नक्सलवाद का विषवृक्ष

डीआरजी के जवान माओवादी विरोधी एक अभियान से लौट रहे थे

नक्सलवाद का विषवृक्ष

नक्सलियों के पास इतना विस्फोटक कहां से आया, जिससे उन्होंने एक वाहन को ही उड़ा दिया?

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में आईईडी धमाके में जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) के 10 जवानों का वीरगति को प्राप्त होना अत्यंत दु:खद है। इस घटना में एक वाहन चालक की भी जान चली गई। हाल के वर्षों में नक्सली हमलों की घटनाएं कम देखने को मिलती थीं। इससे प्रतीत होता था कि नक्सलवाद की कमर टूट गई है, लेकिन अभी देश को इन विध्वंसक ताकतों से डटकर संघर्ष करना होगा, उन्हें कठोर दंड देना होगा। 

डीआरजी के जवान माओवादी विरोधी एक अभियान से लौट रहे थे। इसी दौरान वे अरनपुर थाना क्षेत्र में नक्सलियों की बारूदी सुरंग की चपेट में आ गए। सवाल है- नक्सलियों के पास इतना विस्फोटक कहां से आया, जिससे उन्होंने एक वाहन को ही उड़ा दिया? नक्सलियों को जवानों की आवाजाही की सूचना कौन दे रहा था? 

इतनी बड़ी घटना का अर्थ यही है कि यहां नक्सलियों का जासूसी नेटवर्क काम कर रहा है। उन्हें जवानों के बारे में सूचना मिल रही थी। सरकार को चाहिए कि ऐसे नेटवर्क को ध्वस्त करे और जो लोग इस काम में लिप्त हैं, उनकी धर-पकड़ करे। बंदूक थामकर सुरक्षा बलों पर हमला करने वाला और विस्फोटक लगाने वाला ही दोषी नहीं है, बल्कि जो लोग नक्सलियों के लिए मुखबिरी करते हैं, वे भी बराबर के गुनहगार हैं। 

यह धमाका इतना ज्यादा शक्तिशाली था कि सड़क पर बड़ा गड्ढा हो गया। इससे 10 जवानों और वाहन चालक ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था। सरकारों की इतनी कोशिशों के बावजूद नक्सलवाद पर पूरी तरह काबू क्यों नहीं पाया जा सका है? आखिर वे लोग कौन हैं, जो चोरी-छिपे इनकी हिमायत कर रहे हैं?

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस घटना को कायराना हमला करार दिया है और उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से बात कर राज्य सरकार को हरसंभव सहायता का आश्वासन दिया है। निस्संदेह ऐसे समय में केंद्र सरकार की ओर से इस तरह के बयान की अपेक्षा की जाती है। अब 'किस सरकार के समय नक्सलवाद कितना बढ़ा और कितना घटा' जैसे सवालों के बजाय परस्पर सहयोग कायम रखते हुए नक्सलियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। यह देश की सुरक्षा का प्रश्न है। 

यह भी सच है कि नक्सलवाद सिर्फ छत्तीसगढ़ तक सीमित नहीं है। कुछ और राज्य इससे प्रभावित हैं। उनके साथ केंद्र सरकार को इस पर चिंतन करना होगा कि चूक कहां हो रही है। नक्सलवाद को समूल नष्ट करने के लिए देश को एकजुटता दिखानी होगी। नक्सली जिस कथित क्रांति की बात करते हैं, उसकी पोल खोलने की जरूरत है। 

ऐसे कई लोग हैं, जो उनकी चिकनी-चुपड़ी बातों और उग्र नारों के बहकावे में आकर पहले नक्सली बन गए थे, लेकिन वहां जो देखा, उसके बाद इस विषैली विचारधारा से उनका मोहभंग हो गया। नक्सलियों के सरगना एक तरह से तानाशाही चलाते हैं। कोई उनकी मनमानी को चुनौती नहीं दे सकता। अगर देता है तो भेदिया घोषित कर मार दिया जाता है। सरगना मौज करते हैं। वे अपहरण, छिनैती, डकैती, बंधी, लूट जैसे कृत्यों से धन ऐंठते हैं और साधारण नक्सली 'क्रांति' के धोखे में धूल फांकते हैं। 

इससे तंग आकर कई नक्सली इस 'गिरोह' को छोड़कर मुख्य धारा में लौट आए हैं और आज खुशहाल जीवन जी रहे हैं। नक्सलवाद के खात्मे के लिए जरूरी है कि सरकारें संबंधित इलाकों में उन बिंदुओं की ओर विशेष ध्यान दें, जो युवाओं को नक्सली बनने को आमादा करती हैं। आम जनता के सहयोग से ही इस विषवृक्ष का उन्मूलन किया जा सकता है।

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