क्या जलीकट्टू पर फिर से लग जाएगा प्रतिबंध?
क्या जलीकट्टू पर फिर से लग जाएगा प्रतिबंध?
चेन्नई। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सांडों के कूब़ड पक़ड के खेले जाने वाले पारंपरिक खेल जल्लीकट्टू से संबंधित मामले को संविधान पीठ के समक्ष भेज दिया। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायाधीश आरएफ नरीमन की पीठ ने संविधान पीठ को इस मामले को सौंपते हुए इस संबंध मंे पांच प्रश्नों का जवाब देने के लिए कहा। न्यायाधीश नरीमन ने इस मामले में आदेश जारी करते हुए कहा कि हमने संविधान पीठ के लिए पांच प्रश्न तैयार किए हैं। इस मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले वर्ष १२ दिसंबर को कहा था कि वह तमिलनाडु और महाराष्ट्र के जलीकट्टू और बैलगा़डी दौ़ड को अनुमति देने वाले कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष भेज दिया जाएगा। अब सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के बाद इस बात को लेकर चर्चा शुरु हो गई है कहीं राज्य में एक बार फिर से जलीकट्टू पर प्रतिबंध तो नहीं लग जाएगा। अदालत ने इस मामले पर अपना आदेश सुरक्षित रखते हुए कहा था कि ब़डी पीठ यह तय करेगी कि क्या इन राज्यों के पास इस तरह का कानून बनाने के लिए ’’विधायी क्षमता’’ है, जिसमें ’’जल्लीकट्टू’’ और बैलगा़डी दौ़ड जैसे खेलों को अनुमति दी जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि क्या यह दोनों खेल संविधान की धारा २९(१) के तहत सांस्कृतिक अधिकारों की श्रेणी में आते हैं। तमिलनाडु और महाराष्ट्र ने केंद्रीय कानून, पशु निर्ममता पर प्रतिबंध अधिनियम, १९६० में संसोधन किया है और और क्रमशः जल्लीकट्टू और बैलगा़डी दौ़ड खेल आयोजित करने की अनुमति दी है। सर्वोच्च न्यायालय में राज्य द्वारा कानूनों मंे किए गए संसोधनों को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते संविधान के अनुच्छेद २५ (धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार) और संविधान के अनुच्छेद २९ (१) (सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की सुरक्षा) का उल्लेख करते हुए कहा था ऐसे कानून बनाने के लिए राज्यों को सक्षम नहीं किया जा सकता है। ज्ञातव्य है कि जल्लीकट्टू का आयोजन राज्य में पांेगल पर्व के अवसर पर होता है।उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष ६ नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने पशु अधिकारों के लिए काम करने वाली गैर सरकारी संस्थान पीपुल्स फॉर इथिकल ट्रिटमेंट विद एनीमल्स इन इंडिया (पेटा) द्वारा राज्य के कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर राज्य में खेल की अनुमति देने वाली तमिलनाडु सरकार से जवाब भी मांगा था तथा इस मामले को इसी प्रकार के अन्य संबंधित मुद्दों से जो़ड दिया गया था। पेटा ने राज्य द्वारा पशुओं के साथ क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) विधेयक २०१७ कानून को कई आधार पर गलत बताया था। पेटा कि याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करते हुए राज्य में जलीकट्टू के आयोजन को अनुमति दी है। पेटा ने आरोप लगाया है कि जल्लीकट्टू एक रक्तरंजित खेल है जिसमें बैलों और सांडों को विभिन्न प्रकार की क्रूरताओं का सामना करना प़डता है। इससे पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष २०१४ में राज्य में जलीकट्टू के आयोजन की अनुमति देने की मांग के साथ दायर की गई तमिलनाडु सरकार की याचिका को खारिज कर दिया था कि तमिलनाडु में जलीकट्टू का आयोजन नहीं हो सकता। न्यायालय ने वर्ष २०१४ के अपले आदेश में कहा था कि बैल या सांड जैसे जानवरों को करतब दिखाने या प्रदर्शन के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि चाहे तमिलनाडु हो या महाराष्ट्र अथवा देश में कहीं भी जलीकट्टू या बैलगा़डी दौ़ड का आयोजन नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश में इस प्रकार के खेल के आयोजनों पर प्रतिबंध लगा दिया था।