दाने-दाने का महत्त्व
किसी की आर्थिक स्थिति जैसी भी हो, सबको अन्न का महत्त्व समझना चाहिए

खाद्य असुरक्षा को कम करने के लिए खाद्य सामग्री की बर्बादी रोकने के वास्ते कार्यक्रमों को लागू करना भी महत्त्वपूर्ण है
भारत के जी-20 शेरपा अमिताभ कांत ने खाने के सामान की बर्बादी रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर कार्यक्रम चलाने की वकालत कर प्रासंगिक मुद्दा उठाया है। आज इस ओर ध्यान देने की सख्त जरूरत है। अमिताभ कांत ने उचित ही कहा है कि 'समय की मांग न केवल तात्कालिक संकट व अल्पकालिक उपायों पर ध्यान केंद्रित करने की है, बल्कि सभी देशों के लिए लंबी अवधि में अपनी खाद्य प्रणालियों को और अधिक मजबूत बनाने की भी है। खाद्य असुरक्षा को कम करने के लिए खाद्य सामग्री की बर्बादी रोकने के वास्ते कार्यक्रमों को लागू करना भी महत्त्वपूर्ण है। दुनिया में भोजन की बहुत अधिक बर्बादी हो रही है।'
आज दुनिया में अमीरों के सामने समस्या है कि वे 'क्या-क्या' खाएं, जबकि ग़रीब इस उलझन से नहीं निकल पाता कि वह 'क्या' खाए। 'क्या-क्या' और 'क्या' का यह फर्क बहुत मायने रखता है। कोरोना महामारी के कारण कई परिवारों को गंभीर आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। आज भी दुनिया में कई परिवार ऐसे हैं, जो दो वक्त की रोटी का इंतजाम करने में ही पूरी ताकत झोंक रहे हैं। दूसरी ओर, कई जगह खाने को बेदर्दी से बर्बाद किया जा रहा है।संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट हैरान करने वाली है। उसके अनुसार, दुनिया में हर साल करीब 93 करोड़ टन खाना बर्बाद हो रहा है। वहीं, दुनिया में 69 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो हर रात भूखे सो जाते हैं। अगर यह सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो साल 2030 तक ऐसे लोगों की संख्या 84 करोड़ से ज़्यादा हो सकती है। यह भी माना जा रहा है कि तब तक खाने की बर्बादी का यह आंकड़ा दुगुना हो सकता है! यही नहीं, संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में खाने की बर्बादी बड़े स्तर पर जारी है। यहां बर्बाद होने वाले खाने का 40 प्रतिशत हिस्सा शादियों, घरों में लापरवाही, खराब आपूर्ति और अव्यवस्थाओं से आ रहा है।
यह भी चिंताजनक है कि यूएनईपी की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में सबसे ज्यादा खाने की बर्बादी करने के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है। जिस देश में अन्न को देवता कहा जाता है, वहां हर साल 90 हज़ार करोड़ रुपए से ज्यादा कीमत का खाना बर्बाद कर दिया जाता है, जो करीब 6.8 करोड़ टन है। बड़े शहरों, खासतौर से मुंबई में हर दिन समुद्री कचरे में फेंकी जाने वाली खाद्य सामग्री इतनी है कि अगर उसका सदुपयोग हो तो उससे हजारों लोगों का पेट भर सकता है।
प्राय: सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर भी खाने को खूब बर्बाद किया जाता है। ब्याह-शादी जैसे कार्यक्रमों में कई लोग थालियों में काफी जूठन छोड़ देते हैं। वे इस बात का ख़याल नहीं करते कि उस परिवार ने एक-एक थाली का इंतजाम करने के लिए कितने वर्षों की कमाई खर्च कर दी होगी! कई परिवार तो ऐसे होते हैं, जो यह सब करते-करते कर्ज में डूब जाते हैं और फिर वर्षों उसे चुकाते रहते हैं। प्राय: ऐसी जूठन या तो फेंक दी जाती है या आवारा पशुओं के आगे डाल दी जाती है। इससे बेहतर तो यह है कि जितनी भूख है, थाली में उतना ही लें। बच्चों में भी यह आदत विकसित करनी चाहिए, ताकि वे अन्न के हर दाने का महत्त्व समझें।
एक ओर जहां दुनिया में इतनी बड़ी आबादी गरीब है, भूखी सोने को मजबूर है, उसके दैनिक खर्चे पूरे नहीं हो रहे हैं, रोज़गार नहीं मिल रहा है। दूसरी ओर कई लोग अविवेकपूर्ण ढंग से खाने को बर्बाद कर रहे हैं! यह तो अमानवीय है। किसी की आर्थिक स्थिति जैसी भी हो, सबको अन्न का महत्त्व समझना चाहिए। सबको यह बोध होना चाहिए कि प्रकृति का जो वरदान भोजन के रूप में थाली में आया है, वह पेट भरने के लिए है, जीवन की रक्षा करने के लिए है। इसे यहां तक पहुंचाने के लिए कई लोगों ने मेहनत की है। इसे बर्बाद करना उनकी मेहनत का अपमान करने के बराबर है।
About The Author
Related Posts
Latest News
