प्रदर्शन का हिंसक तरीका

प्रदर्शन का हिंसक तरीका

पशुओं के खरीदने और बेचने पर केंद्र सरकार द्वारा जारी की गयी अधिसूचना के खिलाफ केरल और पश्चिम बंगाल ने मोर्चा खोल दिया है। केंद्र सरकार द्वारा पशुओं को खरीदने या बेचने के सन्दर्भ में नए नियम तय करने का फैसला लिया है जिसके बाद पश्चिम बंगाल और केरल के कुछ क्षेत्रों में प्रदर्शन भी किए गए। तमिलनाडु में भी सरकार के इस कदम के खिलाफ नारा़जगी है। कहा जा रहा है कि चम़डे के उद्योग पर सरकार के फैसले का सर्वाधिक असर प़डेगा और साथ ही खाद्य क्षेत्र भी इससे प्रभावित होगा, परंतु जिस तरह से केरल में विरोध जताने के लिए युवा कांग्रेस के नेता और उनके साथियों ने एक बछ़डे को अपनी माँ से अलग कर दिया और जिस बेरहमी से गौमांस के समर्थन में नारे लगाए उससे नेता की मानसिकता समझ आती है। राहुल गाँधी ने इस घटना की निंदा की परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। देश भर में वायरल हो चुके वीडियो में ऩजर आ रहा है कि युवा कांग्रेस के नेताओं ने अपने निजी स्वार्थ के लिए पार्टी की साख को भी हासिए पर रख दिया। वहीं दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार ने भी केंद्र के इस फैसले को मानने में अपनी अहसहमति जताई है। केरल में जिस तरह से केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे नेताओं ने बर्बरता दिखाई है उसेसे उनकी क्रूरता का पता चलता है। अगर ऐसे लोगों को जनता अपना प्रतिनिधि बनती है तो उनसे किसी भी आवश्यक मुद्दे पर सहनशीलता की उम्मीद करना भी गलत ही होगा। जिस तरह से प्रदर्शन के दौरान पशुओं की हत्या की गई है वह केवल निंदनीय नहीं बल्कि हमारे सभ्य समाज के लिए शर्मनाक है। जिस तरह से बछ़डे को फोटोग्राफरों के सामने काटा गया वह केवल ओछे ढंग से प्रचार हासिल करने का एक शर्मनाक तरीका था। सच तो यह है कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण द्वारा देशी नस्ल के पशुओं और मवेशियों की लगातार घटती आबादी को रोकने की मांग के बाद ही केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इस दिशा में आगे कदम ब़ढाया है और नए नियमों के जरिए सरकार पशुओं की काला बाजारी पर शिकंजा कसना चाहती है। हालाँकि नए नियमों से यह सा़फ नहीं होता कि किस तरह से कालाबा़जारी पर सरकार रोक लगाने में सफलता हासिल करना चाहती है परंतु विरोध के लिए किसी मूक जीव की हत्या करना तो किसी अपराध से कम नहीं है। मंगलवार को मद्रास उच्च न्यायलय ने केंद्र सरकार के फैसले पर रोक लगाई है, जिसे राजनेतओं का एक वर्ग सरकार के खिलाफ जीत कहकर प्रचार हासिल करने की कोशिश में जुट गया है। जनहित याचिका की सुनवाई कर रही पीठ के समक्ष इस फैसले की संवैधानिक वैद्यता पर सवाल उठाए गए है। सरकार के किसी भी फैसले से नाखुश वर्ग को न्यायपालिका के समक्ष अपना पक्ष रखना चाहिए, यह विरोध का सही तरीका है। केवल प्रचार हासिल करने के उद्देश्य से हिंसा का दमन थामना किसी भी सभ्य समाज में सही नहीं ठहराया जा सकता है। अब सरकार के पास भी मौका होगा कि वह अपने पक्ष को मजबूती से रख सके और याचिकाकर्तों की चिंताओं को दूर कर सके। अगर देश का चम़डा उद्योग नियमबद्ध होता है तो इससे देश के विकास को और गति मिलेगी। देश के सबसे ब़डे वर्ग की आस्था भी इस मामले से जु़डी हुई है और बेहतर होगा कि न्यायपालिका इस मामले में जल्द सुनवाई कर फैसला सुनाए।

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