वन संरक्षण में योगदान दे रहे राज्यों को प्रोत्साहन देने की वकालत की उपराष्ट्रपति ने
वन संरक्षण में योगदान दे रहे राज्यों को प्रोत्साहन देने की वकालत की उपराष्ट्रपति ने
देहरादून/भाषापिछले काफी समय से ग्रीन बोनस की उत्तराखंड की मांग को आज उस समय बल मिला जब उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने वनों के संरक्षण और संवर्धन में अच्छा काम करने वाले राज्यों को प्रोत्साहन दिये जाने की वकालत की। यहां इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी में भारतीय वन सेवा के परिवीक्षार्थियों (प्रोबेशनर्स) के दीक्षान्त समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए नायडू ने कहा, ’’वन संरक्षण में अमूल्य योगदान दे रहे राज्यों को इन्सेंटिव देने से उन्हें और हरित क्षेत्र ब़ढाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।’’’’ उन्होंने वन संरक्षण के लिए स्थानीय लोगों, पंचायतों तथा स्थानीय निकायों को इन्सेंटिव दिये जाने की भी वकालत की। परिवीक्षाधीन अधिकारियों को बधाई देते ए नायडू ने कहा कि वे ऐसे महत्वपूर्ण समय पर वन सेवा में सम्मिलित हुए हैं जब भारत दुनिया की सबसे तेज गति से ब़ढने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और विकास बनाम संरक्षण की बहस अपने चरम पर है। आपको पारिस्थितिकी सुरक्षा और विकास के बीच संतुलन साधने का तरीका ढूं़ढना होगा। हमारे वन संसाधनों के वैज्ञानिक प्रबंधन के जरिए मानव-वन्यजीव के बीच भी संतुलन स्थापित करना होगा। प्रोबेशनरों से अपने वन संरक्षण प्रयासों में स्थानीय जनता खासतौर से अपनी आजीविका के लिए वनों पर निर्भर रहने वाले आदिवासियों को शामिल करने को कहते हुए नायडू ने कहा कि जनता की भागीदारी के बिना कोई राष्ट्रीय कार्यक्रम सफल नहीं हो सकता।उन्होंने कहा, लोगों को शामिल करना सबसे प्रभावी तरीका है। राष्ट्रीय कार्यक्रम तभी अपने लक्ष्य को हासिल करने में सफल होंगे जब वे जनांदोलन का रूप लेंगे। फॉरेस्ट’’ शब्द की अपनी व्याख्या करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि इसका अर्थ है ‘फार फ्रॉम रेस्ट’’, क्योंकि वन संसाधनों का प्रबंधन करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। कर्तव्य निभाते हुए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले वन अधिकारियों का स्मरण करते हुए नायडू ने वन सेवा के प्रोबेशनर अफसरों से जंगलों में रहने वाली आदिवासी जनता पर विशेष ध्यान देने को कहा।उन्होंने कहा, उन्हें सहायता दें, प्रशिक्षित करें और उनके सर्वांगीण विकास में सहायक हों।’’ कार्यक्रम में उत्तराखंड के राज्यपाल डा कृष्णकांत पाल ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के मॉडल के तौर पर पूरे विश्व में पहचान बनाने वाले ’’चिपको आंदोलन’’ की शुरूआत इसी हिमालयी राज्य में हुई थी। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने भी युवा परिवीक्षार्थियों को प्रशिक्षण पूर्ण होने पर बधाई दी और कहा कि उन्हें वनाश्रित समुदायों को सशक्त बनाने, वनों से दीर्घकालीन लाभ प्राप्त करने, ग्रामीणों की आजीविका के स्रोत एवं जलवायु परिवर्तन को रोकने के एक साधन के रूप में वनों को संरक्षित किए जाने के प्रयास करने चाहिए।