जो बोएंगे, वही काटेंगे
पाकिस्तान के हुक्मरानों को इस अवधि में इतनी अक्ल तो आ गई कि अफगानिस्तान में उनकी दाल नहीं गलने वाली है
तालिबान की मंशा यह भी है कि वह इस्लामाबाद में बैठी 'हुकूमत' को उखाड़ फेंके
पाकिस्तान में 'अवैध' ढंग से रह रहे अफगान शरणार्थियों की धर-पकड़ से कई सवाल पैदा हो रहे हैं। आखिर पाक सरकार ने इतने वर्षों बाद यह फैसला क्यों लिया? जब अगस्त 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया था, तो पाकिस्तान में खुशी की लहर थी। 'पाक-अफगान' दोस्ती के नारे गूंजने लगे थे। फिर दो साल बाद ऐसा क्या हुआ कि पाकिस्तान सरकार ने अपने यहां रहने वाले उक्त शरणार्थियों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया?
वास्तव में पाकिस्तान के हुक्मरानों को इस अवधि में इतनी अक्ल तो आ गई कि अफगानिस्तान में उनकी दाल नहीं गलने वाली है। वे चाहते थे कि तालिबान के लड़ाकों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया जाए, लेकिन उन्होंने पाकिस्तान के जवानों को ही ढेर करना शुरू कर दिया। तालिबान मौजूदा पाक-अफगान सरहद को स्वीकार नहीं करता। वह कहता है कि अटक तक अफगानिस्तान का इलाका है, जिसे वह लेकर ही रहेगा।तालिबान की मंशा यह भी है कि जिस तरह उसने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किया, उसी तरह इस्लामाबाद में बैठी 'हुकूमत' को उखाड़ फेंके और यहां अपने तौर-तरीकों वाला शासन स्थापित करे। अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों की लहर-सी आ गई है। इसमें न केवल कई सैनिक, बल्कि पुलिसकर्मी और आम नागरिक भी मारे गए हैं। अफगान शरणार्थियों पर आरोप लगाया जाता है कि पाक में आत्मघाती धमाके करने वाले आतंकवादियों के तार इनसे जुड़े होते हैं। वहीं, कई विशेषज्ञ यह तक कह चुके हैं कि वैध / अवैध शरणार्थियों के आने के बाद ड्रग्स, तस्करी, लूट, चोरी, हत्या, अपहरण ... जैसे गंभीर अपराधों में बढ़ोतरी हो गई है।
हालांकि पाकिस्तान के लिए यह आसान नहीं होगा कि वह अवैध अफगान शरणार्थियों को उनके देश भेज सके। यूएनएससीआर की एक रिपोर्ट की मानें तो पाक में लगभग 37 लाख अफगान शरणार्थी रहते हैं। उनमें से केवल 13 लाख लोग ही पंजीकृत हैं। ऐसे में पाकिस्तान सरकार एक-एक अवैध शरणार्थी को निकालेगी, तो कैसे? ये लोग किसी एक शहर में नहीं रहते। केपीके के गांवों से लेकर पेशावर, इस्लामाबाद, क्वेटा और कराची तक इनकी बस्तियां हैं। बाजारों में इनकी दुकानें हैं। कई मौकों पर स्थानीय लोगों से इनका टकराव होता रहता है। खासतौर से जब किसी क्रिकेट मैच का नतीजा पाकिस्तान के खिलाफ जाए। सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो मौजूद हैं, जिनमें अफगानिस्तान के लोग कुर्सियां उठाकर पाकिस्तानियों की पिटाई करते नजर आते हैं।
यही नहीं, यूरोप और अमेरिका में रहने वाले अफगान भी पाकिस्तान से सख्त नफरत का इजहार करते मिल जाते हैं। उनके इस व्यवहार पर पाकिस्तानी मीडिया कहता है कि हमने इन लोगों को भाई समझकर अपने यहां आने दिया, रहने के लिए जमीन दी, अपने हिस्से का खाना तक दे दिया ... फिर ये हमसे इतनी नफरत क्यों करते हैं? दरअसल अफगान शरणार्थियों के इस रवैए की एक खास वजह है। ये अपने मुल्क में आबाद थे, लेकिन इन्हें पाकिस्तान की वजह से दर-बदर होना पड़ा।
पाकिस्तानी फौज के जनरलों ने अफगानिस्तान में तालिबान को पाल-पोसकर बड़ा किया था। पाकिस्तानी जवानों ने आतंकवाद का प्रशिक्षण देकर वहां दहशत की पौध तैयार की थी। इसके बदले पाकिस्तान को खूब डॉलर मिले थे, जिनसे अधिकारियों ने जेबें भरी थीं। उसका नतीजा आज दुनिया देख रही है। अफगानिस्तान में आतंकवाद और हिंसा की आग पाकिस्तान ने लगाई थी, इसलिए अफगान शरणार्थियों का उससे नफरत करना अचंभे की बात नहीं है। अगर पाकिस्तान यह सब नहीं करता तो अफगान अपना घर छोड़ने को मजबूर नहीं होते। आज वे उसके यहां समस्या पैदा कर रहे हैं तो हुक्मरानों की नींद उड़ गई है। सत्य है- जो बोएंगे, वही काटेंगे!