श्रीराम के जीवन आदर्श अमृत कलश के समान: जगद्गुरु श्रीरामभद्राचार्य
कथा पंडाल 'राजा रामचंद्र की जय' से गूँज उठा

कथा ज्ञान यज्ञ महोत्सव प्रभु श्रीराम के राज्याभिषेक के साथ सम्पन्न हुआ
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। श्रीराम परिवार दुर्गा पूजा समिति बेंगलूरु के तत्वावधान में एकल श्रीहरि वनवासी फाउंडेशन के सहयोग से शहर के पैलेस ग्राउण्ड स्थित प्रिंसेस श्राइन सभागार में आयोजित नौदिवसीय श्रीराम कथा ज्ञान यज्ञ महोत्सव मंगलवार को प्रभु श्रीराम के राज्याभिषेक के साथ सम्पन्न हुआ।
कथाक्रम को आगे बढ़ाते हुए जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य महाराज ने राम हनुमान मिलन, सुग्रीव की मित्रता, बाली के वध, सुग्रीव को राजा और बाली पुत्र अंगद को युवराज बनाने, पवनपुत्र हनुमान के समुद्र लांघकर लंका जाकर माता सीता का पता लगाने, लंका दहन, वानर सेना की मदद से सेतु निर्माण तथा रावण वध कर लंका पर विजय प्राप्त करने और विभीषण को लंका का राज्य सौंपने आदि प्रसंगों की कथा सुनाई।उन्होंने कहा कि शबरी भक्तिभाव के साथ श्रीराम का आतिथ्य करती है और सीता की खोज में मदद के लिए सुग्रीव के पास भेजती है। वह श्रीराम को विभीषण का एक संदेश भी देती है, जिससे सीता के लंका में होने की पुष्टि होती है। प्रभु श्रीराम शबरी से विदा लेकर आगे बढ़ते हैं तो रास्ते में उनकी मुलाकात ब्राह्मण वेश धरकर आए अपने परम भक्त हनुमान से होती है।
हनुमानजी राम और लक्ष्मण दोनों भाइयों को अपने कंधों पर बिठाकर सुग्रीव के पास लेकर जाते हैं। सुग्रीव का भाई बाली किष्किंधा का राजा था उसने सुग्रीव को राज्य से निष्कासित कर उसकी पत्नी को भी अपनी सहचारिणी बना लिया था। बाली इतना शक्तिशाली था कि लंका का राजा रावण भी उससे पराजित हो चुका था।
बाली शक्ति का भय दिखाकर अपना शासन चला रहा था। इस कारण से अनेक वानर किष्किंधा से पलायन कर गए थे। अपने मित्र की मदद के लिए राम ने पहले बाली को मारा और फिर सुग्रीव को किष्किंधा के सिंहासन पर बिठाया। बाली के पुत्र अंगद को युवराज बनाया। यहीं से राम को जामवंत, हनुमान, अंगद, नल-नील आदि का साथ मिला।
सीता की खोज करने में सुग्रीव की सेना, वानर, भालू, रीछ आदि के साथ गंधमादन पर्वत पर रहने वाले जटायु के भाई संपाती और उनके पुत्र सुपार्श्व ने भी मदद की। अंजनीपुत्र हनुमान माता सीता का पता लगाने के लिए समुद्र लांघकर लंका गए। वहाँ उनकी मुलाकात विभीषण से हुई और माता सीता के अशोकवाटिका में होने का पता चला।
अशोकवाटिका में सीता से मिलकर उन्हें प्रभु श्रीराम का संदेश दिया। हनुमानजी लंकादहन कर वापस लौटे और प्रभु श्रीराम को माता सीता के बारे में बताया। इसके बाद सुग्रीव की वानर सेना की मदद से लंका पर चढ़ाई करने के लिए नल-नील की मदद से समुद्र पर सेतु का निर्माण किया गया।
प्रभु श्रीराम अपनी सेना के साथ लंका पहुँचे। राम और रावण के बीच भीषण युद्ध हुआ। राम ने लंका पर विजय प्राप्त की और सीता को मुक्त कराया। विभीषण को लंका का राजा बनाया। इसके बाद श्रीराम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या वापस लौटे।
उन्होंने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की महिमा अपरम्पार है। आदर्श और नीतिगत जीवन जीने के लिए हम सबको अपने जीवन में उनके आदर्शों को अपनाना होगा। भगवान राम केवल शस्त्र ही नहीं शास्त्र के भी ज्ञाता थे। उनके जीवन के आदर्श हमारे लिए अमृत कलश के समान हैं।
इसके साथ ही नौदिवसीय श्रीराम कथा को विराम देते हुए कथाव्यास जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य ने श्रीराम का राज्याभिषेक सम्पन्न कराया, जिसमें उत्सव यजमान संजय मीना अग्रवाल के साथ अन्य यजमान, राजस्थान भाजपा प्रवासी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष श्रीकुमार लखोटिया, महेन्द्र-सुरक्षा मुणोत, ताराचंद गोयल, बाबूलाल गुप्ता, सुरेश मोदी, राजू सुथार आदि शामिल हुए। कथा पंडाल राजा रामचंद्र की जय के जयकारों से गूँज उठा।
समाजसेवी एवं गौभक्त महेन्द्र मुणोत ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि प्रभु श्रीराम भारत की आत्मा हैं। राम उन घरों में बसते हैं जिन घरों में बड़े बुजुर्गों का सम्मान होता है। प्रारंभ में आचार्य रामचन्द्रदास ने मंगलाचरण करते हुए गुरु चरणों में विरुदावलि की।
मुख्य यजमान जसराज महेन्द्र कुमार वैष्णव के साथ मिथिलेश तिवारी, अजय पाण्डेय ने पादुका पूजा की। भंडारा सेवा के लाभार्थी सुरेश बर्फा ने कथाव्यास जगद्गुरु का सपरिवार आशीर्वाद प्राप्त किया। आरती में राम कथा आयोजन समिति, महिला मंडल तथा श्रीराम परिवार दुर्गा पूजा समिति के सदस्यों ने भाग लिया।
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