निर्यात पर पाबंदी नहीं हटी तो देश भर के मास्क उत्पादक हो सकते हैं बेरोजगारी व मंदी के शिकार

निर्यात पर पाबंदी नहीं हटी तो देश भर के मास्क उत्पादक हो सकते हैं बेरोजगारी व मंदी के शिकार

निर्यात पर पाबंदी नहीं हटी तो देश भर के मास्क उत्पादक हो सकते हैं बेरोजगारी व मंदी के शिकार

कॉटन, खादी आधारित मास्क उत्पादित इकाइयों को भी लगने लगा ग्राहकी थम जाने का भय

जब से देश व दुनिया में कोविड-19 के मामले बढ़े हैं तब से मास्क की मांग बेतहाशा बढ़ी है। जब मार्च माह में कोरोना ने भारत में दस्तक दी थी तब मास्क की शॉर्टेज से बड़ी परेशानी बढ़ गई थी, तो सरकार ने ताबड़तोड़ तमाम तरह के मास्क के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी। उन दिनों भारत को भी चीन आदि देशों पर मास्क के लिए निर्भर रहना पड़ा था। हालात यहां तक पहुंच गए थे कि 8-10 रु. प्रति नग की दर से बिकने वाले साधारण सर्जिकल मास्क 40 रु तक बेचे जा रहे थे। थ्री लेयर वाला एन-95 मास्क, जो 95 से 150 तक बिकता था, उसकी कीमत उछल कर 500 रु प्रति मास्क तक पहुंच गई थी। यहां तक कि सरकार ने मास्क की कालाबाजारी करने वालों को सजा का डर भी दिखाया था। जब विश्र्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में यह बताया गया कि अगर 80 प्रतिशत आबादी मास्क का उपयोग करने लग जाए तो कोरोना वायरस का आउट ब्रेक रोका जा सकता है, लेकिन भारत की बहुत बड़ी आबादी मास्क नहीं पहनती है। गांवों व देहातों में यह लापरवाही साफ देखी जा रही है। हालांकि शहरों में भी अलबत्ता यह कोताई नजर आ ही जाती है।

एक अनुमान के अनुसार देश भर में तकरीबन आधा दर्जन बड़ी इकाइयों द्वारा सवा दो लाख मास्क प्रतिदिन तैयार किए जा रहे हैं व लाखों की तादाद में मास्क देशभर में फैली लघु स्तर तथा बड़े आकार की अन्य इकाइयों द्वारा कपड़े की अनगिनत किस्मों, नॉन वूवन पर आधारित मास्क तैयार किए जाते हैं्। सूरत में नॉन वूवन उत्पाद से जुड़े मार्कलोन टेक्स इन प्रतिष्ठान के प्रबंधक हितेश जीरावला के अनुसार सूरत में मास्क बनाने की छोटी बड़ी 100 के करीब इकाइयां नई स्थापित हो गई हैं्। ये इकाइयां वराछा, उधना, सचिन, आदि अनेक विस्तारों में उत्पादन रत हैं। जो उद्यमी रेग्जीन, लेदर आदि के बैग बनाते थे, वे मास्क उत्पादन से जुड़ गए्।

