असल परख अब

कांग्रेस की केरल इकाई ने प्रियंका वाड्रा को उपचुनाव लड़ाने के फैसले का स्वागत किया

असल परख अब

प्रियंका वायनाड से मैदान में होंगी तो उनके सियासी करिश्मे की असल परख होगी

कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा ने अपनी चुनावी पारी की घोषणा कर ही दी। पहले से तय था कि वे चुनावी राजनीति का हिस्सा बनेंगी, बस समय और क्षेत्र की घोषणा बाकी थी। वे वायनाड लोकसभा सीट के लिए होने वाले उपचुनाव में ऐसे समय चुनावी पारी की शुरुआत करने जा रही हैं, जब हाल में संपन्न लोकसभा चुनावों में उनकी पार्टी का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है। वे अपने भाई राहुल गांधी के साथ चुनाव प्रचार में सक्रिय रहीं। उन्होंने कार्यकर्ताओं में जोश भरा, लेकिन पूरा जोर लगाने के बावजूद पार्टी सीटों का शतक नहीं लगा पाई। उसके नेतृत्व वाला इंडि गठबंधन सत्ता में नहीं आ सका। जब सोनिया गांधी ने राज्यसभा के लिए पर्चा भरा, तब इस बात को लेकर काफी चर्चा थी कि प्रियंका वाड्रा रायबरेली से लोकसभा चुनाव लड़ेंगी। पार्टी ने वहां राहुल को उतारा, जो वायनाड से भी किस्मत आजमा रहे थे। दोनों सीटों से जीत चुके राहुल अब बहन के लिए वायनाड सीट छोड़ रहे हैं तो इससे कांग्रेस पर परिवारवाद को बढ़ावा देने के आरोप तो लगेंगे। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने तो कह दिया है कि राहुल गांधी के वायनाड सीट छोड़ने और उनकी बहन के वहां से चुनाव लड़ने के फैसले के बाद आज यह स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस कोई राजनीतिक दल नहीं, बल्कि परिवार की एक कंपनी है!’ सीपीआईएम नेत्री और वायनाड में हाल में हुए लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार रहीं एन्नी राजा ने इसे मतदाताओं के साथ अन्याय करार देकर कांग्रेस पर निशाना साधा है। हालांकि कांग्रेस की केरल इकाई ने प्रियंका वाड्रा को उपचुनाव लड़ाने के फैसले का स्वागत किया, जो कि स्वाभाविक है।

Dakshin Bharat at Google News
निश्चित रूप से इतने बड़े फैसले पर कांग्रेस में पहले विचार-विमर्श हुआ होगा। गांधी परिवार पहले भी दक्षिण भारत से लोकसभा चुनाव लड़ता रहा है और उसे कामयाबी मिली है। साल 1980 में इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश की रायबरेली और आंध्र प्रदेश की मेडक (अब तेलंगाना में) सीटों से चुनाव लड़ा था। वे दोनों सीटों से जीती थीं। सोनिया गांधी ने साल 1999 में अमेठी के अलावा कर्नाटक की बेल्लारी सीट से किस्मत आजमाई थी, जहां मतदाताओं ने उन पर भरोसा जताया था। साल 2019 में राहुल गांधी ने अमेठी के साथ वायनाड से भी चुनाव लड़ा। वे अमेठी से हारे, लेकिन वायनाड से जीते। अब प्रियंका वायनाड से मैदान में होंगी तो उनके सियासी करिश्मे की असल परख होगी। यहां से राहुल गांधी लोकसभा चुनाव जरूर जीते, लेकिन उनकी राह इतनी आसान नहीं थी। वे 6,47,445 वोट लेकर अव्वल रहे, जबकि सीपीआईएम उम्मीदवार एन्नी राजा 2,83,023 और भाजपा उम्मीदवार के सुरेंद्रन ने 1,41,045 वोट हासिल किए। नोटा को 6,999 वोट मिले थे। इन तीनों के मतों का योग भविष्य में लड़ाई को रोचक बना सकता है। केरल में भाजपा अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रही है, जबकि सीपीआईएम जैसे दलों के सामने अस्तित्व बचाने का प्रश्न है। अगर ये दल रणनीति बनाकर अपने वोटबैंक को एकजुट करने में सफल रहे तो वायनाड में कांग्रेस को कड़ी टक्कर मिल सकती है। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि केरल के नतीजों ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह जगाया है। पार्टी ने 14 सीटों पर जीत हासिल कर 35 प्रतिशत से ज्यादा वोट शेयर अपने नाम किया है। अब कांग्रेस के सामने इस बढ़त को बनाए रखने की चुनौती होगी। केरल में वाम दलों और कांग्रेस के बीच जुबानी जंग होती रहती है। मुख्यमंत्री पी विजयन तो राहुल गांधी पर तीखी टीका-टिप्पणी कर चुके हैं। केरल में कांग्रेस का बढ़ता प्रभाव आईयूएमएल, सीपीआईएम, केईसी और आरएसपी के लिए 'खतरे की घंटी' है। ऐसे में कभी 'दोस्ती' और कभी 'तकरार' का यह सिलसिला कब तक चलेगा? भाजपा के लिए भी इस राज्य की राह आसान नहीं है, लेकिन उसने एक सीट जीतने के बावजूद 16 प्रतिशत से ज्यादा वोट शेयर अपने नाम कर लिया। इससे संकेत मिलता है कि भविष्य में यहां चुनावी मुकाबले का और कड़ा होना तय है।

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download