मालदीव में तख्त-पलट
मालदीव में तख्त-पलट
हिंद-प्रशांत क्षेत्र के द्वीपीय देश मालदीव में राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने सोमवार को १५ दिन के आपातकाल का ऐलान कर दिया। यामीन के सहायक अजीमा शुकूर ने इसकी घोषणा की। यह कदम सुरक्षा बलों को संदिग्धों को गिरफ्तार करने और हिरासत में लेने की असीम शक्ति देता है। इस घोषणा के साथ ही वहां चल रहा सियासी संकट और गहरा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को राजनीतिक कैदियों को रिहा करने का आदेश दिया था जिसे मानने से इनकार करने पर इस संकट की शुरुआत हुई। राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की कुर्सी हिल रही है। जिस न्यायालय को वे अपने हाथ की कठपुतली समझ रहे थे, उसी ने उनके खिसकने का इंतजाम कर दिया है। मालदीव के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि जिन १२ सांसदों को सत्तारु़ढ दल से इस्तीफा देने के कारण यामीन सरकार ने अपदस्थ कर दिया था, उन्हें फिर से बहाल किया जाए्। उनके बहाल हो जाने से यामीन की सरकार अल्पमत में आ जाएगी और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद की अगुवाई वाला गठबंधन सत्ता में आ जाएगा। मौजूदा सरकार के लिए कोई भी कानून बनाना मुश्किल हो जाएगा। यामीन के खिलाफ महाभियोग भी सफल हो सकता है। अदालत ने नौ नेताओं की गिरफ्तारी को भी रद्द कर दिया है। इनमें मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति नशीद और एक उपराष्ट्रपति भी हैं। नशीद पर आतंकवादी होने का झूठा आरोप लगाया था। अदालत के इन दोनों फैसलों को आए तीन दिन हो रहे हैं लेकिन यामीन ने अभी तक इन्हें लागू नहीं किया है। वे अगले साल होनेवाले चुनाव अभी ही करवाने की धमकी दे रहे हैं। इस फैसले से यामीन इतने ज्यादा घबरा गए हैं कि उन्होंने दो दिन में मालदीव के दो पुलिस मुखियाओं को बदल दिया है। यामीन से संयुक्तराष्ट्र संघ, अमेरिका, भारत और श्रीलंका ने संविधान का पालन करने की अपील की है। यामीन की दाल पतली होने का सबसे ज्यादा धक्का चीन को लगेगा, क्योंकि यामीन ने मालदीव को लगभग चीन की गोद में ही बिठा दिया है। उसने चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता किया, उसे एक पूरा द्वीप सामरिक उद्देश्यों के लिए दे दिया और उसने मालदीव के सभी भारतप्रेमियों को सताने में भी कोई कमी नहीं रखी है। उन्होंने भारतीय राजदूत से मिलने-जुलने पर रोक-टोक लगा दी थी। वैसे मालदीव के विदेश मंत्री अभी कुछ दिन पहले भारत इसीलिए आए थे कि भारत की नाराजगी को वे दूर कर सकें लेकिन अदालत के फैसले ने मालदीव की शतरंज के पासों को पलट दिया है। अब यामीन के विरुद्ध जनाक्रोश भ़डके बिना नहीं रहेगा। भारत ने मालदीव के संकट पर चिंता व्यक्त की है और लोगों से कहा है कि जरूरी ना हो तो वहां की यात्रा पर ना जाएं्। वैसे, यह भारतीय विदेश नीति की दृष्टि से अकस्मात ही एक शुभ घटना हो गई है। मालदीव में लोकतंत्र की रक्षा के लिए भारत को खुलकर सामने आना चाहिए क्योंकि दो दिन पहले ही मालदीव के सुप्रीम कोर्ट ने भारत से मदद की गुहार लगाई थी।