कोरोना से सावधान रहें और निराश न हों

कोरोना से सावधान रहें और निराश न हों
* 2 अगस्त को आपके मनोरंजन का ‘दक्षिण भारत’ ने किया है इंतजाम
* फेसबुक पेज पर सुनिए मोहम्मद रफी के नग्मे रिषभ मेहता की आवाज में
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में फिर यह बात दोहराई कि जब तक कोरोना महामारी से बचाव के लिए कोई प्रभावी दवा या टीका इजाद नहीं हो जाए तब तक इससे बचाव के वही उपाय हैं कि अत्यंत जरूरी न हो तब तक घर से बाहर न निकलें। जाना जरूरी है तो दो गज की दूरी यानी सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना और मुंह व नाक पर मास्क लगाए रखना न भूलें। थोड़े थोड़े समय पर हाथों को साफ करना, बाहर जाते समय सैनीटाइजर साथ लेकर जाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि हमें करोना से लंबी लड़ाई लड़नी है। जो हालात बने हुए हैं उससे हमें भी यही लगता है कि कोरोना आसानी से हमारा पीछा छोड़ने वाला नहीं है और इसके साथ जब तक रहना है तब तक पूरी सावधानी व सतर्कता से रहना होगा। जरा सी भी लापरवाही बरतना भारी पड़ सकता है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि हम कोरोना से घबरा जाएं, हम हिम्मत हार दें, निराश हो जाएं। बिल्कुल नहीं। उल्टा हमें यह सोचना चाहिए कि कितनी अच्छाइयों का निमित्त बना है कोरोना। हम जीवन की आपाधापी में अपने परिजनों को, अपनी संतानों को ही समय नहीं दे पा रहे थे। कोरोना की बाध्यता ने उन दूरियों को समाप्त किया।
यहां एक छोटी बोधकथा साझा करता हूं….एक बालक अपने पिता के आने का इंतजार कर रहा था। रात हो चुकी थी परंतु पिता अपने काम से लौटे नहीं थे। उसे अपने पापा से बात करनी थी। पिता जब लौटे और खाना वगैरह खा लिया तो उसने बड़ी जिज्ञासु आंखों से अपने पापा से पूछ लिया, पापा आपको एक घंटे का कितना वेतन मिलता है? पिता ने पलभर के लिए सोचा और सहज भाव से कह दिया, दो सौ रुपये। उसने फिर पूछा, क्या आप मुझे सौ रुपये दे सकते हैं पापा? मुझे कुछ खरीदना है। पिता थके मांदे आफिस से आए थे, विश्राम करना चाहते थे। उन्होंने कहा, बेटा तुम्हें रात को इतनी देर तक नहीं जागना चाहिए। जाओ सो जाओ। तुम्हें इतना पैसा क्यों चाहिए, पाकेट मनी तो तुमको देते हैं। पिता ने बच्चे को झिड़क दिया। वह कमरे में चला गया और सो गया किंतु उसे नींद नहीं आ रही थी।थोड़ी देर बाद पिता को भी लगा कि नन्हें बालक को यों डांटना नहीं चाहिए था। कोमल मन आहत हुआ होगा। वे उसके कमरे में आए और उसके तकिए के पास आकर, झुककर देखा कि बच्चा सो गया है या नहीं। वह सोया नहीं था। उसके तकिए के पास एक सौ का नोट भी रखा हुआ था। पिता को मन ही मन और गुस्सा आया लेकिन नियंत्रण करते हुए बच्चे के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछ ही लिया…बेटा तुम्हारे पास सौ रुपये पहले से ही हैं तो तुमने और सौ रुपये मुझसे क्यों मांगे? तो मासूम बच्चे का जवाब था, पापा सौ रुपये तो मेरे पास हैं। मैंने अपनी पाकेट मनी सेव कर एकत्र किए हैं। परंतु मैं आपसे सौ रुपये और लेकर कुल दो सौ रु. एकत्र करना चाहता था ताकि आपको दो सौ रुपये देकर आपका एक घंटे का समय खरीद सकूं। मैं आपका एक घंटा खरीद सकता हूं न पापा? फिर हम एक साथ बैठकर डिनर करेंगे, एक घंटे तक बातें करेंगे।
उस दिन उस पिता को लगा कि उसके नन्हें से बच्चे के लिए उसका एक घंटे का समय कितना मायने रखता है। इस कोरोना ने हमें उस एक घंटे का महत्व ही सिखाया है। कोरोना तो निमित मात्र बना है। हम अपने बच्चों के साथ जब लाकडाउन में रहे हैं तो उनके चेहरे को आसानी से पढ सके हैं कि उनके लिए हमारा साथ कितना बहुमूल्य है। यह बात बहुत से लोग ताउम्र नहीं सीख सकते थे, जो कोरोना ने सिखाई।
इसलिए इस कोरोना काल को भी सकारात्मक सोच के साथ व्यतीत करना चाहिए। घर से बाहर जाएं तो सावधानी रखें और घर पर जब रहें तो परिजनों के साथ भरपूर आनंद से सराबोर रहें।
आइए, आगामी रविवार 2 अगस्त की शाम आप जब घर पर रहेंगे तो आपके मनोरंजन के लिए हमने बेहतरीन इंतजाम किया है। जानेमाने गायक कलाकार हितेश मेहता के पुत्र रिषभ मेहता की मधुर आवाज में आप प्रख्यात पार्श्व गायक स्व. मोहम्मद रफी के सदाबहार नगमे सुन सकेंगे। रफी साहब को श्रद्धांजलि के रूप में प्रस्तुत होने जा रहा यह कार्यक्रम हितेश मेहता के ’दक्षिण भारत’ के साथ प्रगाढ संबंधों का परिणाम है। डेढ घंटे का यह कार्यक्रम आप अवश्य पसंद करेंगे बशर्ते आप यहां दी गई फेसबुक आईडी https//www.facebook.com/hitsmehta को लिंक कर जुड़ेंगे, लाइक करेंगे। उस समय लाइव कार्यक्रम को आप शेयर करके अपने मित्रों तक भी पहुंचा सकेंगे। आप इस सूचना को अभी से अपने दोस्तों तक पहुंचा सकते हैं।
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