रहें बस!दरअसल जनता अब जितनी शिक्षित और समझदार होती जा रही है उतनी ही नेताओं के लिए समस्याएं ख़डी हो रही हैं। राजनेताओं अब ठीक तरह से भांप चुके हैं कि जनता अब आसानी से मूर्ख नहीं बन सकती। खैर, बंगलों से बेदखली के आदेश ने कब्जा जमाए बैठे पूर्व सफेदपोशों में खलबली तो मचा ही दी है। वह अलग बात है कि वे इतनी आसानी ने कब्जा नहीं छो़डेंगे। कुछ न कुछ तो़ड जरूर निकाल ही लेंगे। अपने फैसले में न्यायालय ने तल्ख लफ्जों में कहा कि उत्तर प्रदेश के पूर्व सभी छह मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगले खाली करने होंगे। कोर्ट ने यूपी सरकार के कानून को रद्द कर इसे संविधान के खिलाफ बताया। सवाल उठता है ऐसा गुनाह क्यों किया गया। गुनाह करने वालों पर भी सख्त और जरूरत के मुताबिक कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए। हमें बधाई देनी चाहिए उस एनजीओ की जिसने बंगला मुद्दे पर अपनी आवाज बुलंद की। बेशक इस नियम के कुछ बेहतरीन अपवाद भी रहे हैं, मगर ऐसे अपवादों की संख्या भी अब अपवाद बन गई है। आम जनप्रतिनिधि मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को ही अपने रोल मॉडल के रूप में देखते हैं। जब मुख्यमंत्री ही ऐसा आचरण प्रस्तुत करेंगे तो वे सादगी का पाठ किनसे सीखेंगे? देखना होगा कि हमारी राजनीति सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद आंखें मूंदे बैठी रहती है या इसे शब्दों व भावनाओं के अनुरूप हर स्तर पर लागू करने की पहल करती है।

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