चुनाव, कुंभ, कोरोना … मोदी सरकार की आलोचना पर क्या कहती है यह रिपोर्ट?
चुनाव, कुंभ, कोरोना … मोदी सरकार की आलोचना पर क्या कहती है यह रिपोर्ट?
नई दिल्ली/दक्षिण भारत। कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच केंद्र सरकार निशाने पर है। दुनियाभर का मीडिया भारत सरकार की आलोचना में जुटा है। हालांकि इस बीच कुछ रिपोर्टों में महामारी के हालिया मामलों का जिक्र कर इसका दूसरा पहलू बताने की कोशिश की गई है। इसके मुताबिक, संक्रमण के मामले बढ़ने के कारण कुछ और भी हैं, जिनको लेकर जागरूकता की जरूरत है और सबके सहयोग से ही इस पर काबू पाया जा सकता है।
इसी सिलसिले में गल्फ न्यूज ने भारत में कोरोना की दूसरी लहर और उससे उपजे सवालों पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है। इसमें पहला सवाल है, ‘क्या भारत दूसरी लहर को भांपने में विफल रहा?’ रिपोर्ट के अनुसार, एक जनवरी, 2021 से 10 मार्च, 2021 के बीच भारत में एक दिन में नए मामलों का औसत 20,000 से कम था। हालांकि भारत सरकार सतर्क थी और उसने विभिन्न राज्य सरकारों को तेजी से टेस्ट करने, बुनियादी स्वास्थ्य ढांचे में सुधार करने और ‘तैयार’ रहने का आह्वान किया था।17 मार्च को, जब दैनिक मामले अभी भी 20,000 की सीमा में थे, प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यमंत्रियों के साथ विस्तृत बैठक की, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से निरंतर सतर्कता बरतने की सलाह दी, ताकि सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क जैसे नियम सख्ती से लागू किए जा सकें। रिपोर्ट के अनुसार, इस दौरान कई राज्यों ने ढील बरती, विशेष रूप से वे राज्य जहां दूसरी लहर उत्पन्न हुई प्रतीत होती है, जैसे- महाराष्ट्र, केरल, दिल्ली, छत्तीसगढ़ और पंजाब। जब तक वे अपने प्रयासों में सख्ती बरतना शुरू करते, दूसरी लहर शक्तिशाली हो गई थी।
कोरोना काल में विधानसभा चुनाव
इस रिपोर्ट में कोरोना काल में कराए गए विधानसभा चुनाव के फैसले का दूसरा पक्ष दिखाया गया है। इसके मुताबिक, चुनावों पर रोक लगाना अलोकतांत्रिक होता। हालांकि सोशल मीडिया पर एक चर्चा ग्रुप में इस बात का भी जिक्र था कि अगर असम, तमिलनाडु, बंगाल, केरल और पुड्डुचेरी में विधानसभा चुनावों पर रोक लगा दी जाती तो मोदी सरकार को यह कहकर निशाने पर लिया जाता कि उसने देश में ‘तानाशाही’ लागू कर दी है और लोकतंत्र को खत्म किया जा रहा है।
गल्फ न्यूज की इस रिपोर्ट में बताया गया कि भाजपा ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग के समक्ष यह प्रस्ताव रखा था कि बड़ी रैलियां नहीं होनी चाहिए, केवल वर्चुअल रैलियां होंं। हालांकि, तब कई पार्टियों ने इस प्रस्ताव का यह कहते हुए विरोध किया कि भाजपा का इंटरनेट पर दबदबा है, इसलिए वह वर्चुअल रैलियों की वकालत कर रही है।
यह भी जानना जरूरी है कि रैलियां सिर्फ भाजपा ने नहीं कीं। ममता बनर्जी, राहुल गांधी समेत विपक्ष के तमाम बड़े नेता इनमें नजर आए। वहीं, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, दिल्ली और पंजाब, जहां विधानसभा चुनाव नहीं थे, वहां मार्च के आखिर तक संक्रमितों की संख्या बढ़ने लगी। यह आंकड़ा उन आरोपों से मेल नहीं खाता जिनमें कोरोना महामारी के प्रसार का सारा दोष चुनावों पर डाल दिया गया है।
क्या कुंभ बना कोरोना की वजह?
इस रिपोर्ट में उन आरोपों का भी जवाब देने की कोशिश की गई है जिनमें कुंभ के कारण कोरोना संक्रमण के मामलों में तेजी आने की बात कही गई है। रिपोर्ट के अनुसार, कुंभ आयोजन की तिथियां सरकार द्वार नहीं, संतों और परंपराओं द्वारा तय की जाती हैं। फरवरी में जब मामलों में गिरावट आई तो कुंभ के लिए मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और अन्य चिकित्सा नियमों को सख्ती के साथ लागू किया गया था।
जब पहली अप्रैल को कुंभ शुरू हुआ, तो भारत में 72,000 मामले सामने आए थे। इनमें छह राज्यों – महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, केरल, कर्नाटक, दिल्ली और पंजाब में 76% से अधिक मामले थे। इनमें से किसी का भी कुंभ से कोई लेना-देना नहीं था। वहीं, एक अप्रैल को उत्तराखंड में 293, 8 अप्रैल को 1,100 मामले थे। हालांकि, पूरे देश में महामारी बढ़ने के कारण, प्रधानमंत्री मोदी ने खुद हस्तक्षेप किया और संतों से अनुरोध किया कि वे नियत तिथि से पहले कार्यक्रम संपन्न करें और उन्होंने वैसा ही किया।
रिपोर्ट में सेंट्रल विस्टा को फिजूलखर्ची करार देने पर कहा गया है कि इससे श्रमिकों को रोजगार प्राप्त होगा और इससे आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने के प्रयासों में मदद मिलेगी। टीकाकरण अभियान के बारे में कहा गया है कि भारत में वैक्सीन शोध और निर्माण पर तेजी से काम हुआ। कोवैक्सीन जैसे टीके रिकॉर्ड समय में सामने आए जो स्वदेशी टीका है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अनुमोदित एक विशेष कार्यक्रम के तहत, जहां आईसीएमआर ने रिकॉर्ड समय में वैक्सीन विकसित करने के लिए भारत बायोटेक के साथ भागीदारी की। आंकड़ों पर गौर करें तो भारत सबसे तेजी से टीकाकरण करने वाला देश है।