प्रधानमंत्री ने सिविल सेवा अधिकारियों से देश की एकता व अखंडता से कोई समझौता न करने का आह्वान किया
हम एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में है और हमारे सामने तीन लक्ष्य साफ-साफ होने चाहिए
नई दिल्ली/दक्षिण भारत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को सिविल सेवा दिवस के अवसर पर यहां विज्ञान भवन में लोक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिए पुरस्कार प्रदान करने के बाद सिविल सेवा अधिकारियों को संबोधित। इस अवसर पर उन्होंने सिविल सेवा अधिकारियों को शुभकामनाएं दीं और कहा कि आज जिन साथियों को ये अवार्ड मिले हैं, उनको, उनकी पूरी टीम को और उस राज्य को भी मेरी तरफ से बहुत बहुत बधाई।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आप जैसे साथियों से इस प्रकार से संवाद मैं लगभग 20-22 साल से कर रहा हूं। पहले मुख्यमंत्री के रूप में करता था और अब प्रधानमंत्री के रूप में कर रहा हूं। उसके कारण एक प्रकार से कुछ आपसे सीखता हूं और कुछ अपनी बातें आप तक पहुंचा पाता हूं।प्रधानमंत्री ने कहा कि इस बार का आयोजन रूटीन प्रक्रिया नहीं है, मैं इसे विशेष समझता हूं। विशेष इसलिए क्योंकि आजादी के अमृत महोत्सव में जब देश आजादी के 75 साल मना रहा है, तब हम इस समारोह को कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इसी तरह राज्यों में जो चीफ सेक्रेटरी के रूप में कार्य करके गए हैं, एक बार राज्य के मुख्यमंत्री उन सबको बुला लें। देश के प्रधानमंत्री, जितने भी कैबिनेट सेक्रेटरी रहे हैं, उनको बुला लें। मैं चाहूंगा कि आजादी के इस अमृत काल में आप अपने डिस्ट्रिक्ट में जो पहले कलेक्टर के रूप में काम करके गए हैं, एक बार अगर हो सके तो उनका मिलने का कार्यक्रम बनाइए। आपके पूरे जिले के लिए वह एक नया अनुभव होगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि उन सबको स्मरण करना, उनका सम्मान करना, यह भी आजादी के अमृत काल में सिविल सर्विस को ऑनर करने वाला विषय बन जायेगा। आजादी के अमृत काल, 75 साल की इस यात्रा में भारत को आगे बढ़ाने में सरदार पटेल का सिविल सर्विस का जो तोहफा है, इसके जो ध्वजवाहक लोग रहे हैं, उन्होंने इस देश की प्रगति में कुछ न कुछ योगदान दिया ही है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हम एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में है और हमारे सामने तीन लक्ष्य साफ-साफ होने चाहिए। हम पिछली शताब्दी की सोच और नीति नियमों से अगली शताब्दी की मजबूती का संकल्प नहीं कर सकते। इसलिए हमारी व्यवस्थाओं, नियमों, परंपराओं में पहले शायद बदलाव लाने में 30-40 साल चले जाते होंगे, तो चलता होगा। लेकिन तेज गति से बदलते हुए विश्व में हमें पल-पल के हिसाब से चलना पड़ेगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि पहला लक्ष्य है कि देश में सामान्य से सामान्य मानव के जीवन में बदलाव आए, उसके जीवन में सुगमता आए और उसे इसका एहसास भी हो। दूसरा लक्ष्य- आज हम कुछ भी करें, उसको वैश्विक सन्दर्भ में करना समय की मांग है। मैं तीसरे लक्ष्य की बात करूं तो यह एक प्रकार से दोहरा रहा हूं। व्यवस्था में हम कहीं पर भी हों, लेकिन जिस व्यवस्था से निकले हैं, उसमें हमारी मुख्य जिम्मेदारी है देश की एकता और अखंडता।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की संस्कृति की यह विशेषता है कि हमारा देश राज्य व्यवस्थाओं से नहीं बना है। हमारा देश राजसिंहासनों की बपौती नहीं रहा है। यह देश सदियों से, हजारों वर्ष के लंबे कालखण्ड से हमारी जो परंपरा रही है, वो जनसामान्य के सामर्थ्य को लेकर चलने की परंपरा रही है। गवर्नेंस में रिफॉर्म एक नित्य और सहज प्रक्रिया एवं प्रयोगशील व्यवस्था होनी चाहिए। अगर प्रयोग सफल नहीं हुआ, तो छोड़ते हुए चले जाने का साहस होना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में सैकड़ों कानून ऐसे थे, जो देश के नागरिकों के लिए बोझ बन गए थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद पहले 5 साल में मैंने 1,500 ऐसे कानून खत्म किए थे। लेकिन मैं मूलतः राजनीति के स्वभाव का नहीं हूं, मैं जननीति से जुड़ा हुआ इंसान हूं, जनसामान्य की जिंदगी से जुड़ा हुआ इंसान हूं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि बीते 8 साल के दौरान देश में अनेक बड़े काम हुए। इनमें से अनेक अभियान ऐसे हैं जिनके मूल में व्यवहारगत परिवर्तन हैं। यह कठिन काम होता है और राजनेता तो कभी इसमें हाथ लगाने की हिम्मत ही नहीं करता। यह जो व्यवहारगत परिवर्तन की मेरी कोशिश रही है, यह समाज की मूलभूत चीजों में परिवर्तन लाने का जो प्रयास हुआ है, सामान्य मानव की जिंदगी में बदलाव लाने की मेरी आशा, आकांक्षा है, उसी का हिस्सा है।