चेन्नई। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने तमिलनाडु और केंद्र शासित प्रदेश पुदुच्चेरी स्थित विभिन्न जेलों में अपनी मां के आपराधिक मामलों में सजा होने के कारण उनके साथ बंद बच्चों की बात सामने आने पर नोटिस जारी किया है। एनएचआरसी ने कहा है कि मीडिया में इस प्रकार की खबरें आ रही है तमिलनाडु और पुदुच्चेरी सहित कई राज्यों की जेलों में बच्चे अपनी मां के साथ बंद है और इसलिए यह नोटिस जारी किया गया है। मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार को अपने यहां की जेलों में बंद बच्चों का पूरा विवरण सौंपने का निर्देश दिया है।आयोग ने तमिलनाडु और पुदुच्चेरी के मुख्य सचिवों और कारागार महानिदेशक को भी नोटिस जारी किया है। आयोग ने नोटिस में सचिवों और कारागार महानिदेशकों को कहा है कि वह अपने अधिकार क्षेत्र में स्थित जेलों में अपनी मां के साथ बंद बच्चों के बारे में आंक़डों के साथ पूर्ण रिपोर्ट पेश करें। एनएचआरसी ने अधिकारियों ने कहा है कि इन बच्चों के मनोवैज्ञानिक और शारीरिक विकास के साथ-साथ शैक्षिक उन्नयन के लिए कदम उठाना भी जरूरी है। अधिकारियों को अगले छह सप्ताह के अंदर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया गया है।जेल में अपनी माताओं के साथ बंद बच्चों में से कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदाय से हैं। आयोग ने कहा है कि मीडिया में आई जानकारी अगर सही है तो निर्दोष बच्चों के मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। जो बच्चे जेल में अपनी मां के साथ रहने को मजबूर है वह न तो दोषी है और न ही उनके खिलाफ कोई मामला दर्ज है। मानवाधिकार आयोग ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार जेल में बिना किसी गलती के बंद यह बच्चे भोजन, आश्रय, चिकित्सा देखभाल, कप़डे, शिक्षा और मनोरंजन सुविधाओं के हकदार हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के बावजूद उन्हें कुछ भी उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। ।आयोग ने कहा है कि जेल में बिना कारण के बंद किसी भी बच्चे को समुचित देखभाल की आवश्यकता होती है लेकिन जिस प्रकार की खबरें सामने आ रही हैं उसके अनुसार ऐसा लगता है कि जमीनी हकीकत कुछ और ही है और यही कारण है कि मानवाधिकार इस मामले में स्वत: संज्ञान ले रहा है। सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश के अनुसार बच्चों के साथ बंद महिला कैदियों के मामलों को शीघ्रता से निपटाया जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है और कई मामलों में बच्चों के साथ बंद महिला कैदी पिछले तीन से चार वर्ष से जेल मंे बंद हैं। आयोग के अनुसार राज्य में बच्चों के साथ बंद कई महिला कैदियों को सक्षम अदालतों द्वारा जमानत को दे दी गई है लेकिन उनकी रिहाई नहीं हो सकी है क्योंकि वह जेल में जमानत के लिए दी जाने वाली श्योरिटी की रकम जमा करवाने में असमर्थ हैं।गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार यदि किसी महिला का तीन वर्ष से कम आयु का बच्चा है और उस किसी मामले मंें जेल की सजा होती है तो सरकार द्वारा बच्चों को क्रेच में रखने की अनुमति दी जाएगी और २ से ३ वर्ष के बीच जेल परिसर के बाहर जेल अधिकारियों द्वारा संचालित नर्सरी में ऐसे बच्चों की देखभाल की जाएगी और जब तक कि छोटे बच्चों कके जैविक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक विकास के लिए सुविधाएं सुनिश्चित नहीं की जाती है उन्हें जेलों में नहीं रखा जाना चाहिए। राज्य में बच्चों के अधिकार के लिए कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं ने मानवाधिकार आयोग द्वारा की गई इस कार्रवाई की सराहना की है।
