संपादकीय: महामारी को दें मात
संपादकीय: महामारी को दें मात
होली का त्योहार सुख-शांति से संपन्न हुआ। इस बीच कोरोना के मामलों में बढ़त ने चिंता बढ़ा दी है। सालभर पहले प्रधानमंत्री मोदी ने जब वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन की घोषणा की थी तो लोगों में इस महामारी से लड़ाई के प्रति गंभीरता अधिक दिखाई देती थी। अब समय बीतने के साथ उस गंभीरता के स्थान पर लापरवाही ज्यादा दिखाई दे रही है। इसका खामियाजा किसी और को नहीं, बल्कि हमें ही भुगतना पड़ेगा। सरकार एक सीमा तक सख्ती बरतकर महामारी के प्रसार को रोकने की कोशिश कर सकती है। जब जनता में सर्वत्र लापरवाही दिखाई देगी, तो यह वायरस कैसे काबू में आएगा? आज सबको इस पर अत्यंत गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
किसी को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि ‘मुझे कोरोना नहीं हो सकता, चूंकि मेरा स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहता है’। इस वायरस ने कई हृष्टपुष्ट, सेहतमंद, यहां तक कि विशेषज्ञ डॉक्टरों को लील लिया। इसके प्रसार की चेन तोड़कर हम अपना ही नहीं, परिवार, समाज और देश का भी भला करेंगे। आज हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि स्वच्छता और सावधानी आधारित नियमों का पालन कर स्वयं कोरोना से बचें। इसके साथ ही परिवार और अपनों को बचाएं। अगर कोई दूसरा बिना मास्क के घूम रहा है, तो इसका यह अर्थ न निकालें कि कोरोना हमसे डरकर भाग गया है। कोरोना यहीं हैं और रोज लोगों को अपना शिकार बना रहा है। कोई नहीं जानता कि अगला नंबर किसका हो सकता है।अगर हम मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग, स्वच्छता और सरकार द्वारा निर्धारित आयुवर्ग के लोगों का टीकाकरण कराएं, तो यह जीत की दिशा में एक कदम होगा। यह युद्ध परंपरागत युद्धों से कुछ मायनों में अलग है, लेकिन इसमें अनुशासन पालना की गंभीरता कम नहीं है। हमारे चिकित्साकर्मी इस वायरस को पराजित करने के लिए दिन-रात मोर्चे पर डटे हैं, वहीं देश में कई लोग नियमों का उल्लंघन कर स्वयं के प्राण संकट में डाल रहे हैं, साथ ही दूसरों के लिए संकट पैदा कर रहे हैं।
देश में ऐसे कई उदाहरण सामने आ चुके हैं जब लोगों ने इस गलतफहमी के साथ कोरोना वायरस का प्रसार करने में भूमिका निभाई कि यह बीमारी ‘मुझे नहीं हो सकती’। ऐसे लोगों की वजह से सुरक्षा तंत्र में सेंध लगी और सारे इंतजाम धरे के धरे रह गए। आखिर उनकी लापरवाही का खामियाजा पूरा समाज क्यों भुगते? प्रशासन को ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करते समय कोई हिचक नहीं होनी चाहिए। क्या पता किस व्यक्ति की गलतफहमी दूसरों के प्राण संकट में डाल दे! अब तक कितने लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं, कई की मृत्यु हो गई है। इसके बावजूद लापरवाही का आलम यह है कि सार्वजनिक स्थानों पर लोग बिना मास्क पहने घूम रहे हैं। इन्हें इस बात का अंदाजा ही नहीं कि इसका खामियाजा बाद में कितने लोगों को भुगतना पड़ सकता है।
देशवासियों ने तमाम मुश्किलों के साथ लॉकडाउन की अवधि बिताई। उसका अच्छा असर सामने आया। कोरोना के मामले काबू में आते दिखे। जब एक-एक कर लॉकडाउन के बंधन हटने लगे तो कई लोगों ने यह समझ लिया कि अब कोरोना चला गया है। इसके बाद सर्वत्र इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग करते दिखाई देने लगे। देश इस स्थिति में बिल्कुल नहीं है कि एक और लॉकडाउन को बर्दाश्त कर सके। इससे बेहतर है कि समय रहते सभी नागरिक महामारी संबंधी सावधानियों का पालन करें। टीकाकरण अपनी जगह जारी रहे, वहीं नागरिक बिल्कुल लापरवाही न बरतें। इसी से यह महामारी काबू में आएगी। हमें अपनी मदद खुद करनी होगी, बाहर से कोई मददगार नहींं आएगा।