कागजी शेर

दूसरों के मामलों में टांग अड़ाना चीन की आदत हो गई है

कागजी शेर

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का अरुणाचल प्रदेश को 'जांगनान' कहना भी हास्यास्पद है

भारतीय पर्वतारोहियों द्वारा अरुणाचल प्रदेश की एक चोटी का नाम छठे दलाई लामा के नाम पर रखे जाने के बाद चीन का नाराजगी जताना अनुचित है। इन पर्वतारोहियों ने अपने देश में स्थित एक चोटी का नाम महान आध्यात्मिक गुरु के नाम पर रखा है। ऋषियों और संतों का सम्मान करना हमारी संस्कृति है। चीन को इस पर ऐतराज क्यों है? उसकी सरकार का न तो अध्यात्म के साथ कोई संबंध है और न ही अरुणाचल प्रदेश से कोई लेना-देना है! 

Dakshin Bharat at Google News
दूसरों के मामलों में टांग अड़ाना चीन की आदत हो गई है। उसके नेता और अधिकारी यह भी जानने की कोशिश नहीं करते कि वे जिस जमीन पर दावा कर रहे हैं, उसका इतिहास क्या है! राष्ट्रीय पर्वतारोहण एवं साहसिक खेल संस्थान (एनआईएमएएस) की टीम ने जिस चोटी पर चढ़ाई की, उस पर आज तक कोई नहीं गया था। यह निश्चित रूप से उसकी बहुत बड़ी उपलब्धि है, जिसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। उसने चोटी का नाम छठे दलाई लामा त्सांगयांग ग्यात्सो के नाम पर रखा, जिनका जन्म अरुणाचल प्रदेश के तवांग में हुआ था। 

इस नामकरण से भारत एवं तिब्बत के आध्यात्मिक संबंध और गहरे होंगे। साथ ही, देश-विदेश के लोगों को त्सांगयांग ग्यात्सो के बारे में पता चलेगा। इससे चीन का नाजायज दावा भी कमजोर पड़ेगा, जिसकी अरुणाचल प्रदेश पर दशकों से कुदृष्टि है। एनआईएमएएस की उक्त कामयाबी पर चीन इसलिए भी भड़क रहा है, क्योंकि यह संस्थान रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है। भारत की रक्षा से जुड़े लोग बुलंदियों तक पहुंचेंगे तो चीन क्यों नहीं भड़केगा? 

चीन एक ओर तो दलाई लामा के बारे में दुष्प्रचार करता है, तिब्बतवासियों की आवाज दबाने के लिए क्रूरतापूर्वक पूरी ताकत लगाता है, दूसरी ओर अरुणाचल प्रदेश पर इस आधार पर दावा करता है, क्योंकि छठे दलाई लामा का जन्म यहां हुआ था! यह तो बीजिंग का घोर पाखंड है।

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान का अरुणाचल प्रदेश को 'जांगनान' कहना भी हास्यास्पद है। क्या मनमर्जी के नाम थोपने से कोई इलाका चीन का हो जाएगा? चीन ने अप्रैल 2023 में एक और शिगूफा छोड़ा था, जिसके तहत अरुणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों को चीनी नाम दे दिए थे। 

वास्तव में ऐसी हरकतें भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव डालने की चालें हैं। चीन चाहता था कि इसके जवाब में भारत की ओर से सिर्फ नरम-नरम बयान आएं, जबकि भारत सरकार ने न केवल सख्त शब्दों में ऐतराज जताया, बल्कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अरुणाचल प्रदेश के किबिथू गांव में ‘वाइब्रेंट विलेज’ कार्यक्रम की शुरुआत भी कर दी थी। इससे चीन को स्पष्ट संदेश मिल गया था कि उसकी ‘गीदड़ भभकियां’ यहां नहीं चलेंगी। 

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान के इन शब्दों में इतिहास के संबंध में उनका अज्ञान (जो बीजिंग ने भरा है) झलकता है कि 'भारत के लिए चीनी क्षेत्र में ‘अरुणाचल प्रदेश’ स्थापित करना अवैध और अमान्य है'! लिन महाशय को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अधकचरे साहित्य के बजाय ऐसी किताबें पढ़नी चाहिएं, जिनमें इतिहास की सही-सही और निष्पक्ष जानकारी हो। अरुणाचल प्रदेश तो हमेशा से ही भारत का रहा है। यह भारत का अभिन्न अंग है। 

यहां के मंदिर, मठ, ऐतिहासिक स्थल, परंपराएं, कथाएं, बोलियां ... सबकुछ विशुद्ध रूप से भारतीय हैं। उनका चीन से कोई संबंध नहीं है। यह योग एवं ध्यान की भूमि है। यहां के कण-कण में भारतीय दर्शन एवं अध्यात्म है। भारत सरकार को चाहिए कि वह समय-समय पर अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न स्थानों का नामकरण भारतीय संतों, दार्शनिकों, महापुरुषों, सुधारकों और योद्धाओं के नाम पर करती रहे। 

इससे लोगों को उन दिव्य आत्माओं के बारे में जानने का अवसर मिलेगा। वहीं, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की छटपटाहट भी खुलकर सामने आएगी। दुनिया को पता चलेगा कि चीन एक कागजी शेर है, जिसके आका कोरी बयानबाजी से ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। ऐसे कार्यक्रमों में तिब्बती समुदाय को खास तौर से शामिल किया जाए।

About The Author

Related Posts

कागजी शेर

कागजी शेर

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download