रातोंरात तैयार हुए पासपोर्ट, 10 दिनों तक नहीं नहाए; भारतीय बचावकर्मी ऐसे बने तुर्किये में देवदूत
'ऑपरेशन दोस्त' की ये कहानियां भावुक कर देंगी
18 महीने के जुड़वां बच्चों को छोड़कर तुर्किये गई थीं भारतीय कांस्टेबल
नई दिल्ली/दक्षिण भारत। तुर्किये में आए भयावह भूकंप के बाद उपजे चुनौतीपूर्ण हालात में भारत की ओर से भेजे गए बचाव एवं राहत बल की बहुत तारीफ हो रही है। सोशल मीडिया पर ऐसी कई तस्वीरें वायरल हो रही हैं, जिनमें स्थानीय लोग भारतीय सैनिक, एनडीआरएफ कर्मी, डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी आदि के प्रति सम्मान एवं प्रेम जताते नजर आ रहे हैं।
राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) का मिशन अत्यंत चुनौतियों से भरा था। जब एक अर्द्धचिकित्सा कर्मी को तुर्किये जाने का बुलावा आया तो वे अपने 18 महीने के जुड़वां बच्चों को छोड़कर गईं।ऐसे पूरी हुई प्रक्रिया
चूंकि यह मिशन विदेश में अंजाम देना था, जिसके लिए पासपोर्ट अनिवार्य था, इसलिए अधिकारियों को रातोंरात 140 से ज्यादा पासपोर्ट बनाने के लिए जरूरी प्रक्रिया पूरी करनी पड़ी।
इस संबंध में जानकारी देते हुए एनडीआरएफ के महानिरीक्षक एनएस बुंदेला ने कहा, ‘विदेश मंत्रालय के कंसुलर पासपोर्ट और वीजा विभाग ने रातोंरात हमारे बचावकर्मियों के लिए पासपोर्ट तैयार किए।’
'हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा?'
पांच महिला कर्मियों में शामिल कांस्टेबल सुषमा यादव को अपने 18 महीने के जुड़वां बच्चों को छोड़कर अचानक निकलना पड़ा। जब उनसे पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच तुर्किये जाने को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, 'अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो कौन करेगा?'
उन्होंने कहा, ‘एनडीआरएफ की टीम में दो पैरामेडिक थे, जिनमें मैं और एक अन्य पुरुष साथी थे। हमारा काम बचावकर्मियों को सुरक्षित, स्वस्थ रखना था, ताकि वे शून्य से कम तापमान में बिना बीमार हुए काम करते रहें।’
कई इमारतें बिल्कुल खंडहर
तुर्किये पहुंचने के बाद कर्मियों ने देखा कि कई इमारतें बिल्कुल खंडहर हो चुकी हैं, जिनमें लोग दबे हुए थे। वे भूकंप पीड़ितों को मलबे से निकालने, उन्हें चिकित्सा सुविधा पहुंचाने में इतने व्यस्त हो गए कि 10 दिन तक नहा भी नहीं पाए।
तुर्किये से भारत लौट आने के बाद एक राहत कर्मी कहते हैं कि काश! हम और लोगों की जानें बचा पाते। उन्हें इस बात का संतोष है कि उनकी मेहनत से कई लोगों की जान बच गई।
शाकाहारी भोजन उपलब्ध कराया
एक भूकंप पीड़ित को जब पता चला कि उनकी जान भारतीय ने बचाई है, तो उसने शाकाहारी भोजन उपलब्ध कराने में मदद की। चूंकि उसे पता था कि भारत में बहुत लोग शाकाहारी होते हैं। राहत कर्मी ने सेब-टमाटर जैसे उन पदार्थों पर स्थानीय मसाला छिड़क कर खाना खाया।
भावनात्मक रिश्ता जुड़ गया
एनडीआरएफ के 152 सदस्यीय तीन दल और छह खोजी कुत्ते मलबे में दबे लोगों को ढूंढ़ने व निकालने के लिए तेजी से काम कर रहे थे। इस दौरान उनका स्थानीय लोगों के साथ भावनात्मक रिश्ता जुड़ गया। वापसी के वक्त जब अलविदा कहा तो सबकी आंखें नम हो गईं।
ज़िंदगी की जीत
सात फरवरी को जब ‘ऑपरेशन दोस्त’ का आगाज हुआ तो भारतीय दल ने दो छोटी बच्चियों को मलबे से सलामत निकाला था। यह खंडहर के ढेर में ज़िंदगी की जीत थी।
भारत की तारीफ
बचाव एवं राहत दल के भारत लौट आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसके सदस्यों को अपने आधिकारिक आवास पर बुलाकर सम्मानित किया। सोशल मीडिया पर वायरल इस वीडियो पर देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोगों ने टिप्पणियां कर भारत की तारीफ की है।