जनकनंदिनी सीता भारत की बेटी हैं, विदेशी नहीं: जगद्गुरु रामभद्राचार्य

जो लोग उन्हें विदेशी बताते हैं, वे गलत हैं

जनकनंदिनी सीता भारत की बेटी हैं, विदेशी नहीं: जगद्गुरु रामभद्राचार्य

उनका जन्म बिहार के सीतामढ़ी जिले के पुरौना गाँव में हुआ था

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। श्रीराम परिवार दुर्गा पूजा समिति द्वारा शहर के पैलेस ग्राउण्ड स्थित प्रिंसेस श्राइन सभागार में आयोजित जगद्गुरु श्रीरामभद्राचार्य महाराज की नौदिवसीय श्रीराम कथा में शुक्रवार को जनकनंदिनी माता सीता के जन्म की कथा का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि माता सीता का जन्म विदेश में नहीं, बल्कि भारत में ही हुआ था। 

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जो लोग उन्हें विदेशी बताते हैं, वे गलत हैं। उनका जन्म वर्तमान में बिहार राज्य के मिथिलांचल में सीतामढ़ी जिले के अर्न्तगत आने वाले पुरौना गाँव में हुआ था, जिसका पुराना नाम पुण्यारण्य था। जन्म के पश्चात उनका लालन-पालन जनकपुर में हुआ था जो कि उस समय भारत में ही आता था। कालान्तर में वह नेपाल का हिस्सा बन गया, इसलिए माता सीता विदेशी नहीं अपितु भारतीय बेटी हैं।
 
संत रामभद्राचार्यजी ने कहा कि इसी तरह से माता सीता के जन्म को लेकर एक भ्रांति यह भी है कि उनका जन्म राजा जनक द्वारा खेत में हल जोतते समय मिले घड़े से हुआ था। यह सर्वथा गलत धारणा है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार जानकीजी धरती को चीर कर प्रकट हुई थीं। महाराज जनक की कोई संतान नहीं थी। 

उन्होंने अपने गुरु याज्ञवल्क्य से कहा कि गुरुदेव अब आप ही संतान प्राप्त का कोई उपाय बताएं। तब याज्ञवल्क्य जी ने उन्हें वैशाख मास के शुक्लपक्ष में सोम यज्ञ का अनुष्ठान कराने को कहा था, जिसमें हलेष्ठि यज्ञ करने और सोमलता की बीजरोपण का विधान है। 

हलेष्ठि यज्ञ में सामान्य हल के स्थान पर सोने के छह हल का उपयोग किया जाता है और छह बैल उसे खींचते हैं। महाराज जनक ने हलेष्ठि यज्ञ के लिए सोने का हल बनवाया और चार बैलों के साथ स्वयं अपनी पत्नी सुनयना के साथ भूमि शोधन किया। 

इस यज्ञ अनुष्ठान में माता सीता भूमि चीर कर सोलह वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हुई। जिस तरह महाराज दशरथ के यहाँ प्रभु श्रीराम माता कौशल्या के समक्ष चर्तुभुज रूप में प्रकट हुए थे और बाद में माता कौशल्या के कहने पर उन्होंने शिशु लीला की थी। उसी तरह से धरती से सोलह वर्ष की कन्या के रूप में माता सीता के प्राकट्य से विस्मित महाराज जनक के कहने पर माता सीता ने नवजात कन्या का रूप धरा। 

चतुर्थ दिवस कथा से पूर्व विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे लेखक एवं हिन्दुत्ववादी विचारक चक्रवर्ती सुलिबेले ने अपने विचार व्यक्त करते हुए हिन्दू समाज से एकजुट एवं संगठित होकर राष्ट्र निर्माण के कार्य में सक्रिय भूमिका निभाने का आह्वान किया।

जगद्गुरु रामभद्राचार्यजी ने उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया तथा श्रीराम परिवार की ओर से उनका सम्मान भी किया गया। आचार्य रामचन्द्रदास ने मंगलाचरण करते हुए गुरु चरणों की विरुदावलि की। 

इससे पूर्व, गुरुवार को अहमदाबाद में हुए भीषण विमान हादसे में मारे गए लोगों के प्रति शोक संवेदना व्यक्त करते हुए उनकी आत्मा की चिरशांति के लिए प्रार्थना की गई। मुख्य यजमान जसराज महेन्द्र कुमार वैष्णव, शोभा भल्ला, विजयलक्ष्मी रेड्डी, अजय-अंजू पाण्डेय परिवार, मीरा अग्रवाल, शारदा तलरेजा, संतोषी सिंघल, रचना अग्रवाल, रश्मि कर्णवाल, लक्ष्मी शर्मा, श्रीराम परिवार के कोषाध्यक्ष राजेश द्विवेदी, पूर्व अध्यक्ष राकेश मिश्रा, पूरन पंडित, संतोष झा एवं बृजेश तिवारी आदि ने कथा पूजन में भाग लिया।

कथा समाप्त होने पर आरती में स्वास्तिक सेवा संघ के अध्यक्ष सतीश मित्तल सहित अन्य लोगों ने भाग लिया।

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