जरूर मिलेगा लक्ष्य
अगर सकारात्मक सोच रखकर पढ़ाई की जाती है तो मस्तिष्क की ग्रहण-क्षमता भी बढ़ती है
जब पूर्ण मनोयोग से सीखा हो, लगन से अभ्यास किया हो और मन में सकारात्मकता की लौ जल रही हो तो कैसी चिंता और कैसा तनाव!
विद्यार्थियों में परीक्षा का तनाव कम करने और उन्हें बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रोत्साहित करने के वास्ते 'परीक्षा पे चर्चा' अनूठी पहल है। परीक्षा के बारे में पुरानी धारणा यह थी कि विद्यार्थी को अपने भविष्य की बहुत चिंता करनी चाहिए और सबकुछ भूलकर केवल और केवल किताबें पढ़ने पर ध्यान देना चाहिए। 'मन की बात' की तरह ही 'परीक्षा पे चर्चा' कार्यक्रम भी सकारात्मकता का प्रसार करता है। बेशक पढ़ाई जरूरी है, इसे मन लगाकर करना चाहिए, लेकिन परीक्षा का ऐसा हौवा भी नहीं होना चाहिए कि तनावग्रस्त हो जाएं।
अगर सकारात्मक सोच रखकर पढ़ाई की जाती है तो मस्तिष्क की ग्रहण-क्षमता भी बढ़ती है। मेहनत और आत्मविश्वास के साथ की गई पढ़ाई परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने में मदद करती है। प्राय: यह देखने में आता है कि कई प्रतिभाशाली बच्चे, जो सालभर खूब पढ़ाई करते हैं, परीक्षा के दिनों में भी जमकर मेहनत करते हैं, लेकिन जैसे-जैसे पेपर का दिन नजदीक आता है, उन्हें अपनी योग्यता पर संदेह होने लगता है। उन्हें ऐसा लगने लगता है कि मुझे कुछ नहीं आता ... मुझसे यह पाठ याद नहीं हो रहा ... बार-बार पढ़ने पर भी यह फार्मूला मेरी समझ से बाहर है ...!कुछ बच्चों की तो इस वजह से तबीयत बिगड़ जाती है। प्राय: सहपाठियों में परीक्षा के अंकों के संबंध में प्रतिस्पर्धा हो जाती है। एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ भी कई बार चिंता और तनाव की वजह बनती है। विद्यार्थियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि आपमें से हर कोई विशिष्ट क्षमताएं रखता है। उन क्षमताओं को पहचानकर स्वयं से प्रतिस्पर्धा करेंगे तो चिंता और तनाव नहीं सताएंगे। मन में यह भावना रखें कि कल मैं इतना ज्ञान अर्जित कर सका/की, आज मैं उससे अधिक अर्जित करूंगा/गी ... मैं अपने मन को भटकने नहीं दूंगा/गी ... मैं हर दिन के साथ श्रेष्ठता को प्राप्त कर रहा/ही हूं।
प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना कि 'परीक्षा पे चर्चा' का उद्देश्य तनाव को सफलता में परिवर्तित करना है, ताकि 'परीक्षा-योद्धा' मुस्कुराहट के साथ परीक्षा दे सकें', अत्यंत प्रासंगिक है। भारतीय शिक्षा प्रणाली को दशकों से ऐसे प्रयास की जरूरत थी। 'परीक्षा' शब्द के साथ ही इतना तनाव जोड़ दिया गया है कि जिस दिन टाइम टेबल आता है, कई बच्चों की भूख कम हो जाती है। उन्हें अपने परीक्षा परिणाम को लेकर आशंका सताने लगती है। वे गुमसुम हो जाते हैं।
जब परीक्षाएं चल रही होती हैं तो कुछ बच्चों को इतना तनाव हो जाता है कि उन्हें मनोवैज्ञानिक सलाह की जरूरत पड़ जाती है। परीक्षा के साथ जुड़ीं इन धारणाओं को बदलने की जरूरत है। बेशक परीक्षा वह चरण है, जिससे किसी विद्यार्थी द्वारा अर्जित किए गए ज्ञान का मूल्यांकन होता है, लेकिन इससे न तो तनावग्रस्त होने की और न ही खुद की क्षमता पर संदेह करने की कोई जरूरत है।
हां, सालभर मन लगाकर पढ़ाई करनी चाहिए। शिक्षक जो पढ़ाएं, उनकी ओर ध्यान देना चाहिए। अगर किसी विषय को समझने में दिक्कत आ रही है तो उनसे पूछना चाहिए। ठीक उस योद्धा की तरह, जो प्रशिक्षण व अभ्यास के जरिए अपनी शक्ति व कौशल में रोजाना वृद्धि करता रहता है। उसके हृदय में यह विचार प्रबल होता है कि मैंने कल जितना सीखा था, उससे ज्यादा आज सीखा है ... मैं कल जिस स्थिति में था, आज उससे बेहतर स्थिति में हूं और भविष्य में यह क्रम जारी रखूंगा।
जब पूर्ण मनोयोग से सीखा हो, लगन से अभ्यास किया हो और मन में सकारात्मकता की लौ जल रही हो तो कैसी चिंता और कैसा तनाव! बस, अच्छे परिणाम की उम्मीद के साथ मेहनत करते जाएं और नकारात्मकता को नजदीक भी न आने दें। जो विद्यार्थी इन बातों पर अमल करेगा, वह अपना लक्ष्य जरूर पाएगा।