और केंद्र शासित प्रदेश पुदुच्चेरी स्थित विभिन्न जेलों में अपनी मां के आपराधिक मामलों में सजा होने के कारण उनके साथ बंद बच्चों की बात सामने आने पर नोटिस जारी किया है। एनएचआरसी ने कहा है कि मीडिया में इस प्रकार की खबरें आ रही है तमिलनाडु और पुदुच्चेरी सहित कई राज्यों की जेलों में बच्चे अपनी मां के साथ बंद है और इसलिए यह नोटिस जारी किया गया है। मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार को अपने यहां की जेलों में बंद बच्चों का पूरा विवरण सौंपने का निर्देश दिया है।आयोग ने तमिलनाडु और पुदुच्चेरी के मुख्य सचिवों और कारागार महानिदेशक को भी नोटिस जारी किया है। आयोग ने नोटिस में सचिवों और कारागार महानिदेशकों को कहा है कि वह अपने अधिकार क्षेत्र में स्थित जेलों में अपनी मां के साथ बंद बच्चों के बारे में आंक़डों के साथ पूर्ण रिपोर्ट पेश करें। एनएचआरसी ने अधिकारियों ने कहा है कि इन बच्चों के मनोवैज्ञानिक और शारीरिक विकास के साथ-साथ शैक्षिक उन्नयन के लिए कदम उठाना भी जरूरी है। अधिकारियों को अगले छह सप्ताह के अंदर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया गया है।जेल में अपनी माताओं के साथ बंद बच्चों में से कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदाय से हैं। आयोग ने कहा है कि मीडिया में आई जानकारी अगर सही है तो निर्दोष बच्चों के मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। जो बच्चे जेल में अपनी मां के साथ रहने को मजबूर है वह न तो दोषी है और न ही उनके खिलाफ कोई मामला दर्ज है। मानवाधिकार आयोग ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार जेल में बिना किसी गलती के बंद यह बच्चे भोजन, आश्रय, चिकित्सा देखभाल, कप़डे, शिक्षा और मनोरंजन सुविधाओं के हकदार हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के बावजूद उन्हें कुछ भी उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। ।आयोग ने कहा है कि जेल में बिना कारण के बंद किसी भी बच्चे को समुचित देखभाल की आवश्यकता होती है लेकिन जिस प्रकार की खबरें सामने आ रही हैं उसके अनुसार ऐसा लगता है कि जमीनी हकीकत कुछ और ही है और यही कारण है कि मानवाधिकार इस मामले में स्वत: संज्ञान ले रहा है। सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश के अनुसार बच्चों के साथ बंद महिला कैदियों के मामलों को शीघ्रता से निपटाया जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है और कई मामलों में बच्चों के साथ बंद महिला कैदी पिछले तीन से चार वर्ष से जेल मंे बंद हैं। आयोग के अनुसार राज्य में बच्चों के साथ बंद कई महिला कैदियों को सक्षम अदालतों द्वारा जमानत को दे दी गई है लेकिन उनकी रिहाई नहीं हो सकी है क्योंकि वह जेल में जमानत के लिए दी जाने वाली श्योरिटी की रकम जमा करवाने में असमर्थ हैं।गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार यदि किसी महिला का तीन वर्ष से कम आयु का बच्चा है और उस किसी मामले मंें जेल की सजा होती है तो सरकार द्वारा बच्चों को क्रेच में रखने की अनुमति दी जाएगी और २ से ३ वर्ष के बीच जेल परिसर के बाहर जेल अधिकारियों द्वारा संचालित नर्सरी में ऐसे बच्चों की देखभाल की जाएगी और जब तक कि छोटे बच्चों कके जैविक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक विकास के लिए सुविधाएं सुनिश्चित नहीं की जाती है उन्हें जेलों में नहीं रखा जाना चाहिए। राज्य में बच्चों के अधिकार के लिए कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं ने मानवाधिकार आयोग द्वारा की गई इस कार्रवाई की सराहना की है।