उपराष्ट्रपति पद की गरिमा बरकरार रखेंगे : वेंकैया
उपराष्ट्रपति पद की गरिमा बरकरार रखेंगे : वेंकैया
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एम. वेंकैया नायडू ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की ओर से उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाये जाने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के प्रति मंगलवार को आभार व्यक्त किया तथा देश को विश्वास दिलाया कि वह इस उच्च संवैधानिक पद की मर्यादा एवं गरिमा को बरकरार रखेंगे। नायडू ने यहां राज्यसभा के महासचिव शमशेर के शरीफ के समक्ष अपना नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद संसद भवन परिसर में संवाददाताओं से कहा कि विशाखापटनम के लॉ कॉलेज से विधि स्नातक करने के बाद से उनका सार्वजनिक जीवन चार दशक तक जनता के बीच, जनता के लिये और जनता की सेवा करते हुए बीता है। उन्होंने कार्यकर्ता, विधायक, सांसद, मंत्री के रूप में काम किया और जनता के लिये काम करना उनका ध्येय रहा है। उन्होंने कहा कि अब उन्हें जनता के बीच काम करने के बाद अब नई जिम्मेदारी संभालनी होगी। वह प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष शाह और राजग के विभिन्न नेताओं, अन्नाद्रमुक, तेलंगाना राष्ट्र समिति, वाईएसआर कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल के प्रति आभारी हैं जिन्होंने उन्हें इस दायित्व के लिए उपयुक्त समझा है। उन्होंने कहा कि भारत की सबसे ब़डी ताकत संसदीय लोकतंत्र हैं। उपराष्ट्रपति पद के अपने दायित्व हैं और कार्य की मर्यादायें हैं। इस पद पर सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. ़जाकिर हुसैन, मोहम्मद हिदायतुल्ला, आर. वेंकटरमण, डॉ. शंकरदयाल शर्मा और भैरोंसिंह शेखावत आदि नेता रहे हैं। वह इन नेताओं द्वारा स्थापित गरिमापूर्ण परंपरा का निर्वाह करेंगे। वह जनता को आश्वस्त करते हैं कि उपराष्ट्रपति के रूप में सभी मर्यादाओं का पालन करेंगे। उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के अनिच्छुक होने की मीडिया रिपोर्टों को लेकर नायडु ने सफाई देते हुए कहा कि उनकी माँ का जब निधन हुआ था तब वह बहुत छोटे थे। उन्होंने भाजपा को अपनी मां माना और उसकी सेवा करते हुए इस मुकाम तक पहुंचे हैं। इसलिए उन्हें इस पद पर आने के बाद पार्टी से दूर होने की पी़डा है। उन्हें इस बात का मलाल रहेगा कि वह अब पार्टी कार्यालय भी नहीं जा पायेंगे। वह चाहते थे कि उनकी राजनीतिक सक्रियता के बीच मोदी २०१९ में दोबारा प्रधानमंत्री बनें। उसके बाद उनका सामाजिक जीवन में लौटने का मन था लेकिन नियति को कुछ और ही मं़जूर था।
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