सभी को खाद्य सुरक्षा के तहत लाने की याचिका पर विचार करने से उच्चतम न्यायालय का इंकार
सभी को खाद्य सुरक्षा के तहत लाने की याचिका पर विचार करने से उच्चतम न्यायालय का इंकार
नई दिल्ली/भाषा। उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 महामारी के दौरान सभी के लिए खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करने का केंद्र और राज्यों को निर्देश देने के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश की याचिका पर मंगलवार को विचार करने से इंकार कर दिया।
न्यायालय ने जयराम रमेश से कहा कि उन्हें इसके लिए केंद्र सरकार को प्रतिवेदन देना होगा। शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि लोक सरकारी प्राधिकारियों को कोई प्रतिवेदन दिए बगैर ही संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर रहे हैं।न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जयराम रमेश की याचिका पर विचार किया। पीठ ने पाया कि याचिका में उठाई गई समस्या पहले सरकार के संज्ञान में नहीं लाई गई है, इसलिए इसे वापस लेने की अनुमति दी जाती है। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को इस बारे में विस्तार से केंद्र को प्रतिवेदन देना चाहिए जिस पर सरकार गौर करेगी।
रमेश की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने कहा कि याचिका में उठाया गया मुद्दा खाद्यान्न सुरक्षा से संबंधित है और याचिकाकर्ता ने खाद्य सुरक्षा कानून, 2013 तैयार करने में भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में लोग अपने कार्यस्थलों से पैतृक निवास चले गए हैं और उनके पास स्थानीय क्षेत्र के राशन कार्ड है जिन्हें उनके पैतृक स्थान वाले क्षेत्र के प्राधिकारी स्वीकार नहीं कर रहे हैं।
इस पर पीठ ने खुर्शीद से सवाल किया कि क्या इस संबंध में सरकार को कोई प्रतिवदेन दिया गया है। खुर्शीद ने कहा कि सरकार को इस बारे में कोई प्रतिवेदन नहीं दिया गया है। पीठ ने कहा कि समस्या यह है कि लोग सरकार को प्रतिवेदन देने की बजाय सीधे अनुच्छेद 32 के तहत शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर रहे हैं। पीठ ने कहा कि इस तरह की याचिका से पहले कहीं कोई कवायद तो की जानी चाहिए।
खुर्शीद ने कहा कि सरकार ने एक राष्ट्र एक राशन कार्ड योजना की घोषणा की है लेकिन इसे अभी मूर्तरूप लेना है। उस समय तक स्वराज अभियान प्रकरण में शीर्ष अदालत के फैसले पर अमल किया जाना चाहिए। इस फैसले में न्यायालय ने कहा था कि सूखा जैसी आपदा की स्थिति में राशन कार्ड अनिवार्य नहीं होगा।
पीठ ने कहा कि हो सकता है कि कोई व्यक्ति स्थानीय कार्य स्थल पर नहीं होने की वजह से कठिनाई में हो लेकिन जो अपने पैतृक स्थान पर लौट आए हैं, उनकी देखभाल सरकार कर सकती है।
पीठ ने कहा कि वह केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कह सकती है कि याचिका में उठाई गईं समस्याओं पर गौर करें। पीठ ने उम्मीद जताई की लॉकडाउन के तीसरे चरण में चीजें बेहतर होने लगेंगी। मेहता ने कहा कि सरकार इस तरह के प्रतिवेदन पर पूरी गंभीरता से विचार करेगी।