सीएम कुर्सी चली जाने के बाद अब किस ओर जाएगी उद्धव ठाकरे की राजनीति?
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि शिवसेना में ‘ऊपर से नीचे तक विभाजन’ अपरिहार्य है
मुंबई/भाषा। शिवसेना में टूट से दिखता है कि उद्धव ठाकरे का अपने विधायकों और सांसदों पर नियंत्रण कम हो रहा है। हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, यह कहना जल्दबाजी होगी कि पार्टी के संस्थापक बाल ठाकरे की विरासत लुप्त हो रही है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि शिवसेना में ‘ऊपर से नीचे तक विभाजन’ अपरिहार्य है और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (61) अपने पिता और पार्टी के संस्थापक दिवंगत बाल ठाकरे की विरासत को भुना नहीं पाए हैं।एक राजनीतिक विश्लेषक ने दावा किया, ठाकरे की विरासत उनके गुट में बनी रहेगी, लेकिन एकमात्र स्वामित्व नहीं रहेगा।" उन्होंने कहा, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या शिवसेना सिर्फ कागजों पर ही रह जाएगी या उसे जनता का समर्थन हासिल होगा।
पिछले महीने शिवसेना विधायक दल में विभाजन हो गया था। उसके बाद उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना को मंगलवार को एक और झटका लगा, जब लोकसभा में उसके 19 सदस्यों में से 12 ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के प्रति निष्ठा जताई।
शिवसेना का गढ़ माने जाने वाले ठाणे जिले के कुछ स्थानीय कार्यकर्ता भी शिंदे खेमे में शामिल हो गए हैं।
एक राजनीतिक पर्यवेक्षक ने बताया कि 1966 में शिवसेना की स्थापना करने वाले बाल ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच एक बुनियादी अंतर है। उन्होंने दावा किया, ‘पुत्र को पिता की विरासत स्वत: मिली क्योंकि पिता ने उन्हें (पुत्र को) नेतृत्व की भूमिका सौंपी। उद्धव ठाकरे ने अपना नेतृत्व स्थापित करने के लिए बहुत प्रयास नहीं किया। उन्होंने हर चीज को हल्के में लिया।’
उद्धव ठाकरे ने 2003 में शिवसेना का नेतृत्व संभाला और उन्हें तब से नारायण राणे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख तथा अपने चचेरे भाई राज ठाकरे जैसे नेताओं के असंतोष का सामना करना पड़ा। उस समय बाल ठाकरे जीवित थे।
राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा, अपनी विरासत और पार्टी पर पकड़ खोने की परिणति पिछले महीने एकनाथ शिंदे के विद्रोह के रूप में दिखी जब बाल ठाकरे मौजूद नहीं थे। बाल ठाकरे का नवंबर 2012 में निधन हो गया था।
उन्होंने कहा, ‘उद्धव ठाकरे से बहुत उम्मीद नहीं की जा सकती है क्योंकि वह अपनी भविष्य की भूमिका को लेकर भ्रमित हैं। वह उन लोगों पर दोषारोपण करते रहे हैं जो उनसे अलग हो गए। लेकिन साथ ही वह उनकी वापसी का स्वागत भी करना चाहते हैं। वह सुलह या अलग होने के संबंध में अपना मन नहीं बना रहे।’
एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि ठाकरे की विरासत के संबंध में अभी फैसला करना जल्दबाजी होगी क्योंकि शिवसेना के घटनाक्रम को अभी करीब एक महीना ही हुआ है। उन्होंने कहा, पार्टी की संरचना और कामकाज को देखते हुए, यह घटनाक्रम अप्रत्याशित था। यह पता लगाना होगा कि बड़े पैमाने पर विद्रोह के बाद भी आम शिव सैनिक क्यों चुप हैं।
एक अन्य राजनीतिक टिप्पणीकार ने दावा किया कि शिवसेना में ऊपर से नीचे तक विभाजन अपरिहार्य है। उन्होंने कहा, विद्रोही शिवसेना से बाहर नहीं जाना चाहते। वे पार्टी चाहते हैं, और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) चाहती है कि शिवसेना मातोश्री (मुंबई में ठाकरे परिवार का घर) से बाहर निकले।
उन्होंने कहा, ‘उद्धव ठाकरे ने ऐसे समय पर पहली बार बड़े विद्रोह का सामना किया है, जब उनके पिता मौजूद नहीं हैं। ठाकरे की विरासत उनके गुट में बनी रहेगी, लेकिन एकमात्र स्वामित्व नहीं रहेगा।’