वीरों को नमन
'हमारी महानता कभी न गिरने में नहीं, बल्कि हर बार गिरकर उठने में है'
आज का भारत सैनिकों के बलिदान की नींव पर टिका है
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कारगिल विजय दिवस के अवसर पर युद्ध स्मारक पर अपने संबोधन से स्पष्ट कर दिया है कि जो ताकतें भारत की अखंडता व शांति को नुकसान पहुंचाना चाहती हैं, उन्हें इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि अब उनके साथ कोई नरमी बरती जाएगी। अगर जरूरत पड़ी तो हम एलओसी पार करने को भी तैयार हैं।
कारगिल के बाद एक पीढ़ी ऐसी तैयार हो गई है, जिसने उस समय (साल 1999) तो वह युद्ध नहीं देखा, लेकिन सोशल मीडिया के जरिए शहीदों, वीर सपूतों की कहानियां जरूर पढ़ी हैं। वह कैप्टन विक्रम बत्रा, कैप्टन मनोज पांडे, कैप्टन जिंटू गोगोई, कैप्टन विजयंत थापर ... को अपना आदर्श मानती है। ये युवा सैन्य अधिकारी उन जैसे ही थे, लेकिन जब देश के लिए कुछ करने की बारी आई तो ऐसा काम कर गए कि इतिहास हमेशा याद रखेगा।जिन्होंने वह दौर देखा है, वे जानते होंगे कि 'ऑपरेशन विजय' बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच शुरू हुआ था। कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तानी फौजी बंकर बनाकर बैठे थे। उन्हें ऊंचाई पर होने का फायदा हासिल था। पाक के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ को बहुत बड़ी ग़लत-फ़हमी थी कि इतनी ऊंचाई पर उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, लेकिन भारतीय थल सेना व वायुसेना ने जिस तरह अदम्य साहस, शौर्य और शक्ति के साथ बाजी पलटी, उसे देखकर दुनिया हैरान थी।
राजनाथ सिंह ने उचित ही कहा है कि 'हमारी महानता कभी न गिरने में नहीं, बल्कि हर बार गिरकर उठने में है। युद्ध के दौरान प्रतिद्वंद्वी के पास सामरिक सैन्य लाभ होने के बावजूद हमारी सेनाओं ने उन्हें पीछे धकेलने और हमारी भूमि को पुन: प्राप्त करने के लिए असाधारण वीरता और कौशल का प्रदर्शन किया। इस विजय के साथ भारत ने पाकिस्तान और विश्व को संदेश दिया कि अगर देश के हितों को नुकसान पहुंचाया गया तो हमारी सेना किसी भी कीमत पर पीछे नहीं हटेगी।'
कारगिल युद्ध के बाद देश ने इससे संबंधित विभिन्न बिंदुओं पर मंथन किया और जहां जरूरत थी, वहां सुधार भी किए। देश का खुफिया तंत्र मजबूत हुआ है, जिसका लाभ जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई के अलावा पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट में एयर स्ट्राइक जैसे बड़े अभियानों में मिला। कारगिल युद्ध के समय कई देशों ने इसे सुनहरे 'मौके' की तरह लेते हुए फायदा उठाने की कोशिशें की थीं।
तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक बता चुके हैं कि तब जिन देशों की कंपनियों से हथियार या गोला-बारूद खरीदने के लिए प्रस्ताव भेजा, उन्होंने उसका फायदा उठाना चाहा और सामान भी कम गुणवत्ता का भेजा था। आज देश अपने सैनिकों के लिए हथियारों का निर्माण कर रहा है। हमारी मिसाइलों की अन्य देशों में मांग हो रही है। तीनों सेनाओं में बेहतर समन्वय के लिए सीडीएस का पद सृजित किया गया। इसके साथ ही देश के रुख में बड़ा बदलाव आया है।
पाक में सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, चीनी फौज के साथ गलवान व तवांग सेक्टर में भिड़ंत के बाद देशवासियों का मनोबल बहुत मजबूत हुआ है। अगर आज एक सामान्य व्यक्ति से भी राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर सवाल किया जाए तो वह इनमें से किसी घटना का जिक्र जरूर करेगा। इसके अलावा यह विश्वास भी जताएगा कि अगर दुश्मन ने भविष्य में फिर कोई जुर्रत की तो भारत की ओर से सख्त जवाब दिया जाएगा।
निस्संदेह आज का भारत सैनिकों के बलिदान की नींव पर टिका है। आज भारत दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। आगामी कुछ ही वर्षों में वह और ऊंचे पायदान पर होगा। दुनिया की बड़ी से बड़ी कंपनी भारत आना चाहती है। कोरोना काल के बाद तो भारत से दुनिया की उम्मीदें और बढ़ गई हैं। इन सबके मूल में सैनिकों का त्याग और बलिदान है, जिन्होंने देश को सुरक्षित बनाया, देशवासियों के भविष्य के लिए स्वयं का वर्तमान अर्पित कर दिया। भारत के उन समस्त वीरों को हृदय से नमन!