'प्रचार' की भूख
गैंगस्टर से राजनेता बने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की मीडिया कैमरों के सामने हत्या हुई थी
पिछले दिनों साल 2020 के दिल्ली दंगों के एक आरोपी का वीडियो वायरल हुआ था
मुगलों और अंग्रेज़ों के शासन काल में एक समय ऐसा भी आया था, जब ठगों, डाकुओं आदि के अपराध बहुत बढ़ गए थे। चूंकि उन दिनों आजकल की तरह आवागमन के तीव्रगामी साधन नहीं थे, इसलिए सुनसान रास्ते में जो भी मुसाफिर उन्हें मिलते, उनका धन आदि लूटकर सभी लोगों की हत्या कर देते, एक व्यक्ति को छोड़कर। कई बार छोटे गांवों पर डाकुओं का हमला होता तो वहां भी यही तरीका अपनाया जाता। एक व्यक्ति को छोड़कर बाकी सबकी हत्या कर दी जाती।
इसके पीछे उनकी यह सोच थी कि वह व्यक्ति उनकी क्रूरता के किस्से अन्य लोगों को सुनाएगा, जिससे दहशत में और बढ़ोतरी होगी। इस तरह वे अपराधी एक खास तरह की संतुष्टि अनुभव करते थे। आज सोशल मीडिया का जमाना है। यहां एक वीडियो पोस्ट होता है तो वह कुछ ही मिनटों में हर जगह छा जाता है, ट्विटर पर ट्रेंड करने लगता है। समाचार चैनल उसे चलाते हैं। वह अख़बारों की सुर्खियों में भी जगह पा जाता है।बात जब अपराध जगत से जुड़े वीडियो की हो तो अपराधी भी यह अच्छी तरह से समझते हैं कि यह उन्हें भरपूर प्रचार दिलाएगा। इससे उनकी दहशत फैलेगी। सोशल मीडिया के व्यापक होने के साथ अपराधियों में इसे अपने प्रचार-प्रसार का साधन बनाने की घटनाओं में भी बढ़ोतरी हुई है। इससे अपराध विज्ञान से जुड़े विशेषज्ञों का चिंतित होना स्वाभाविक है।
गैंगस्टर से राजनेता बने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की मीडिया कैमरों के सामने हत्या हुई थी। आरोपियों ने जिस तरह मीडियाकर्मियों का वेश बनाया और सवाल पूछने के बहाने करीब जाकर गोलियों की बौछार कर दी, उसे देखकर हर कोई सन्न रह गया था। कई लोगों ने अपने जीवन में पहली बार ऐसा दृश्य देखा होगा।
पिछले दिनों साल 2020 के दिल्ली दंगों के एक आरोपी का वीडियो वायरल हुआ था। पुलिस के घेरे के बीच उस आरोपी के हावभाव किसी सेलिब्रिटी की तरह थे। उसके वीडियो पर बड़ी संख्या में लोग टिप्पणी कर तारीफों के पुल बांध रहे थे। इसी तरह फेसबुक और ट्विटर पर कुख्यात अपराधियों के अकाउंट बने हुए हैं। वे हथियारों के साथ अपनी तस्वीरें पोस्ट करते हैं। खासतौर से नौजवान उन्हें 'लाइक' करते हैं और पोस्ट 'शेयर' कर अप्रत्यक्ष रूप से उनकी अपराध प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं।
समाज में लोकगीतों का बहुत महत्त्व है, लेकिन हाल के वर्षों में कला के नाम पर ऐसे गीत परोसे जा रहे हैं, जिनमें शराब, बदमाशी, गोलीबारी का महिमा-मंडन किया जाता है। उसमें ऐसे नौजवान को मिसाल की तरह पेश किया जाता है, जिसके पास महंगी गाड़ी, बंदूकें, कई गुंडे हों; जो नियम तोड़े, अनुशासनहीनता दिखाए और राह चलती महिलाओं से अशोभनीय व्यवहार करे। आश्चर्य होता है कि ऐसे 'गीतों' को लाखों-करोड़ों बार देखा जाता है।
क्या समाज को जोड़ने के लिए अस्तित्व में आया यह मंच (सोशल मीडिया) अपराधियों का आसान ठिकाना नहीं बनता जा रहा है, जिसका अनुचित इस्तेमाल कर वे दहशत फैलाते रहते हैं? अब कई अपराधी किसी अपराध को अंजाम देने के बाद उसका वीडियो/तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देते हैं अथवा बेखौफ होकर उसकी जिम्मेदारी लेते हैं।
याद करें, जून 2022 में जब राजस्थान के उदयपुर में दो कट्टरपंथियों ने एक दर्जी की हत्या की तो उसका वीडियो बनाया और बाद में उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दहशत फैलाने की कोशिश की थी। विभिन्न वॉट्सऐप समूहों में बालिकाओं, महिलाओं से छेड़छाड़, दुष्कर्म के वीडियो वायरल होते रहते हैं, जिन्हें अपराधियों में से ही किसी ने रिकॉर्ड किया होता है। वे उसे इस मंशा के साथ वायरल करते हैं कि इससे वे भी अपराध जगत में अपना नाम कमा लेंगे, लोग उन्हें जानेंगे, उन्हें बड़ा हिम्मती और निडर बताएंगे।
ग़लत काम से 'नाम कमाने' की यह प्रवृत्ति अत्यंत चिंताजनक है। सरकारों को ऐसे तत्त्वों के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए कठोर से कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। सोशल मीडिया समाज को जोड़ने का मंच ही बना रहना चाहिए। यह किसी भी सूरत में अपराधियों का ऐसा अड्डा न बन जाए, जहां वे बेखौफ होकर अपनी सल्तनत खड़ी कर लें।