ज्ञान, समर्पण और तप का त्रिवेणी संगम हैं साध्वीश्री दर्शनप्रभा
दीक्षा के 50 वर्ष पूर्ण करने जा रही हैं साध्वीश्री

संसार से दूर, प्रभु व गुरु के नजदीक और अपने आप में खाे जाना ही संयम जीवन है
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। ‘संसार से वैराग, प्रभु भक्ति का राग, अपने मन पर नियंत्रण, मर्यादामय जीवन का निर्वहन, अनुशासन में जीवन जीना, गुरु के प्रति समर्पित रहना, अपने कर्त्तव्याें का पालन करना, आत्मसमीक्षा, आत्मकल्याण, पांच व्रताें काे धारण करना, विश्वशांति के लिए कार्य करना, समाज एकता के लिए दृढ़ रहना, श्रावक-श्राविकाओं काे परमार्थ के रास्ते के लिए प्रेरित करना, इसे ही संयम जीवन कहते हैं’, यह मानना है 50 वर्ष के संयम जीवन काे धारण करने वाली उपप्रवर्तनी साध्वी डाॅ. दर्शनप्रभाजी महाराज साहब का।
ज्ञातव्य है कि आगामी 23 फरवरी काे साध्वीश्री दर्शनप्रभाजी के दीक्षा के पचास वर्ष पूर्ण हाे रहे हैं। साध्वीश्री का मानना है कि संसार से दूर, प्रभु व गुरु के नजदीक और अपने आप में खाे जाना ही संयम जीवन है। साध्वीश्री की दीक्षा 50 वर्ष पूर्व राजस्थान के ब्यावर में सद्गुरु विश्वसंत उपाध्यायश्री पुष्करमुनिजी व गुरुवर्याश्री उपप्रवर्तिनीश्री चारित्रप्रभाजी म.सा. के सान्निध्य में हुई थीं।वर्ष 1955 में 23 अक्टूबर काे दिल्ली में जन्मीं साध्वी दर्शनप्रभाजी का सांसारिक नाम सराेज था। कमलाबाई-रतनलाल लाेढ़ा परिवार में जन्मीं सराेज बचपन से ही आधुनिक विचाराें की बालिका रहीं। सराेज काे संसार बहुत रास आता था। उनके परिवार के लाेग धार्मिक प्रवृत्ति के थे, जिन्हाेंने सराेज पर साधु-साध्वियाें के सान्निध्य में जाने दबाव बनाया ताे एक बार अपने मां के साथ सराेज जब साध्वीश्री चारित्रप्रभाजी के दर्शन करने व प्रवचन श्रवण करने गईं, तब चारित्रप्रभाजी उत्तराध्यायन सूत्र के अंतर्गत भृगु पुराेहित की कथा सुना रही थीं, तब ही सराेज काे कथा श्रवण कर पुण्याेदय से वैराग्य के भाव जागृत हाे उठे।
सात साल की परीक्षा की लम्बी कसाैटी पर व पूरे परिवारजन काे मनाने के बाद दीक्षार्थी सराेज ने साध्वीश्री चारित्रप्रभाजी के सान्निध्य में वर्ष 1976 में 20 फरवरी काे दीक्षा ग्रहण कर ली थी।
दीक्षा ग्रहण करने के बाद साध्वीश्री दर्शनप्रभाजी के अपने संयम जीवन में आध्यात्मिकता के शिखर काे छूते हुए जैन धर्म की ध्वजा फहराई। साध्वीश्री ने पूरे भारत वर्ष में लगभग 65000 किलाेमीटर की पैदल यात्रा कर जैन धर्म का प्रचार किया है। साध्वीश्री ने एक दिन में चिताैड़गढ़ से भीलवाड़ा तक 55 किलाेमीटर का उग्र विहार भी किया है।
