आशंकाओं का निवारण करें

अस्पताल सरकारी हो या निजी, दोनों का उद्देश्य जनता को स्वास्थ्य सेवाएं देना है

आशंकाओं का निवारण करें

अस्पतालों में भीड़ बढ़ने के साथ जनता का आक्रोश भी बढ़ता जा रहा है

राजस्थान की गहलोत सरकार के 'स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक' (आरटीएच) से जनता को उम्मीद बंधी थी कि अब उसे गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ होंगी, लेकिन जिस तरह चिकित्सक समुदाय इसका तीखा विरोध कर रहा है, उससे मुश्किलें बढ़ गई हैं। कहां तो आसानी से स्वास्थ्य सेवाएं मिलने की बात हो रही थी, अब जनता सरकारी दफ्तरों की तरह अस्पतालों में धक्के खा रही है। सीकर जिले के चार माह के एक बच्चे ने तो इलाज के अभाव में दम भी तोड़ दिया, जिसका मामला सोशल मीडिया पर गरमाया हुआ है। उसका किसी विधेयक और हड़ताल से क्या लेना-देना था? मरीजों के ऑपरेशन टल रहे हैं। अस्पतालों में भीड़ बढ़ने के साथ जनता का आक्रोश भी बढ़ता जा रहा है। 

चिकित्सक कह रहे हैं कि ‘हमें मरीजों की तकलीफ का अहसास है।’ अगर हकीकत में अहसास होता तो यूं लोगों को मरने, तड़पने नहीं देते। चिकित्सक समुदाय इस विधेयक के कुछ प्रावधानों से सहमत नहीं है तो उसे अपनी आवाज उठाने का पूरा अधिकार है, लेकिन कार्य-बहिष्कार से जिस तरह मरीजों की जान पर आ बनी है, वह उचित नहीं है। चिकित्सक का काम मरीज का जीवन बचाना है। अगर वह इससे इन्कार कर दे तो इस महान पेशे का उद्देश्य ही सवालों के घेरे में आ जाएगा। 

निस्संदेह इस विधेयक के प्रावधानों में मरीजों के हितों की चिंता की गई है। इसके तहत यदि कोई मरीज आपातकालीन स्थिति में आता है तो निजी अस्पताल उसका इलाज करने से इन्कार नहीं कर सकेंगे। यदि मरीज फीस नहीं दे पाए तो उस राशि का पुनर्भरण सरकार करेगी। अगर कोई मरीज घायल है तो उसे निःशुल्क परिवहन, चिकित्सा सुविधा दी जाएगी। मरीज को यह जानने का अधिकार होगा कि उसकी बीमारी किस प्रकार की है, इलाज के क्या परिणाम हो सकते हैं और उस पर कितना खर्चा आएगा। अगर कहीं शिकायत करनी हो तो जिला और राज्य स्तर पर प्राधिकरणों का गठन किया जाएगा। अगर प्राधिकरण के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं तो उसे अदालत में चुनौती दी जा सकेगी। पहले यह प्रावधान था कि प्राधिकरण के फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकेगी, लेकिन बाद में इसे हटा दिया गया।

वहीं, चिकित्सक समुदाय यह तर्क दे रहा है कि आरटीएच से मरीजों को फायदा नहीं होगा। उसके अनुसार, इससे निजी अस्पतालों का संचालन बहुत मुश्किल हो जाएगा, चिकित्सक व मरीज के संबंध खराब होंगे, विश्वास में कमी आएगी, अनावश्यक सरकारी दखलंदाजी बढ़ेगी, निजी अस्पतालों के अस्तित्व पर संकट आएगा, चिकित्सक आपातकालीन स्थिति में मरीजों का इलाज करने से बचेंगे, चूंकि उन्हें कानून से भयभीत किया जाएगा। इससे मरीज के इलाज में देरी होगी। 

यही नहीं, इन चिकित्सकों का यह भी कहना है कि उन पर पहले ही कई कानून लागू हैं। अगर यह कानून भी लागू हो गया तो बहुत से मरीज आपातकालीन स्थिति बताकर अपनी बीमारी का निःशुल्क इलाज करवाने आएंगे। यह भी संभव है कि कुछ असामाजिक तत्त्व इसका दुरुपयोग कर दुर्व्यवहार करें। उनका यह तर्क है कि अगर निजी अस्पतालों के संचालन में सरकारी हस्तक्षेप होगा तो उनकी हालत भी ‘सरकारी अस्पतालों जैसी’ हो जाएगी। 

हालांकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत स्पष्ट कर चुके हैं कि अस्पताल प्रबंधन व आंतरिक तंत्र में किसी प्रकार का अनावश्यक प्रशासनिक हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। तो समस्या कहां है? क्या निजी अस्पतालों को इस बात को लेकर आपत्ति है कि उन्हें राशि के पुनर्भरण के दौरान सरकार के साथ ‘कई बातें’ साझा करनी होंगी, लिहाजा वे यह कह रहे हैं कि मौजूद नियम-कानून ही पर्याप्त हैं? चिकित्सा सेवा का पेशा है। इसके साथ यह भावना बनी रहनी चाहिए। जब राजस्थान सरकार संबंधित अस्पतालों को पुनर्भरण का भरोसा दिला रही है तो आर्थिक भार की आशंकाएं यहीं समाप्त हो जाती हैं। 

हां, विभिन्न सरकारी अस्पतालों की मौजूदा स्थिति के बारे में जो कहा जा रहा है, वह सत्य है। सरकार को उनमें सुधार करना ही चाहिए। समय के साथ सुधार हो भी रहे हैं, लेकिन निजी अस्पतालों द्वारा आरटीएच को सिरे से ही खारिज कर देना उचित नहीं है। जब सरकार पुनर्भरण कर रही है तो उनकी सेवाओं का लाभ आम और गरीब जनता को क्यों न मिले? 

सरकार को चाहिए कि वह निजी अस्पतालों द्वारा भविष्य को लेकर जताई जा रहीं आशंकाओं का निवारण करे। उनकी सुरक्षा और हितों की रक्षा का ध्यान रखे। आरटीएच को लागू करने में कुछ समस्याएं आ सकती हैं, लेकिन उनके आधार पर ही इसे आगे नहीं बढ़ाना तर्कसंगत नहीं है। इस पहल के पीछे जनकल्याण की भावना है, जिसमें चिकित्सकों को सहयोग करना चाहिए। 

अस्पताल सरकारी हो या निजी, दोनों का उद्देश्य जनता को स्वास्थ्य सेवाएं देना है। इसके लिए सरकार पर्याप्त संसाधन और सुविधाएं मुहैया कराए। जो समस्याएं आएं, उनका प्रभावी समाधान होना चाहिए। उम्मीद है कि समय के साथ आरटीएच में ये बातें शामिल होती जाएंगी। अभी शुरुआत तो करें!

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