'दोस्ती' में धमाकों की दहशत

इससे चीन-पाक संबंधों में दरारें तो आएंगी ही, इस्लामाबाद पर बीजिंग का दबाव भी बढ़ेगा

'दोस्ती' में धमाकों की दहशत

चीन ने पाकिस्तान में काफी निवेश किया है

जिस पाक-चीन 'दोस्ती' के लिए मिसाल दी जाती थी कि यह 'हिमालय से ऊंची' और 'शहद से ज्यादा मीठी' है, अब उसमें बम धमाकों की दहशत भी शामिल हो गई है। पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा में विस्फोटकों से भरे एक वाहन द्वारा चीनी इंजीनियरों की बस को टक्कर मारकर उड़ाया जाना आतंकवाद की वैसी घटना नहीं है, जैसी (घटनाएं) आमतौर पर इस पड़ोसी देश में होती रहती हैं। हाल के वर्षों में पाकिस्तान में चीनी नागरिकों पर हमले बढ़े हैं। कभी यहां चीनियों का बहुत आदर-सत्कार होता था। कई चीनी अपने अनुभव साझा करते हुए बता चुके हैं कि एक-डेढ़ दशक पहले तक जब वे पाकिस्तानी बसों में सफर करते थे तो उनसे किराया नहीं लिया जाता था। यही नहीं, उनकी भाषा न जानने के बावजूद कई मुसाफिर उनसे बातचीत करने की कोशिश करते थे। वे उनके साथ अपना खाना भी साझा करते थे। अब हालात इसके ठीक उलट हैं। चीनी अपने लिए अलग वाहन ले जाने को मजबूर हैं। वे सुरक्षाकर्मियों के बावजूद सुरक्षित नहीं हैं। पाकिस्तान में अलग-अलग विचारधाराओं से प्रभावित आतंकवादी संगठन मौजूद हैं। उन्हें किसी पर धावा बोलने के लिए बहाना चाहिए। उन्होंने चीन को लेकर भी बहाने ढूंढ़ लिए हैं। इससे भविष्य में चीनियों पर हमले बढ़ सकते हैं। ऐसी हर घटना पाकिस्तान में रहने वाले चीनियों को दहशत में डालेगी। इससे चीन-पाक संबंधों में दरारें तो आएंगी ही, इस्लामाबाद पर बीजिंग का दबाव भी बढ़ेगा। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख को कड़ी फटकार सुनने को मिलेगी। चूंकि चीन ने पाकिस्तान में काफी निवेश किया है। उसने बड़े पैमाने पर कर्ज भी दिया है।

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अगर चीनियों पर हमलों का सिलसिला नहीं रुका तो बीजिंग की ओर से कुछ कड़े कदम उठाए जा सकते हैं। चीन अपने नागरिकों की मौत के बदले भारी मुआवजा मांग सकता है, जिसे चुकाने की पाक सरकार में न तो शक्ति बची है, न ही सामर्थ्य बाकी है। चीन यह भी प्रस्ताव रख सकता है कि वह कथित निवेश की रक्षा के लिए अपने सुरक्षा बलों को पाकिस्तान की जमीन पर उतारना चाहता है। अगर पाकिस्तान सरकार को यह प्रस्ताव मंजूर न हो तो वह चीन का निवेश और कर्ज लौटाए! खैबर-पख्तूनख्वा के बिशम इलाके में हुई उक्त घटना ने ऐसे पिछले हमलों की यादें ताजा कर दी हैं। साल 2021 में शांगला, जो कोहिस्तान के करीब है, में एक आतंकवादी हमले में नौ चीनी मारे गए थे। अप्रैल 2022 में कराची विश्वविद्यालय के बाहर आत्मघाती हमले में तीन चीनियों की मौत हो गई थी। उसी साल सितंबर में कराची में एक चीनी डॉक्टर की उसके क्लिनिक में हत्या कर दी गई थी। आमतौर पर ऐसी घटनाओं के पीछे बलोच लिबरेशन आर्मी नामक संगठन का हाथ बताया जाता है, जो चीनियों के बढ़ते हस्तक्षेप का विरोध करता है। इसका आरोप है कि चीन स्थानीय लोगों की जमीनें हड़पने के लिए पाकिस्तान में अपना रसूख बढ़ा रहा है ... उसकी बलोचिस्तान पर कुदृष्टि है, जहां कई बेशकीमती खनिज बताए जाते हैं। खनिजों से मालामाल होने के बावजूद यह इलाका सबसे गरीब और अविकसित है। इससे स्थानीय लोगों में गहरा आक्रोश है। कालांतर में यहां हथियारबंद संगठन पैदा हो गए, जो पाकिस्तान के सुरक्षा बलों पर हमले करते रहते हैं। जब कभी चीनी उनके निशाने पर आते हैं तो वे उनकी भी हत्या कर देते हैं। सुरक्षा बल पाकिस्तान के हों या चीन के, भविष्य में यहां शांति कायम होना तब तक संभव नहीं, जब तक कि बलोच आबादी को उसके अधिकार न मिल जाएं। चप्पे-चप्पे पर सुरक्षाकर्मी तैनात कर देने मात्र से हालात काबू में नहीं आ सकते। इस इंतजाम पर जो खर्च आएगा, वह दोनों देशों का घाटा ही बढ़ाएगा।

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