बहरहाल, जैसे जैसे मास्क की आवश्यकता वैसे वैसे भारत में मास्क का उत्पादन युद्ध स्तर पर किया जाने लगा। देखते ही देखते खादी और ग्रामोद्योग, खादी, सूती केसमेन्ट, पापलीन, केम्ब्रिक, यहां तक कि पॉलिएस्टर कॉटन, मैन मेड फाइबर तथा फैंसी व मैचिंग मास्क बनने लग गए्‌। देश के शहर कस्बे व देहातों तक मास्क बनने लग गए्‌। एक अनुमान के अनुसार देश भर में तकरीबन आधा दर्जन बड़ी इकाइयों द्वारा सवा दो लाख मास्क प्रतिदिन तैयार किए जा रहे हैं व लाखों की तादाद में मास्क देशभर में फैली लघु स्तर तथा बड़े आकार की अन्य इकाइयों द्वारा कपड़े की अनगिनत किस्मों, नॉन वूवन पर आधारित मास्क तैयार किए जाते हैं्‌। सूरत में नॉन वूवन उत्पाद से जुड़े मार्कलोन टेक्स इन प्रतिष्ठान के प्रबंधक हितेश जीरावला के अनुसार सूरत में मास्क बनाने की छोटी बड़ी 100 के करीब इकाइयां नई स्थापित हो गई हैं्‌। ये इकाइयां वराछा, उधना, सचिन, आदि अनेक विस्तारों में उत्पादन रत हैं्‌। जीरावला के अनुसार जो उद्यमी रेग्जीन, लेदर आदि के बैग बनाते थे, वे मास्क उत्पादन से जुड़ गए्‌।
बताया जाता है कि अनेक मशीनें तो सूरत में जुगाड़ टेक्नोलॉजी से बन रही हैं यानी बैग उत्पाद में जो अल्ट्रासोनिक मशीनें उपयोग में आती थीं, उन्हीं के आधार पर तैयार की गई 15 से 25 लाख रु की कीमत में वाली मशीनों से मास्क का उत्पादन लिया जा रहा है। जीरावला के अनुसार चाइना मेड जो मशीन 22 हजार डॉलर में मिलती थी वे मशीनें एक एक लाख डॉलर तक बेची जाने लगीं, लेकिन इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अब घट कर 60 हजार डॉलर में बिक रही हैं्‌। जीरावला के अनुसार सूरत में 15 लाख से 1 करोड़ की लागत तक की मशीनें उपयोग में ली जा रही हैं्‌। नॉन वूवन उद्योग से जुड़े झिलमिल नॉन वूवन के प्रबंधक धर्मेश गोलेच्छा के अनुसार यह मास्क व पी पी ई किट उपयोगी नॉन वूवन के उत्पादन की सूरत विस्तार में लगभग 9 इकाइयां उत्पादनरत हैं्‌। मार्च, अप्रैल व मई माह में पी पी ई किट व मास्क की भारी मांग का असर इतना बढ़िया रहा कि इन्हीं उद्यमियों ने नई मशीनों का ऑर्डर दे डाला है। चीन उत्पादित ये मशीनें 5 करोड़ से 20 करोड़ तक की लागत की हैं्‌। ये उल्लेखनीय है कि एन-95 में जो तीन लेयर के नॉन वूवन उपयोग में लिए जाते हैं उनमें से सिर्फ स्पन बोल्ट ही सूरत में उत्पादित होता है जबकि मेल्ट बोल्ट व स्पन मेल्ट नॉन वूवन नासिक, भोपाल, पुणे, दमण आदि शहरों में उत्पादित होते हैं्‌। सूरत में स्पन बोल्ट मास्क के लेयर में 25, 40, 50, व 60 जी एस एम का नॉन वूवन उपयोग में आता है जो 130 से 150 रु प्रति किलो की दर में उपलब्ध है, जबकि पी पी ई किट के उपयोग में 70 से 90 जी एस एम नॉनवूवन उपयोग में आता है जो कि 160 रु प्रतिकिलो तक बिकता है।
यह उल्लेखनीय है कि मास्क उत्पादन में सूरत उभरता हुआ मार्केट है। ज्यादातर सिंगल लेयर के सर्जिकल मास्क सूरत में बनते हैं्‌। ठीक इसी तरह अहमदाबाद, राजकोट, मोरबी में भी नॉन वूवन मास्क तैयार होते हैं्‌। सूरत में लक्ष्मीपति ग्रुप के संजय सरावगी के अनुसार उन्होंने अनेक रंगों, डिजाइनों व पेटेंट में मास्क तैयार किये हैं जो कि महिलाएं साड़ियों व कुर्ती जीन्स, लेंगीज तथा सलवार कमीज व वेस्टर्न आउटफिट के मैचिंग में लगा सकती हैं्‌। सूरत में पार्वती समूह द्वारा भी बड़े पैमाने पर मास्क उत्पादित किए जाते हैं्‌। अब तो यहां तक कि फैंसी लहॅंगों, वेश तथा पुरुषों की शेरवानी, कुर्ते पायजामे पर मैच करते फैंसी मास्क उपलब्ध हैं्‌। प्रसिद्ध रेडमेड कम्पनी जोडियाक तक ने शर्ट के मैचिंग में मास्क की रेंज उपलब्ध कराई है। राजस्थान में साफों के कलर व डिजायन में मास्क मिल रहे हैं्‌।
इन दिनों शादियों में दूल्हे इस तरह के मास्क पहने दिखाई दे रहे हैं व नववधुएँ लहॅंगों व दुपट्टों व ओढ़नी तथा साड़ियों के मैचिंग के मास्क पहनी हुई नजर आ रही हैं्‌। मार्च, अप्रैल व मई महीनों में मास्क की डिमांड इतनी बेतहाशा बढी कि बालोतरा राजस्थान में पेटीकोट में उपयोग आने वाली पापलीन व ब्लाउज में लगने वाली केम्ब्रिज के भी मास्क बनने लगे। ये मास्क मेडिकल ब्ल्यू, ग्रीन, महरून, ब्लेक, सफेद , नेवी ब्ल्यू आदि रंगों में बिक रहे हैं्‌। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक सरकारी विभागों की मास्क व पी पी ई किट में खरीदी रुकी हुई नजर आई, दूसरी और देश भर में लाखों की तादाद में मास्क उत्पादकों के पास मास्क का स्टॉक बढ़ता जा रहा है। बड़े स्तर पर मास्क उत्पादन में लगी इकाइयां सरकार से मास्क पर रोक हटाने की मांग बार बार कर चुकी है। सूरत में भी 60 प्रतिशत नॉन वूवन इकाइयां एक्सपोर्ट ओरिएंटेड यूनिट्‌स हैं्‌। एक्सपोर्ट के अभाव में ये इकाइयां मजबूरन घरेलू मांग पर आधारित उत्पाद बना रही हैं्‌। देश के करोड़ों लोगों ने मास्क खरीद रखे हैं्‌। वे नॉनवूवन व कॉटन कपड़े के मास्क धो कर उपयोग में ले लेते है। अतः मास्क की नई मांग थमती नजर आ रही है। विभिन्न मेडिकल शॉप्स पर अब मास्क की पूछपरख दिखाई नहीं दे रही है। अगर एक्सपोर्ट पर रोक नहीं हटी तो मास्क उत्पादक मंदी व बेरोजगारी के संकट से घिर जाएंगे। इचलकरंजी, बालोतरा, मेरठ, पिलिखुआ तथा खादी ग्रामोद्योग उत्पादित मास्क की मांग घट जाने से यह स्टॉक उत्पादकों के जी का जंजाल बन सकता है। सबसे बड़ा संकट यह भी है कि मास्क की बिक्री अगर बन्द हुई तो इन मास्कों का उपयोग सिर्फ कारें व बर्तन आदि साफ करने में व मशीनों पर ही काम आ सकते हैं जो लागत से 10 प्रतिशत कीमत में भी नहीं बिक पाएंगे।

गणपत भंसाली
वरिष्ठ पत्रकार, सूरत

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