धधक रहा बलोचिस्तान
पाकिस्तानी फौज सही आंकड़े बाहर नहीं आने देगी

बलोच अवाम का साजिशन खात्मा पाकिस्तानी फौज की एक 'रणनीति' है
पाकिस्तान में बलोच विद्रोहियों ने एक ट्रेन पर जिस तरह हमला कर यात्रियों को बंधक बनाया, उससे एक बार फिर बलोचिस्तान की आज़ादी का मुद्दा सुर्खियों में आ गया है। हालांकि उन्होंने जो तरीका अपनाया, उसके लिए मौजूदा दुनिया में स्वीकार्यता कम है। इसका दूसरा पहलू यह है कि बलोच विद्रोहियों को ऐसी कार्रवाई करने के लिए पाकिस्तानी फौज ने ही मजबूर किया है। जब से पाकिस्तान बना है, बलोच अवाम का जीना दूभर हो गया है। बेशकीमती खनिजों से मालामाल उस इलाके पर पाकिस्तानी फौज ने अपने पंजे जमा रखे हैं। बलोचिस्तान की दौलत लूटकर फौजी अफसर करोड़पति-अरबपति हो गए हैं। उसकी जमीन से निकलने वाली गैस से चूल्हे जलाकर इस्लामाबाद, लाहौर, कराची, पेशावर जैसे शहरों में पकवान बनाए जा रहे हैं, जबकि बलोचिस्तान की महिलाएं आज भी लकड़ी के चूल्हे जलाने को मजबूर हैं। फौजी अफसरों और नेताओं ने बलोचिस्तान को लूटने के अनेक तरीके ढूंढ़ रखे हैं। इससे बलोच अवाम में विद्रोह की भावना पैदा होना स्वाभाविक है। बलोच विद्रोहियों द्वारा ट्रेन हमले की उक्त घटना में कितने लोग मारे गए, इसके आंकड़े को लेकर मीडिया में अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं। हालांकि सच्चाई यह है कि पाकिस्तानी फौज सही आंकड़े बाहर नहीं आने देगी। उसके झूठ का पर्दाफाश इसी खबर से हो जाता है कि बलोच नेताओं ने 200 ताबूतों के भेजे जाने की बात कही है। जाहिर है कि बलोच विद्रोहियों के हमले में बहुत बड़ी संख्या में लोगों की जान गई है। इससे आईएसआई की क्षमताओं पर सवाल उठने लगे हैं। जिस एजेंसी के बारे में यह कहा जाता है कि उसका नेटवर्क पाकिस्तान के चप्पे-चप्पे तक पसरा हुआ है, वह बलोच विद्रोहियों के मंसूबे नहीं भांप पाई!
बलोचिस्तान के जिस इलाके में विद्रोहियों ने ट्रेन पर कब्जा किया, वहां लगभग डेढ़ दर्जन सुरंगें हैं। उनसे गुजरते हुए ट्रेन की रफ्तार कुछ धीमी होती है। विद्रोहियों को इसकी पूरी जानकारी थी। उन्होंने सुनियोजित तरीके से कार्रवाई को अंजाम दिया। इन विद्रोहियों ने आत्मघाती जैकेट पहन रखी थीं, जिससे पता चलता है कि ये बचकर निकलने के लिए नहीं, बल्कि मरने और मारने के लिए ही आए थे। बलोचिस्तान में हजारों लोग 'लापता' हैं। वे जिंदा हैं या मुर्दा, स्थिति स्पष्ट नहीं है। पुलिस, अदालत, फौज ... उनके परिवारों की कहीं सुनवाई नहीं है। माना जाता है कि 'लापता' लोग अब इस दुनिया में नहीं हैं। पाकिस्तानी फौज ने उनकी हत्या कर दी। बलोच अवाम का साजिशन खात्मा पाकिस्तानी फौज की एक 'रणनीति' है, ताकि बलोचिस्तान में संसाधनों की लूट के दौरान किसी तरह के प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़े। इसी सिलसिले में अकबर बुगती, करीमा बलोच समेत कई नेताओं को मौत के घाट उतार दिया गया। इससे बलोचिस्तान में आज़ादी की लहर कमजोर नहीं पड़ी, बल्कि और ज्यादा ताकतवर होकर लौटी। बलोच अवाम के पास भले ही कम संसाधन हैं, उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई खास सहयोग नहीं मिल रहा है, बलोचिस्तान की भौगोलिक सीमाएं ऐसी हैं कि उसे बाहर से सशस्त्र सहायता नहीं मिल रही है, इसके बावजूद आज़ादी के लिए लोगों का जज्बा कम नहीं हुआ है। वास्तव में बलोच सिर्फ अपनी आज़ादी की नहीं, अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। एक ओर वहां पाकिस्तानी फौज ने लूटमार मचा रखी है, दूसरी ओर चीन अपना शिकंजा कसता जा रहा है। चूंकि पाकिस्तान पर चीन का भारी-भरकम कर्ज है, जिसे ब्याज समेत चुकाना उसके बूते से बाहर है। पाकिस्तानी फौज एक फॉर्मूले के तहत बलोचिस्तान में चीन की 'मदद' कर रही है। इससे वहां ड्रैगन द्वारा लूटमार का रास्ता साफ होगा। बलोच यह बात बहुत पहले भांप चुके थे। वे जानते हैं कि इससे उनके संसाधन और ज्यादा तेजी से खत्म होंगे। वहां हाल के वर्षों में चीनी नागरिकों पर खूब हमले हुए हैं। बलोचिस्तान जिस ज्वाला से धधक रहा है, उसकी लपटों से रावलपिंडी और इस्लामाबाद कब तक बचे रहेंगे? पाकिस्तानी सैन्य अधिकारियों और नेताओं को चाहिए कि वे बलोच अवाम के साथ बैठें और उनकी समस्याओं का समाधान करें। अगर वे अब भी इस मुद्दे की अनदेखी करते रहेंगे तो भविष्य में पाकिस्तान का एक और विभाजन होना तय है।