घर में घिरे पुतिन

रूस के सैनिक भी बड़ी संख्या में मारे गए हैं

घर में घिरे पुतिन

येवगेनी और उनके लड़ाके अभी 'देखो और इंतजार करो' की नीति अपना रहे हैं

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के दावों के बावजूद अभी तक यूक्रेन पर निर्णायक जीत नहीं मिली है। वहीं, युद्ध के बीच ‘वैग्नर समूह’ के प्रमुख येवगेनी प्रीगोझिन की 'बग़ावत' अप्रत्याशित है। हालांकि इस युद्ध से यूक्रेन को भारी नुकसान हुआ है, लेकिन रूस के सैनिक भी बड़ी संख्या में मारे गए हैं। इससे पुतिन के खिलाफ उनके घर में ही आक्रोश भड़क रहा है। 

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यह आक्रोश इस तरह 'बग़ावत' के रूप में सामने आएगा, इसकी उम्मीद कम ही थी। इससे रूसी बलों की कमजोरी जाहिर हो गई है। रूस में पुतिन के आदेश को चुनौती देने का सीधा-सा मतलब है 'राजद्रोह'। अतीत में ऐसे लोगों को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। कहा जाता है कि पुतिन अपने मित्रों के प्रति जितने उदार हैं, अपने प्रतिद्वंद्वियों/शत्रुओं के प्रति उससे कहीं ज्यादा निर्मम हैं। वे एक बार जो ठान लेते हैं, उसको अंजाम देने में नुकसान की परवाह नहीं करते। 

उनका यह रवैया रूस के लिए ही भारी पड़ता जा रहा है। उन्होंने यूक्रेन को 'सबक' सिखाने के लिए चढ़ाई तो कर दी, लेकिन अब लौट आने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। भारी-भरकम सैन्य खर्च और हजारों सैनिकों की मौत के बाद अगर अब बिना किसी निर्णायक जीत के युद्ध बंद कर दें तो पुतिन की छवि को धक्का लगेगा। अभी तो सिर्फ येवगेनी बाग़ी हुए हैं, फिर न जाने ऐसे कितने लोग सड़कों पर उतर आएंगे। 

पुतिन दो दशकों से अधिक समय से सत्ता में हैं। वहां एक ऐसी पीढ़ी जवान हो गई है, जिसने बचपन से एक ही चेहरे को सत्ता में देखा है। यूक्रेन युद्ध में रूसी सैनिकों की मौत और जीत को लेकर संशय से इस पीढ़ी में आक्रोश का लावा पक रहा है। जब येवगेनी ने अपने तेवर दिखाए तो उन्हें बड़ी संख्या में इन नौजवानों का समर्थन मिला। 

हालांकि पुतिन ने खतरा भांपते हुए एक ओर तो बेहद सख्त रुख दिखाया, दूसरी ओर बातचीत भी करते रहे। इससे येवगेनी के तेवर कुछ ढीले पड़े हैं। उन्होंने क्रेमलिन के साथ समझौते के बाद निर्वासन में जाने और पीछे हटने की घोषणा कर दी।

इससे पहले येवगेनी ने अपने लड़ाकों को आदेश दिया था कि वे मास्को की ओर कूच करें। बहरहाल ‘वैग्नर समूह’ के रूप में बग़ावत की जो आग भड़की थी, वह अभी कुछ मंद पड़ी है, लेकिन बुझी नहीं है। यह समझौता कब तक चलेगा, इस पर यकीन के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता। 

माना जा रहा है कि येवगेनी और उनके लड़ाके अभी 'देखो और इंतजार करो' की नीति अपना रहे हैं। अगर निकट भविष्य में उन्हें स्थिति 'अनुकूल' नजर आई तो वे दोबारा हथियार उठाकर मास्को कूच करने का ऐलान कर सकते हैं। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि युद्ध में रूस का पलड़ा कैसा होगा। 

अगर रूस अपने हमलों में तेजी लाते हुए यूक्रेन में महत्त्वपूर्ण ठिकानों पर काबिज हो जाए या यूक्रेन के साथ उसका कोई ऐसा समझौता हो जाए, जिसमें पुतिन को अपनी पीठ थपथपाने का मौका मिले, तो येवगेनी दोबारा बग़ावत का दुस्साहस नहीं कर पाएंगे। बहुत संभव है कि युद्ध के बाद वे पुतिन का अगला निशाना बनें। अब पुतिन अपनी सत्ता के लिए उन्हें बड़ा खतरा समझ चुके हैं। 

इसके उलट, अगर युद्ध में रूस की हालत और पतली होती जाए, आमजन में पुतिन के खिलाफ बड़े स्तर पर असंतोष पनपे तो वैग्नर समूह उसे हवा देने के लिए फिर दांव खेल सकता है। हालांकि वह उसमें कितना कामयाब होगा, यह उस स्थिति पर निर्भर करेगा। जब आम जनता यह देखती है कि युद्ध में बड़ी संख्या में सैनिक मारे जा रहे हैं, भारी आर्थिक क्षति हो रही है, जीत का कहीं नामो-निशान नहीं है, युद्ध खत्म होने की संभावना नजर नहीं आ रही है और राष्ट्रपति पुतिन अपने भाषणों में वही पुराने दावे कर रहे हैं तो असंतोष बुरी तरह भड़क सकता है। 

उस समय ‘वैग्नर समूह’ जैसे संगठन मौके का फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं। इसलिए पुतिन को चाहिए कि वे युद्ध के बजाय बातचीत के जरिए मसले का हल निकालें। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो उनसे पहले ही कह चुके हैं कि यह युद्ध का समय नहीं है।

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