कर्नाटक प्रकरण में तड़के सुनवाई की जरूरत नहीं थी : रोहतगी

कर्नाटक प्रकरण में तड़के सुनवाई की जरूरत नहीं थी : रोहतगी

नई दिल्ली/भाषापूर्व अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने गुरुवार को त़डके उच्चतम न्यायालय में तर्क दिया कि कर्नाटक में बी एस येद्दियुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाने के राज्यपाल के फैसले के खिलाफ कांग्रेस की याचिका पर देर रात सुनवाई मुंबई बम विस्फोट कांड में मौत की सजा पाने वाले याकूब मेमन के जीवन और मरण जैसे मामले के समान नहीं है। दूसरी ओर, कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप जार्ज चौधरी ने तत्काल ही इसका प्रतिवाद किया और कहा कि इस मामले में संविधान को फांसी दी जानी थी। न्यायमूर्ति ए के सिकरी की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मुकुल रोहतगी ने राज्यपाल के फैसले को चुनौती देने वाली कांग्रेस – जद (एस ) की याचिका का पुरजोर विरोध किया और कहा कि यह याकूब मेमन को फांसी देने वाली स्थिति नहीं है जिसमें आधी रात में सुनवाई की आवश्कयता हो। याकूब मेमन को साल २०१५ में फांसी पर लटकाने से कुछ घंटे पहले ही वकीलों और मानव अधिकार कार्यकर्ताओं ने मेमन के मामले में शीर्ष अदालत में याचिका दायर करके इस पर रोक लगाने का अनुरोध किया था। इस मामले में शीर्ष अदालत ने २९ जुलाई, २०१५ को अप्रत्याशित कदम उठाते हुये त़डके तीन बजे तक करीब ९० मिनट सुनवाई के बाद मेमन की अपील खारिज कर दी थी। मेमन को नागपुर जेल में ३० जुलाई, २०१५ को फांसी दे दी गयी थी। कर्नाटक मामले में भाजपा विधायकों गोविन्द एम कार्जोल, सी एम उदासी और बासवाराज बोम्मई की ओर से बहस करते हुये रोहतगी ने कहा कि दो विधायकों ने देर रात टीवी पर इस घटनाक्रम को देखने के बाद उनसे संपर्क किया और यह मामला अपने हाथ में लेने का आग्रह किया। रोहतगी ने कहा, याकूब मेमन मामले में मैंने सवेरे दो बजे से पांच बजे तक शीर्ष अदालत में बहस की क्योंकि मुजरिम को छह बजे फांसी दी जानी थी। मेमन मामले में रोहतगी ने अटार्नी जनरल के रूप में उसकी फांसी पर रोक लगाने का विरोध किया था। उन्होंने सवाल किया, इस मामले में क्या तात्कालिक आवश्यकता थी ? क्या किसी को फांसी दी जाने वाली थी ? सदन में बहुमत सिद्ध करने के लिये १५ दिन का समय देने के मुद्दे पर अगले दो तीन दिन में फैसला किया जा सकता है। इसमें जल्दबाजी क्यों ? उनकी इस दलील का कांग्रेस – जद (ए स ) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप जार्ज चौधरी ने तत्काल प्रतिवाद करते हुये कहा, संविधान को फांसी दी जाने वाली थी। याचिका पर सुनवाई के दौरान रोहतगी ने इसे तुरंत खारिज करने का अनुरोध किया और कहा कि राष्ट्रपति और राज्यपाल किसी भी न्यायालय के प्रति जवाबदेह नहीं है और न्यायालय को सांविधानिक प्राधिकारी को अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करने से नहीं रोकना चाहिए। पूर्व अटार्नी जनरल ने कहा कि बहुमत की संख्या उच्चतम न्यायालय या राजभवन में साबित नहीं की जा सकती। यह तो सदन में ही साबित करनी होगी और इसके लिये सदन में ही बहुमत का परीक्षण होगा। इसके लिये १५ दिन का वक्त दिये जाने से आसमान सिर पर नहीं गिरने जा रहा है। यह राज्यपाल का विवेकाधिकार है।

Tags:

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download