जब गोरखपुर के इस मैदान से दिया गांधीजी ने स्वदेशी का संदेश तो घर-घर में चलने लगे चरखे

जब गोरखपुर के इस मैदान से दिया गांधीजी ने स्वदेशी का संदेश तो घर-घर में चलने लगे चरखे

mahatma gandhi

गोरखपुर/वार्ता। स्वतंत्रता आंदोलन के सूत्रधार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में पहली बार आठ फरवरी 1921 को गोरखपुर के बाले मियां मैदान में अपार जनसमूह को सम्बोधित करते हुए कहा था कि यदि विदेशी वस्त्रों का पूर्ण रूप से बहिष्कार कर दिया जाए और लोगों ने चरखे से कातकर तैयार किए गए धागे का कपड़ा पहनना शुरू कर दिया तो अंग्रेजों को यह देश छोड़कर जाने के लिए विवश होना ही पड़ेगा।

उन्होंने कहा था कि हमें गुलामी की जंजीर तोड़ना उतना ही जरूरी है जितना सांस लेने के लिए हवा जरूरी है। उन्होंने यहां ब्रिटिश हुकूमत को देश से हटाने के लिए लोगों का आह्वान किया था। उनके इस भाषण से लोग इतने प्रभावित हुए कि वे सरकारी नौकरियों का त्याग कर आन्दोलन में शामिल हो गए।

उस दिन गोरखपुर के बाले मियां के मैदान में एक लाख से अधिक लोग इकट्ठे हुए थे जहां गांधी जी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में पहला भाषण दिया। उनका भाषण सुनकर सभी लोग उनके मुरीद हो गए थे। महात्मा गांधी के इस उद्बोधन का परिणाम दो रूप में सामने आया, एक तो लोग स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े और नौकरी व स्कूल छोड़कर सभी गांधीजी के साथ हो लिए।

इस संबंध में गांव-गांव पंचायत स्थापित होने लगी। पूर्वी उत्तर प्रदेश की जनता ने तन-मन और धन से गांधीजी को स्वीकार कर लिया और पूर्वांचल के गोरखपुर, खलीलाबाद, संतकबीर नगर, बस्ती, मगहर और मऊ आदि क्षेत्रों में चरखा चलाने वालों की बाढ़ आ गई। गांधीजी ने 30 सितम्बर, 1929 से पूर्वांचल का दौरा दूसरे चरण में शुरू किया था। वह 4 अक्टूबर, 1929 को आजमगढ़ से चलकर नौ बजे गोरखपुर पहुंचे थे। यहां उन्होंने चार दिन तक प्रवास किया।

सात अक्टूबर 1929 को उन्होंने गोरखपुर में मौन व्रत भी रखा और 9 अक्टूबर, 1938 को बस्ती के लिए रवाना हो गए। उनके साथ जाने वालों में प्रख्यात उर्दू शायर फिराक गोरखपुरी भी थे। वर्ष 1930 में नमक सत्याग्रह और 1931 में जमींदारी अत्याचार के विरुद्ध यहां की जनता ने प्रोफेसर शिब्बन लाल सक्सेना के नेतृत्व में आंदोलन में भाग लिया।

वर्ष 1930 में प्रोफेसर सक्सेना ने गांधीजी के आह्वान पर गोरखपुर स्थित सेंट एन्ड्रयूज कॉलेज के प्रवक्ता पद का परित्याग कर पूर्वांचल के किसान-मजदूरों का नेतृत्व संभाल लिया। महात्मा गांधी की नजरों से पूर्वांचल में फैली अस्पृश्यता की बीमारी छिप नहीं सकी और उन्होंने इसे दूर करने के लिए 22 जुलाई, 1934 से 2 अगस्त, 1938 तक विभिन्न क्षेत्रों का दौरा किया और गांव-गांव दलित बस्तियों में गए।

ये भी पढ़िए:
– किसी रहस्यमय बीमारी के शिकार हो गए मुशर्रफ? तेजी से गिरी सेहत, वरिष्ठ नेता का दावा
– छोटे कारोबारियों को मोदी सरकार देगी बड़ी सौगात, बिना बैंक गए 1 घंटे में मिलेगा लोन
– वीडियो: प. बंगाल में तृणमूल कार्यकर्ता बेलगाम, मीडिया के सामने महिला को बुरी तरह पीटा
– रेहड़ी वाले के बैंक खाते में मिले 2.25 अरब रुपए, जानकर हर कोई र​ह गया हैरान!

Google News
Tags:

About The Author

Post Comment

Comment List

Advertisement

Latest News

दपरे: कारगिल युद्ध के वीरों के सम्मान में सेंट्रल हॉस्पिटल ने रक्तदान शिविर लगाया दपरे: कारगिल युद्ध के वीरों के सम्मान में सेंट्रल हॉस्पिटल ने रक्तदान शिविर लगाया
अस्पताल दिवस समारोह भी मनाया
कर्नाटक सरकार ने रामनगर जिले का नाम बदलकर बेंगलूरु दक्षिण करने का फैसला किया
मराठा लाइट इन्फैंट्री रेजिमेंटल सेंटर ने कारगिल युद्ध विजय की 25वीं वर्षगांठ मनाई
एमयूडीए मामला: प्रह्लाद जोशी ने सिद्दरामैया पर आरोप लगाया, सीबीआई जांच की मांग की
भोजनालयों पर नाम प्रदर्शित करने संबंधी निर्देश पर योगी सरकार ने उच्चतम न्यायालय में क्या दलील दी?
'विपक्षी दल के रूप में काम नहीं कर रही भाजपा, कुछ भी गलत या घोटाला नहीं हुआ'
कांग्रेस ने कारगिल के शहीदों को दी श्रद्धांजलि- 'देश सदैव उनका ऋणी रहेगा'