वनवासी राम सामाजिक समरसता के प्रतीक हैं: जगद्गुरु रामभद्राचार्य

प्रभु श्रीराम का पूरा जीवन लोगों का कल्याण करने में बीता

वनवासी राम सामाजिक समरसता के प्रतीक हैं: जगद्गुरु रामभद्राचार्य

समस्त भू-भाग उनकी मित्रता के सूत्र में बंध गया था

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। श्रीराम परिवार दुर्गा पूजा समिति द्वारा शहर के पैलेस ग्राउण्ड स्थित प्रिंसेस श्राइन सभागार में आयोजित जगद्गुरु श्रीरामभद्राचार्य महाराज ने कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि वनवास काल में प्रभु श्रीराम उत्तर से लेकर दक्षिण तक जहाँ भी गए वहाँ का समस्त भू-भाग उनकी मित्रता के सूत्र में बंध गया था। 

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वे अपने मनुष्य धर्म से ऊपर उठकर कर्म का उदाहरण प्रस्तुत करने वाले आदर्श व्यक्तित्व के कारण ईश्वर बन गए। उन्होंने किसी का भी कभी तिरस्कार नहीं किया। शत्रु रावण को भी तिरस्कृत नहीं किया। इसलिए वे समस्त मानव जाति के मन में अजात शत्रु रहे। इसी व्यक्तित्व वैशिष्टय  के कारण श्रीराम के चौदह वर्षों के वनवास ने श्रीराम को रामत्व प्रदान किया।
 
श्रीराम कथा की समरस जीवन शैली, सामाजिक समरसता, वसुधैव कुटुम्बकम का ज्ञान और श्रीराम की आदर्श जीवन शैली ने उन्हें कोटि कोटि जन मन का कंठहार बना दिया। श्रीराम को भगवान का दर्जा वनवासियों के बीच रहने के कारण ही मिला। उनका पूरा जीवन सामाजिक समरसता का सर्वोत्तम उदाहरण है। प्रभु श्रीराम का पूरा जीवन शोषित, वंचित एवं पीड़ित समाज के लोगों का कल्याण करने में बीता।

कथा क्रम को आगे बढ़ाते हुए कथाव्यास ने कहा कि चित्रकूट में वनवास के लगभग बारह वर्ष बिताने के बाद प्रभु श्रीराम सीता और लक्ष्मण के साथ दण्डकारण्य की ओर बढ़े। दंडकवन क्षेत्र में प्रभु श्रीराम ने पंचवटी कुटिया का निर्माण किया। यहीं रावण की बहन सूर्पणखा वनवासी श्रीराम से विवाह करने का प्रस्ताव लेकर जाती है। लेकिन राम उससे विवाह करने से इनकार कर देते हैं और अपने अनुज लक्ष्मण के पास भेज देते हैं। 

जब लक्ष्मण भी विवाह करने से मना करते हैं तो वह क्रोधित हो जाती है। लक्ष्मण उसके नाक-कान काट देते हैं। सूर्पणखा से इस घटना की खबर मिलने पर रावण अपने मामा मारीच को सोने का मृग बनाकर भेजता है। माता सीता उसे सोने के मृग को देखकर प्रभु श्रीराम से उसे पकड़ने को कहती हैं। प्रभु श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण को सीता की देखभाल करने को कहकर हिरण को पकड़ने जाते हैं।

कुछ दूर जाकर मायावी मृग बने मारीच ने प्रभु श्रीराम की आवाज में 'हे लक्ष्मण, हे लक्ष्मण' कहकर पुकारा। सीता यह पुकार सुन लक्ष्मण को राम की सहायता के लिए भेजती हैं। लक्ष्मण पहले तो मना करते हैं किन्तु बाद में माता सीता के जोर देने पर चले जाते हैं, लेकिन जाते समय कुटी के चारों ओर लक्ष्मण रेखा खींच कर माता सीता को उससे बाहर न जाने के लिए कहकर जाते हैं। तभी रावण साधु का छद्मभेष धरकर वहाँ आता है और सीता का अपहरण कर ले जाता है। 

मार्ग में रावण को बलात एक स्त्री को विमान ले जाते देख कर जटायु ने उसका विरोध किया। दोनों के बीच युद्ध हुआ और पक्षीराज जटायु घायल हो गये। सीता की खोज करते हुए राम और लक्ष्मण वहाँ पहुँचते हैं। घायल जटायु उन्हें रावण द्वारा सीता को आकाशमार्ग से लेकर जाने के बारे में बताते हैं। वह राम को शबरी से जाकर मिलने को कहते हैं और अपने प्राण त्याग देते हैं। प्रभु श्रीराम जटायु की अंत्येष्टि करने के बाद शबरी के आश्रम पहुँचते हैं।
 
जहाँ वर्षों से अपने प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा कर रही शबरी श्रीराम और लक्ष्मण को देखकर आनन्द से भावविभोर हो जाती है और उन्हें चख चख कर जूठे बेर खिलाती है। प्रभु श्रीराम प्रेमपूर्वक जूठे बेर खाते हैं।

आचार्य रामचन्द्रदास ने मंगलाचरण किया। सोमवार को कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री केएस ईश्वरप्पा तथा मुख्य यजमान जसराज महेन्द्र कुमार वैष्णव के साथ मिथिलेश तिवारी, राजू सुथार, अजय पाण्डेय आदि ने कथा पूजन में भाग लिया। यजमानों के साथ सभी लोग आरती में शामिल हुए।

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