विपक्ष में ‘राजा’ तो बहुत लेकिन जो मोदी को टक्कर दे, वैसा ‘महाराजा’ अभी नहीं दिखता

विपक्ष में ‘राजा’ तो बहुत लेकिन जो मोदी को टक्कर दे, वैसा ‘महाराजा’ अभी नहीं दिखता

बेरोजगारी, महंगाई, किसान आंदोलन और प्रशासनिक विफलताएं कम से कम उत्तर प्रदेश में तो मुद्दा थीं


नई दिल्ली/भाषा। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शानदार प्रदर्शन करते हुए चार राज्यों की सत्ता में वापस की और आम आदमी पार्टी (आप) को पहली बार दिल्ली के बाहर किसी राज्य में प्रचंड बहुमत मिला। इन चुनावों में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की जमीन और दरक गई तथा समाजवादी पार्टी पहले से मजबूत होकर उभरी।

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ऐसे में देश की भावी राजनीति की दशा और दिशा क्या शक्ल लेगी और क्या विपक्षी दल एकजुट होकर 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सामने कोई कड़ी चुनौती पेश कर पाएंगे, इन्हीं सब मुद्दों पर जानेमाने चुनाव विश्लेषक और ‘‘एक्सिस माय इंडिया’’ के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक प्रदीप गुप्ता से पांच सवाल’ और उनके जवाब:

सवाल: पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे का कैसे विश्लेषण करेंगे आप?

जवाब: चुनाव में चार चीजें होती हैं। दावे, वादे, मुद्दे और इरादे। निवर्तमान सरकार अपने कामकाज को लेकर दावे करती है तो विपक्षी दल वादे करते हैं कि हम आएंगे तो यह सब काम करेंगे। हर चुनाव के दौरान जमीन पर आम जनमानस के भी कुछ मुद्दे होते हैं। जैसे इस चुनाव के अंदर बेरोजगारी, महंगाई और किसानों के आंदोलन से संबंधित मुद्दे थे। कुछ स्थानीय मुद्दे भी थे। चौथी चीज है इरादे। जनता की आने वाली हर सरकार से अपनी आशाएं व अपेक्षाएं होती हैं और वह सोचती है कि कौन सी सरकार उसकी अपेक्षाओं को पूरा करने में सक्षम है। चुनाव में ताल ठोक रहे दलों के ‘ट्रैक रिकॉर्ड’ के आधार पर जनता उन्हें स्वीकार करने या खारिज करने को लेकर अपना मन बनाती है। आज की तारीख में भाजपा सरकार की विश्वसनीयता का ग्राफ और उसका दायरा बहुत बड़ा हो गया है। उसने अपने प्रदर्शन और जमीनी स्तर पर योजनाओं को उतारकर यह मुकाम हासिल किया है। आज का मतदाता नेताओं से जवाबदेही चाहता है। वह परखता है कि उसकी उम्मीदों पर कौन सी पार्टी खरी उतरेगी। इसी के आधार पर वह अपना चयन करता है कि किसको सरकार बनाने का अवसर दिया जाए। इन नतीजों से जनता का रूख स्पष्ट होता है।

सवाल: तो क्या इन चुनावों में महंगाई, बेरोजगारी और किसानों से जुड़े सवाल कोई मुद्दा नहीं थे और इनका कोई असर नहीं हुआ?

जवाब: ऐसा नहीं है। बेरोजगारी, महंगाई, किसान आंदोलन और प्रशासनिक विफलताएं कम से कम उत्तर प्रदेश में तो मुद्दा थीं। इनकी वजह से भाजपा बैकफुट पर भी थी। यह मुद्दे बिलकुल जमीन पर थे। पर सवाल आता है कि क्या यह सौ प्रतिशत जनमानस को प्रभावित करते हैं? महंगाई और बेरोजगारी का मुद्दा व्यापक स्तर पर असर डालता है। भाजपा को गठबंधन के साथ उत्तर प्रदेश में 46 प्रतिशत मत मिले यानी उसके विरोध में 54 प्रतिशत वोट गए। इसका मतलब है कि यह मुद्दे थे। लेकिन सवाल है यह कितना असर डाल रहे हैं। जब मतदाता बटन दबाता है तो वह देखता है कि उसकी समस्याओं का समाधान कौन करेगा। यहां विश्वसनीयता की बात आती है। उत्तर प्रदेश में यह विश्वसनीयता भाजपा के पक्ष में गई।

सवाल: राष्ट्रीय फलक पर इन चुनावों क्या असर देखते हैं आप?

जवाब: जब इतना बड़ा जनादेश मिलता है और चार राज्यों की सत्ता में वापसी हो रही हो तो निश्चित तौर पर यह असर करता है। यदि आपको लोकसभा का चुनाव जीतना है तो देश के 75 प्रतिशत भू-भाग में अच्छा प्रदर्शन करना पड़ेगा। तभी किसी पार्टी की जीत हो पाना संभव है। अन्यथा जनादेश किसी एक पार्टी के पक्ष में नहीं होगा। भाजपा विश्वसनीयता और 75 प्रतिशत भू-भाग तक पहुंच के मामले में अभी तो बहुत ऊपर दिखाई दे रही है। दूसरी तरफ विपक्ष बिखरा हुआ है और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का प्रदर्शन तो इतने निम्न स्तर पर आ चुका है कि उससे कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है।

सवाल: आपके लिहाज से कांग्रेस को वापसी करने के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब: आज की तारीख में कांग्रेस की जो स्थिति है, उसमें ऊपर से नीचे तक बदलाव और परिवर्तन की जरूरत है। यानी उसमें आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है। जनता की विश्वसनीयता हासिल करने के लिए उसे नए सिरे से खुद को पेश करना होगा।

सवाल: 2024 के लोकसभा चुनाव के हिसाब से क्या स्थिति उभरती देख रहे हैं आप, अगर विपक्ष एकजुट होता है तो?

जवाब: आज 16 राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगियों की सरकारें हैं। चार राज्यों में कांग्रेस या कांग्रेस समर्थित सरकारें हैं। दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार हो गई। इसके बाद जैसे ही अन्य राज्यों का हम रुख करेंगे, वहां तमाम राजनीतिक क्षत्रपों का कब्जा है। यह वास्तविक स्थिति है। विपक्ष के साथ दिक्कत यह है कि उसके नेता एकजुट हो भी जाएं तो क्या वह भाजपा को कोई चुनौती दे पाएं? ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, शरद पवार, नवीन पटनायक, एम के स्टालिन और वामपंथी दल अपने-अपने प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में तो बहुत माद्दा रखते हैं और वह अपने-अपने इलाकों में आज राजा हैं। लेकिन सवाल है कि महाराजा कौन होगा? राजा तो बहुत सारे हैं, महाराजा तो कोई एक ही हो सकता है। और क्या वह महाराजा प्रधानमंत्री मोदी के कद के समक्ष ठहर पाएगा? आज की तारीख में इस सवाल का जवाब ना है। हालांकि समय बहुत बलवान होता है और परिस्थितियां सब सिखा देती हैं। दो साल बाद क्या होगा, इसके लिए तो हमें इंतजार करना पड़ेगा।

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