दर्शनप्रभाजी ने अपने जीवन में व्यसन मुक्ति, युवा पीढ़ी काे धर्म प्रेरणा, महिलाओं व युवतियाें के सशक्तिकरण के लिए विशेष कार्य करती हैं और इन क्षेत्राें में उन्हें अनेक सफलताएं भी प्राप्त हुई हैं। साध्वीश्री की प्रेरणा से पूरे देश में मानवसेवा, जीवदया, शिक्षा, चिकित्सा, आश्रय आदि क्षेत्राें में अनेक स्थाई कार्य भी हुए हैं और अनेका कार्य गतिमान हैं। साध्वीश्री की प्रेरणा से अनेक स्थानक भवन, जैन भवन, आयुर्वेदिक चिकित्सालय, साधना केन्द्र, पुष्कर धाम, आराधना भवन आदि के निर्माण हुए हैं।
एम.ए., पीएचडी, साहित्य रत्न, आचार्य परीक्षा, सर्वदर्शनाचार्य परीक्षा, सिद्धांताचार्य परीक्षा आदि से शिक्षित साध्वीश्री दर्शनप्रभाजी सरलहृदया, साैम्य स्वभाव, आत्मीयता, सेवा, कर्मठता, दृढ़ता, एकनिष्ठा, समरसता, शालीनता के गुणाें से ओत प्राेत हैं। वे समाज एकता व संगठन की हिमायती हैं। उनका मानना है कि संताें के सान्निध्य में आकर जिसके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन नहीं आता, उसका जीवन व्यर्थ है।
उपप्रवर्तक नरेशमुनिजी म.सा. साध्वीश्री दर्शनप्रभाजी के सांसारिक भाई तथा साध्वी डाॅ. दिव्यप्रभाजी म.सा. चाची गुरुणी हैं। साध्वीश्री काे जिनशासन प्रभाविका, श्रमणी सूर्या, स्पष्ट वक्ता, उपप्रवर्तिनी, संघ उन्नायिका आदि की पदवी मिली है। साध्वीश्री काे अपने संयम जीवन में जैन समाज के साथ साथ अनेक वरिष्ठ साधु संताें का सान्निध्य मिला है।
अटलबिहारी वाजपेयी जैसे अनेक राजनेताओं व गणमान्य लाेगाें ने साध्वीश्री के दर्शन किए हैं। साध्वीश्री ने अनेक तपस्याएं की हैं तथा 45 वर्षाें से एकासना का व्रत कर रही हैं। साध्वीश्री दर्शनप्रभाजी के संयम परिवार में 28 साध्वियां हैं। वर्तमान में अभी उनके साथ साध्वीश्री मेघाश्रीजी, श्रद्धाश्रीजी, समीक्षाश्रीजी व समृद्धिश्रीजी आदि साध्वियां हैं।
साध्वीश्री दर्शनप्रभाजी समाज काे संदेश देते हुए कहती हैं कि हर श्रावक-श्राविका धर्मनिष्ठ बने, 12 व्रताें का पालन करे, अहंकार का त्याग करे, परिवार के बिखराव काे राेके और संघ एकता में सहयाेग करे।
साध्वीश्री दर्शनप्रभाजी के 50वें स्वर्णि दीक्षा जयंती के उपलक्ष्य में श्री गुरु मां दर्शन संयम स्वर्ण जयंती महाेत्सव समिति के तत्वावधान में गणेश बाग में तीन दिवसीय आयाेजन किया जा रहा है जिसमें 21 फरवरी काे सेवा दिवस के रूप में विभिन्न स्थलाें व अनाथालयाें में अन्नदान किया जाएगा।
22 फरवरी काे तप दिवस के रूप में मनाते हुए एकासन तप किए जाएंगे तथा 23 फरवरी काे सुबह 9 बजे से सजाेड़े सामूहिक जाप किए जाएंगे। समिति के सदस्याें के साथ अनेक श्रद्धालु महाेत्सव की तैयारियाें में जुटे हुए हैं।