भ्रष्टाचार मामले में लोक सेवकों को परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर भी ठहराया जा सकता है दोषी: उच्चतम न्यायालय
न्यायालय ने भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार किया है
पीठ ने भ्रष्ट अधिकारियों पर सख्ती दिखाते हुए कहा कि मुकदमा कमजोर नहीं पड़ना चाहिए
नई दिल्ली/दक्षिण भारत। उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि अगर भ्रष्टाचार के मामले में अवैध लाभ हासिल करने के आरोप में कोई प्रत्यक्ष मौखिक या दस्तावेजी सबूत न हो तो किसी लोकसेवक को परिस्थिजन्य साक्ष्य के आधार पर भी दोषी ठहराया जा सकता है।
न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर के नेतृत्व वाली इस संविधान पीठ में न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यन, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना शामिल थे। संविधान पीठ ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ताओं के साथ-साथ अभियोजन पक्ष को ईमानदार कोशिश करनी चाहिए, जिससे भ्रष्ट लोक सेवकों को दोषी ठहराकर उन्हें सजा दी जा सके और शासन-प्रशासन को साफ-सुथरा एवं भ्रष्टाचार मुक्त बनाया जा सके।संविधान पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता के सबूत (प्रत्यक्ष या प्राथमिक) के अभाव में अपराध के संबंध में आनुमानिक निष्कर्ष निकाले जाने की अनुमति है। न्यायालय की टिप्पणी में यह भी उल्लेखनीय है कि अगर शिकायतकर्ता की मौत हो जाए या किसी अन्य वजह से प्रत्यक्ष सबूत उपलब्ध नहीं है, तो भी लोक सेवक को प्रासंगिक प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया जा सकता है। इस तरह न्यायालय ने भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार किया है।
पीठ के अनुसार, यदि शिकायतकर्ता बयान से मुकर जाए अथवा उसकी मौत हो जाए अथवा वह सुनवाई के दौरान सबूत पेश करने में असमर्थ रहे तो किसी अन्य गवाह के मौखिक या दस्तावेजी सबूत को स्वीकार कर अवैध लाभ की मांग संबंधी अपराध को साबित किया जा सकता है या अभियोजन पक्ष परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर मामला सिद्ध कर सकता है।
पीठ ने भ्रष्ट अधिकारियों पर सख्ती दिखाते हुए कहा कि मुकदमा कमजोर नहीं पड़ना चाहिए और न ही लोक सेवक के बरी होने के नतीजे के तौर पर खत्म होना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने इस सवाल पर विचार करते समय उक्त आदेश दिया कि क्या अवैध लाभ की मांग के संबंध में प्रत्यक्ष या प्राथमिक साक्ष्य के अभाव की सूरत में किसी लोक सेवक के अपराध का आनुमानिक आकलन अन्य सबूतों के आधार पर किया जा सकता है।
न्यायालय ने कहा कि मांग और स्वीकृति को साबित करने के लिए इन पहलुओं को ध्यान में रखना होगा:
- यदि लोक सेवक द्वारा बिना किसी मांग के रिश्वत देने वाले द्वारा भुगतान करने का प्रस्ताव है और बाद वाला केवल प्रस्ताव को स्वीकार करता है और अवैध संतुष्टि प्राप्त करता है, तो यह धारा 7 के अनुसार स्वीकृति का मामला है।
- यदि लोक सेवक मांग करता है और देने वाला उसे स्वीकार करता है, तो यह प्राप्ति का मामला है। दोनों ही मामलों में, प्रस्ताव और मांग को अभियोजन पक्ष द्वारा मुद्दे के तथ्य के रूप में साबित करना होगा।
- बिना किसी और चीज के अवैध संतुष्टि की स्वीकृति या प्राप्ति इसे धारा 7 या 13 (1) के तहत अपराध नहीं बनाती है।
पीठ ने यह भी कहा कि इसके पहले के तीन न्यायाधीशों की पीठ के फैसलों में कोई विरोधाभास नहीं था, जिसने धारा 7 और 13 (1) (डी) के तहत अपराधों के लिए दोषसिद्धि को बनाए रखने के लिए आवश्यक सबूत की प्रकृति और गुणवत्ता के संबंध में संविधान पीठ के संदर्भ को जन्म दिया।
जवाबदेही तय करनी होगी
बता दें कि देश में समय-समय पर हुए विभिन्न हादसों के बाद जनता की ओर से यह मांग उठती रही है कि अधिकारियों को जवाबदेह बनाया जाए और भ्रष्टाचारियों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। हाल में गुजरात के मोरबी में पुल हादसे के बाद संबंधित कंपनी, कॉन्ट्रैक्टर और स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों की भूमिका पर गंभीर सवाल उठे थे। हर साल कहीं न कहीं से पुल गिरने की खबरें आती रहती हैं, जिनमें भ्रष्टाचार और जवाबदेही का अभाव जैसे बिंदु सामने आते हैं। अगर उच्चतम न्यायालय की उक्त टिप्पणी के बाद भ्रष्ट अधिकारियों पर परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार कार्रवाई होगी तो निश्चित रूप से कड़ा संदेश जाएगा।