होयसला साम्राज्य की निर्माण शैली को पुनर्जीवित करने की कोशिश

होयसला साम्राज्य की निर्माण शैली को पुनर्जीवित करने की कोशिश

बेंगलूरु। राज्य के बेलूर स्थित चेन्नकेशव मंदिर होयसला साम्राज्य कला की समृद्ध स्थापत्य कला का नायाब नमूना है। बदलते समय के साथ प्राचीन राजवंशों द्वारा अपनाई गई निर्माण पद्धतियां गुमनाम होती जा रही है लेकिन राज्य के कोलार जिले में स्थित एक छोटे से गांव मंे ११वीं से १४ वीं शताब्दी तक रहे होयसला साम्राज्य की निर्माण शैली को पुनर्जीवित करने की कोशिश की जा रही हैं। इस गांव में इस प्राचीन निर्माण शैली में बेलूर स्थित चेन्नकेशव मंदिर से भी एक ब़डा मंदिर बनाने का कार्य शुरु किया गया है। इस मंदिर का अभिषेक मैसूर राजघराने के मौजूदा राजा यदुवीर कृष्णदत्त चामराज वाडेयार की उपस्थिति में संपन्न हुआ।ख्श्नष्ठद्मय्ंट्ट झ्ह्वत्र्द्यह्र फ्ष्ठ द्यक्वर्‍ ख्ंश्च ब्स्र द्मर्‍्रप्मंदिर के निर्माण की परियोजना श्री कल्याण वेंकटेश्वरा होयसला आर्ट फाउंडेशन द्वारा शुरु की गई है। इस मंदिर की नींव ग्रेनाइट पत्थरों से रखी गई हैं और इसका पूरा निर्माण दक्षिण कर्नाटक में प्रचूर मात्रा में पाए जाने वाले सोपस्टोन की मदद से किया जाएगा। इस पत्थर की खासियत यह होती है कि इस पर जहां विभिन्न प्रकार की नक्काशियों को करना आसान होता है वहीं यह किसी भी प्रकार के मौसम को झेलने में सक्षम होते हैं। इस परियोजना को आर्किटेक्ट यशस्विनी शर्मा की इस्थेटिक आर्किटेक्ट नामक कंपनी और कार्डिफ यूनिवर्सिटी के वेल्श स्कूल ऑफ आर्किटेक्टचर एडम हार्डी द्वारा मिलकर किया जा रहा है। ·र्ैंद्मय्श्चट्ट·र्ैं फ्ष्ठ ब्र्‍ ब्ह्ख्र्‍ ख्श्नष्ठद्मय्ंट्ट ृय्स्द्य झ्ह्वत्र्द्यह्र ·र्ैंर्‍ ृय्झ्रू्यत्रश्चमंदिर की नींव को तैयार करने के लिए लगभग ७००० ग्रेनाइट ब्लॉक की आवश्यकता होगी जिसे उुडपी जिले के कारकला से प्राप्त किया जा रहा है। मंदिर के लिए आवश्यक सोपस्टोन मैसूरु जिले के हेग्गदेवना कोटे की खदानों से जुटाने की योजना है। इस मंदिर के निर्माण में ३०० करो़ड रुपए का खर्च आने का अनुमान है। इसका निर्माण सात एक़ड के भूखंड पर किया जाएगा। ज्ञातव्य है कि होयसला स्थापत्य कला अपने स्थापत्य योजना, मूर्तियों को गढने के अपने विस्तृत ज्ञान और नक्काशीदार स्तंभों के लिए जाना जाता है और ऐसे में इस निर्माण शैली से निर्मित किसी मंदिर की तरह ही उससे ब़डे मंदिर का निर्माण करना आसान नहीं होगा लेकिन परियोजना को पूरा करने में जुटे विशेषज्ञ इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि वह इस कार्य को पूरा कर लेंगे।होयसला निर्माण शैली मौजूदा समय में एक भूली बिसरी निर्माण शैली है और परियोजना को हाथ में लेने वाले आर्किटेक्ट के समक्ष सबसे ब़डी चुनौती इसके लिए ऐसे मूर्तिकारों को ढूंढना था जो इस मंदिर के लिए विभिन्न प्रतिमाओं को गढने और इसके स्तंभों पर प्राचीन नक्काशी करने में सक्षम हों। हालांकि परियोजना में लगी टीम ने ऐसे १५० मूर्तिकारों को ढूंढ निकाला है जो होयसला शैली से थो़डे बहुत अवगत हैं। इसके साथ ही मुख्य मंदिर का निर्माण कार्य शुरु होन के साथ ही सैंक़डों मूर्तिकारों को प्रशिक्षित भी किया जाएगा। जीएल भट्ट जैसे जाने माने मूर्तिकार भी प्रचीन निर्माण शैली को जीवंत करने में अपना योगदान दे रहे हैं।ल्लेखनीय है कि इस विशाल परियोजना के लिए ३०० करो़ड रुपए जुटाना भी कोई आसान काम नहीं है। इस मंदिर का निर्माण कार्य शुरु करने वाले ट्रस्ट ने इसके लिए चंदे के माध्यम से धन राशि जुटाने का निर्णय लिया है। फाउंडेशन के कोषाध्यक्ष अरविंद रेड्डी के अनुसार सिर्फ एक व्यक्ति से लाखों रुपए का दान लेने के बजाय फाउंउेशन की ओर से ब़डे दानदाताओं से मंदिर के लिए ग्रेनाइट का एक ब़डा अंश को दान करने का अनुरोध किया जा रहा है। अभी तक फाउंडेशन को इस प्रकार के १००० पत्थर के ब़डे टुक़डे दान में प्राप्त भी हो चुके हैं। इसके साथ ही फाउंडेशन ने कोलार जिले के लोगों से इस मंदिर के निर्माण के लिए १०८ रुपए का चंदा लेने की योजना बनाई है। जिले में १५ लाख लोग रहते हैं और इसमें से यदि आधे लोग भी १०८ रुपए की यह मामूली रकम दान में दे देते हैं तो एक ब़डी रकम जुटाई जा सकती है।

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