भीख में सिर्फ 1 रुपया लेने वाले बसप्पा का निधन, अंतिम संस्कार में जुटे हजारों

भीख में सिर्फ 1 रुपया लेने वाले बसप्पा का निधन, अंतिम संस्कार में जुटे हजारों

बस स्टैंड से रोज या अक्सर आवाजाही करने वालों के लिए बसप्पा एक परिचित चेहरा थे


हुब्बली/दक्षिण भारत। हूविना हदगली बस स्टैंड पर दशकों से भीख मांगकर गुजारा करने वाले शख्स बसप्पा उर्फ हक्का बश्या का सड़क हादसे में निधन हो गया। उनके बारे में प्रसिद्ध था कि वे भीख में केवल एक रुपया मांगते थे और इससे ज्यादा राशि स्वीकार नहीं करते थे। बहुत कम उम्र में ही अपने माता-पिता का साया छिनने के बाद बसप्पा को मानसिक​ स्थिति को लेकर कुछ समस्याएं थीं। उन्होंने बस स्टैंड के पास एक छोटे-से शेड को ही चार दशक तक अपना आशियाना बनाए रखा। 

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बसप्पा के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन में अ​नगिनत लोगों से भीख मांगी लेकिन  कभी ज़्यादा का लालच नहीं किया। इसीलिए लोग उन्हें काफी पसंद भी करते थे। जब बल्लारी में उनके निधन की खबर आई तो लोगों ने इस पर बहुत दुख जताया। उनके लिए यह किसी 'अपने' को खोने जैसा था। उनके अंतिम संस्कार में भी बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, यह संख्या करीब 4,000 थी।

मानते थे शुभ
बस स्टैंड से रोज या अक्सर आवाजाही करने वालों के लिए बसप्पा एक परिचित चेहरा थे। कई लोग उन्हें शुभ मानते थे। इस कारण किसी जरूरी काम पर जाने से पहले एक रुपया दे देते थे। हालांकि अब तक किसी को नहीं मालूम कि बसप्पा मूलत: कहां से थे।

बसप्पा बहुत कम उम्र में ही भीख मांगकर गुजारा करने लगे थे। स्थानीय लोगों की मानें तो उनकी उम्र 40 से 45 साल के बीच रही होगी। अक्सर लोग उन्हें खाना भी दे दिया करते थे। हफ्तेभर पहले बसप्पा को एक बस ने टक्कर मार दी थी। इसके बाद उन्हें सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां तीन दिन बाद उन्होंने दम तोड़ दिया। यह जानकारी सामने आते ही आसपास के लोग अस्पताल के बाहर इकट्ठे होने लगे। 

ज्यादा का लालच नहीं
स्थानीय नागरिकों के अलावा दुकानदारों और विभिन्न सामाजिक संगठनों के सदस्यों ने धनराशि इकट्ठी कर बसप्पा का अंतिम संस्कार कराया, जहां तीन से चार हजार लोगों ने उन्हें नम आंखों से विदाई दी। 

बसप्पा के बारे में प्रसिद्ध था कि वे भीख में ज्यादा राशि का लालच कर लोगों को परेशान नहीं करते थे। इसलिए हर कोई उनकी मदद करना चाहता था। यहां से रोजाना आवाजाही करने वाले कुछ लोग तो सिर्फ इसलिए सिक्के साथ लेकर चलते थे ताकि वे बसप्पा का दे सकें। बसप्पा मुस्कुरा कर सिक्का लेते और दुआ देते थे।

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