न्याय में तेजी
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न्याय में तेजी
वर्ष १९९३ में देश को दहलाने वाले मुंबई बम धमाकों के मामले में आखिरकार फैसला आ गया है। इस फैसले में कुख्यात अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम सहित पांच अन्य लोगों को सजा सुनाई गयी है। इस फैसले को आने में चौबीस साल लग गए। ऐसे महत्वपूर्ण मामले की कार्यवाही पूर्ण होने में बहुत लम्बा समय लग गया। इससे हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था की लाचारी को समझा जा सकता है। विभिन स्तरों पर हमारे देश के न्यायधीश पूरी कोशिश करते हैं कि मुकदमों की कार्यवाही जल्द से जल्द हो सके परंतु मुकदमों की भारी संख्या की वजह से इनमंे विलंब होना लगभग निश्चित हो चुका है। साथ ही न्यायिक प्रणाली में सभी पक्षों को अतिरिक्त समय दिया जाता है और इसके साथ जांच एजेंसियों को भी मुकदमों के सभी पहलुओं पर ध्यान देना होता है। निष्पक्षता और पारदर्शिता हमारी न्यायायिक व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है और इसीलिए किसी भी मु़कदमे की सुनवाई करते समय न्यायाधीश सभी पक्षों को पर्याप्त समय देते हैं। मुंबई बम धमाकों का ही अगर उद्धरण लिया जाए तो कानूनी प्रक्रिया को पूरा करने में चौबीस साल लगने के पीछे अनेक कारण हैं। यह सच है कि पांचों दोषियों को पक़डने में जांच एजेंसियों को काफी मशकत करनी प़डी और इसी मामले में इससे पहले हुई कार्यवाही में लगभग सौ लोगों को वर्ष २००६ में सजा सुनाई जा चुकी है। परंतु अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम सहित पांच अन्य लोगों को सजा सुनाने में काफी लम्बा समय लग गया और इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है इस कार्यवाही में जरूरत से कई ज्यादा समय लग गया। एक के बाद एक तेरह बम धमाकों ने पूरे देश को दहला दिया था। नब्बे के दशक के सबसे भयानक हमले में ढाई सौ से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई थी और छह सौ से अधिक लोग गंभीर रुप से घायल हुए थे। इतने महत्वपूर्ण मामले की कार्यवाही में इतना लम्बा समय लग जाना बहुत ही चिंता जनक है। हमारे देश में न्यायिक सुधार की मांग कई बार अलग-अलग मंचों पर की जा चुकी है और सरकार को गंभीरता से इस दिशा में सोचने की जरूरत है। न्यायाधीशों की कमी को पूरा करने के लिए रिक्त स्थानों को भरने की आवश्यकता है। हमारे देश के न्यायाधीशों पर काम का बहुत भार हैं और उन पर मुकदमों में जल्द सुनवाई करने का दबाव बना रहता है। कई महत्वपूर्ण मामले ऐसे भी हैं जिनमंे कई दशकों से कार्यवाही चल रही है। सार्वजनिक महत्व के मामलों में फैसला सुनाने के लिए एक समय सीमा तय करने की आवश्यकता भी है साथ ही आतंकवाद और देशद्रोह से जु़डे मामलों के लिए अलग न्यायालय की भी ताकि ऐसे मामलों में कार्यवाही जल्द हो सके और इनसे हमारे देश की आतंक विरोधी नीतियों की गंभीरता झलक सके। सरकार को इस दिशा में आवश्यक कदम उठाने में विलंब नहीं करना चाहिए।
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