नेपाल में फिर ओली-ओली
नेपाल में फिर ओली-ओली
नेपाल की जनता ने लाल विकल्प चुना है। भारत के लिए यह चिंता की खबर हो सकती है। सबसे ब़डी पार्टी के रूप में नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (यूनाईटेड मा्क्सिसस्ट- लेनिनिस्ट) उभरी है। उसके नेता केपीएस ओली को कभी भारत समर्थक समझा जाता था, लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में अपने पिछले कार्यकाल में उन्होंने चीन समर्थक नीति अपनाई। पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड की पार्टी माओइस्ट सेंटर ने उससे अलग होकर उनकी सरकार गिराई, तो उसके पीछे भारत की प्रेरणा मानी गई। प्रचंड ने नेपाली कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई, लेकिन आम चुनाव से पहले अचानक उन्होंने फिर यूएमएल से हाथ मिला लिया। अब दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों के इस गठबंधन ने ब़डी जीत हासिल की है। उन्होंने नेपाली कांग्रेस को काफी पीछे छो़ड दिया है। मधेसी पार्टियों को भी मामूली सफलता ही मिली। नेपाल में प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली के तहत कुल १६५ संसदीय और ३३० प्रांतीय विधानसभा सीटें हैं। प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव में भी सीपीएन-यूएमएल और माओवादी सेंटर सबसे आगे हैं। संसद यानी प्रतिनिधि सभा में २%५ सदस्य हैं, जिनमें से १६५ फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली के जरिए यानी प्रत्यक्ष मतदान से चुने जाने हैं्। बाकी ११० आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के जरिए आएंगे।इस चुनाव को स्वतंत्र एवं निष्पक्ष माना गया है। यूरोपीय आयोग के चुनाव पर्यवेक्षण मिशन ने कहा है कि नेपाल का चुनाव आयोग दो चरणों में मतदान कराने की तैयारियां करने में सफल रहा, लेकिन आयोग के कामकाज में पारदर्शिता की कमी है। राजनीतिक पार्टियों, सिविल सोसाइटी और केंद्रीय स्तर पर पर्यवेक्षकों के साथ नियमित विचार-विमर्श का कोई तंत्र नहीं है। बहरहाल, ये चुनाव से जु़डे अलग पहलू हैं। इससे सियासी सूरत यह उभरी है कि फिर से केपीएस ओली के प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया है। मधेसी मुद्दे पर उन्होंने अपने पिछले कार्यकाल में सख्त रुख अपनाया था। क्या वे फिर ऐसा करेंगे? मधेसियों की मुख्य शिकायतें अब भी दूर नहीं हुई हैं्। इनकी अनदेखी करना फिर से अशांति को न्योता देना होगा। इसके बावजूद कि अब अधिक राजनीतिक स्थिरता की आशा की जा रही है। भारत के लिहाज से महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या वे अब संतुलित विदेश नीति अपनाएंगे या फिर चीन को भारतीय हितों पर तरजीह देंगे? ये सवाल भारतीय कूटनीति की भी परीक्षा है। पुरानी बातें न दोहराई जाएं, इसलिए उनसे तुरंत संवाद बनाने की जरूरत है।